गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

मोबाईल रेडिएशन के ख़तरे

मोबाइल पर बात करते समय हम जाने-अनजाने रेडिएशन की खुराक भी ग्रहण कर रहे हैं, जो कि सेफ लेवल से काफी ज्यादा है। इस पहलू की प्रारंभिक उपेक्षा के बाद सरकार अब कुछ गंभीर दिख रही है। एक उच्च स्तरीय सरकारी समिति ने मोबाइल फोन और मोबाइल टॉवरों से इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन के उच्च लेवल पर चिंता जाहिर करते हुए रेडिएशन नियमों में संशोधन की सिफारिश की है। 

समिति ने घनी आबादी वाले रिहायशी इलाकों, स्कूलों, खेल के मैदानों और अस्पतालों के आसपास मोबाइल टॉवरों की स्थापना पर भी कड़ी बंदिशें लगाने का सुझाव दिया है। भारत की जलवायु गर्म है। यूरोपीय देशों की तुलना में एक औसत भारतीय का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और उसका वसा अंश भी कम है। इसके अलावा वातावरण में रेडियो फ्रीक्वेंसी रेडिएशन की मात्रा बहुत ज्यादा है। ये तमाम फैक्टर भारतीयों के लिए ज्यादा खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में रेडिएशन को बर्दाश्त कर सकने की क्षमता कम हो सकती है। समिति का विचार है कि स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए भारत के लिए अलग रेडिएशन मानक पर विचार किया जाना चाहिए। समिति के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य खतरों में याददाश्त में कमी, एकाग्रता का अभाव, पाचन में गड़बड़ी, नींद संबंधी विकार शामिल हैं।

आजकल बड़े शहरों से तितलियां, चिडि़या और कीट-पतंगों के गायब होने के पीछे मोबाइल रेडिएशन का भी बड़ा हाथ है। पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से इन जीव-जंतुओं का गायब होना चिंता का विषय है। सरकारी समिति ने भारत में रेडियो फ्रीक्वेंसी रेडिएशन की एक्सपोजर लिमिट को मौजूदा स्तर से घटाकर उसका एक-दसवां करने की सिफारिश की है। मोबाइल टेलिकॉम नेटवर्क बिछाते हुए वैकल्पिक तरीके खोजे जाने चाहिए और ये उस वक्त प्रयोग में लाए जा रहे उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय तौरतरीकों पर आधारित होने चाहिए। देश में टेलिकॉम नेटवर्क के विस्तार के लिए कम पावर वाले माइक्रोसेल ट्रांसमीटरों में रेडिएशन को सेफ लेवल पर रखने की आंतरिक व्यवस्था भी होनी चाहिए।

अभी मोबाइल टावरों अथवा ऊंची बिल्डिगों पर अधिक पावर वाले ट्रांसमिशन के इस्तेमाल का प्रचलन है। ताजा अध्ययन कहते हैं कि मोबाइल सेट के अधिक इस्तेमाल से मस्तिष्क की आंतरिक कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है। समिति का विचार है कि सिर के साथ मोबाइल फोन के संपर्क को सीमित करने के लिए ब्लूटूथ हैंडसेट और ईयरफोन जैसी हैंडफ्री और ईयरफोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उपभोक्ताओं को यह मालूम होना चाहिए कि उनके हैंडसेट का रेडिएशन लेवल क्या है। मोबाइल कंपनियों को अब विभिन्न मोबाइल हैंडसेट्स के स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट (एसएआर) खरीदारों को बताने होंगे। 

दूरसंचार विभाग शीघ्र ही हैंडसेट निर्माताओं से बातचीत करके इस बारे में ऑर्डर जारी करेगा। एसएआर हैंडसेट के इस्तेमाल के वक्त शरीर द्वारा सोखी जाने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी एनर्जी की मात्रा निर्धारित करने का पैमाना है। सरकार उन कंपनियों पर भी कार्रवाई करेगी, जो मोबाइल टॉवरों से इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन के बारे में जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही हैं अथवा जो अपनी टॉवरों को सेल्फ सर्टिफाई करने में असफल रही हैं। ऐसी कंपनियों पर प्रत्येक बेस स्टेशन के लिए पांच लाख का जुर्माना लगाया जाएगा। हैंडसेट का एसएआर लेवल 1.6 वाट/ केजी से अधिक नहीं होना चाहिए। मोबाइल रेडिएशन पर समिति की सिफारिशों को सरकार को गंभीरता पूर्वक लेना चाहिए और इन्हें जल्द से जल्द लागू करवाने की चेष्टा करनी चाहिए। साथ ही मोबाइल उपभोक्ताओं को हैंडसेट के सही इस्तेमाल के बारे में बताया जाना चाहिए। मोबाइल फोन पर लंबी बातचीत करने से बचना चाहिए। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के मामले में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है(मुकुल व्यास,दैनिक जागरण,दिल्ली,9.2.11)।

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