बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

जसलोक अस्पताल ने ढूंढा पार्किंसन का इलाज़

पार्किंसन रोग से जूझ रहे मुंबई के हजारों लोगों के लिए यह खबर वरदान से कम नहीं है। जसलोक हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने इसके इलाज के लिए सस्ती सर्जरी 'सबथैलेमिक न्यूक्लियस लीजनिंग' में सफलता हासिल करके सबको चौंका दिया है। इस तकनीक से पार्किंसन का इलाज डेढ़ लाख रु में किया जा सकेगा। फिलहाल पार्किंसन के इलाज की डीबीएस तकनीक में 6 लाख रु का खर्च आता है।

जसलोक के स्टीरियोटैक्टिक और फंक्शनल न्यूरोसर्जरी के प्रमुख डॉ परेश दोशी की अगुवाई में भारत में पहली बार अंजाम दी गई इस सर्जरी को मेडिकल हलकों में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। गौरतलब है, डीबीएस सर्जरी यानी 'डीप ब्रेन स्टिमुलेशन' में दिमाग के सबथैलेमिक क्षेत्र में दो इलेक्ट्रोड्स लगाए जाते हैं और इसे नियंत्रित करने के लिए सीने पर पेसमेकर लगाया जाता है। पेसमेकर को हर 6-8 साल में बदलना भी पड़ता है। लेकिन इसका महंगा होना (6 लाख रु) और ऑपरेटेड सेंटर को बार-बार स्टिमुलेट करने जैसी सीमाओं की वजह से यह उतनी लोकप्रिय नहीं हुई।
वहीं एसटीएन में इसी न्यूक्लियस की कोशिकाओं को नष्ट करके पार्किंसन रोग के लक्षणों को स्थाई रूप से नियंत्रित किया जाता है। हाल में अहमदाबाद निवासी 61 वर्षीय पुरुषोत्तम पर इसके सफल प्रयोग का दावा करते हुए डॉ दोशी ने एनबीटी से बताया, 'एडवांस स्टेज का यह मरीज हर रोज 15 पीडी टैबलेट्स ले रहा था। बावजूद इसके वह सामान्य कामकाज के लिए दूसरों पर आश्रित था। सिर में भयंकर दर्द की वजह से आत्महत्या का प्रयास कर चुका यह मरीज डीबीएस अफोर्ड नहीं कर सकता था। लिहाजा हमने बाइलेटरल एसटीएन (सबथैलेमिक न्यूक्लियस के दोनों तरफ की सेल्स को नष्ट करना) सर्जरी आजमाने की सोची।' बकौल डॉ दोशी, सर्जरी सफल रही और मरीज अब हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो चुका है।

बता दें, इससे पहले क्यूबा में इस सर्जरी का प्रयोग हो चुका है, लेकिन यह लोकप्रिय नहीं हो पाई।

क्या होता है पार्किंसन में: व्यक्ति में हॉर्मोन डोपामीन का स्तर कम हो जाता है। इससे ब्रेन के सबथैलेमस न्यूक्लियस की सेल्स, जो शरीर की सक्रियता को नियंत्रित करती हैं, अतिसक्रिय हो जाती हैं।

कितने लोग पीडि़त हैं: प्रति दस हजार में 8-22 लोग इससे पीडि़त हैं। इस रोग में व्यक्ति का अपने पैरों और हाथों पर नियंत्रण खत्म होने लगता है और वह धीरे-धीरे सामान्य कामकाज के लायक भी नहीं रह जाता।

क्या है सबथैलेमिक न्यूक्लियस लीजनिंग
3 गुणा 9 गुणा 5 मिमी साइज और बादाम के आकार के सबथैलेमिक न्यूक्लियस की अतिसक्रिय सेल्स में से 45-50 प्रतिशत को 60 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करके जला दिया जाता है। इससे व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण वापस लौट आता है। लोकल एनेस्थेसिया देकर एक खास तरह की रेडियोफ्रिक्वेंसी जनरेटर मशीन के जरिए ऐसा किया जाता है। लीजन कैसा और कितना बड़ा हो, यह रोग की स्थिति पर निर्भर है। लीजन चूंकि स्थाई होता है इसलिए तकनीक भी डीबीएस के मुकाबले जटिल मानी जाती है(नवभारत टाइम्स,मुंबई,9.2.11)।

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