शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

चमत्कारी है तिल

आदिकाल से तिल धार्मिक रीति-रिवाजों में इस्तेमाल होती आई है। शादी-ब्याह के मौकों पर हवन आदि में तिल के प्रयोग का पौराणिक महत्व सिद्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तिल को बुरी आत्माओं से बचाने वाला माना जाता है। तिल के चिकित्सकीय गुणों के कारण ही इसे माता का दर्जा प्राप्त है। आज भी मकर संक्रांति के मौके पर तिल गुण के लड्डू बनाकर खाने और खिलाने का रिवाज है। तिल जहाँ स्वास्थ्यवर्धक है वहीं इसे मानसिक शांति प्रदान करने वाला भी माना जाता है।

तिल के प्रकार
आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है। काली और सफेद तिल के अलावा लाल तिल भी होती है। सभी के अलग-अलग गुणधर्म हैं। यदि पौष्टिकता की बात करें तो काले तिल शेष दोनों से अधिक लाभकारी हैं। सफेद तिल की पौष्टिकता काली तिल से कम होती है जबकि लाल तिल निम्नश्रेणी की तिल कही जाती है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि तिल में चार रस होते हैं। इसमें गर्म, कसैला, मीठा और चिरपिरा स्वाद भी पाया जाता है। तिल हजम करने के लिहाज से भारी होती है। खाने में स्वादिष्ट और कफनाशक मानी जाती है। यह बालों के लिए मुफीद मानी जाती है। यह दाँतों की समस्या दूर करने के साथ ही श्वास संबंधी समस्या भी दूर करती है। स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध की वृद्धि करती है। उदर की दाह शामक होने के साथ ही यह बुद्धि वर्धक भी मानी जाती है। बार-बार पेशाब करने की समस्या पर काबू पाने के लिए तिल का कोई सानी नहीं है। चूँकि स्वभाव से गर्म होती है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के तौर पर बनाकर खाया जाता है। गजक , रेवड़ियाँ और लड्डू शीत ऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।

तिल के लड्डू उन बच्चों को सुबह और शाम को जरूर खिलाना चाहिए जो रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। तिल के नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और रोग प्रतिरोधक
शक्ति में वृद्धि होती है।

पायरिया और दांत हिलने की शिकायत करने वाले मरीजों में तिल अक्सीर दवा के तौर पर काम करती है। तिल के तेल को मुँह में १०-१५ मिनट तक रखिए, फिर इसी से गरारे करिए। इससे दाँतों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है। गर्म तिल के तेल में हींग मिलाकर भी यह प्रयोग किया जा सकता है। खूनी आँव लगने पर २० ग्राम तिल को ३० मिलीलीटर बकरी के दूध में मिलाकर खाने से तत्काल आराम मिलता है। तिल के पावडर को मक्खन मिलाकर देने से भी ऐसा ही फायदा होता है।

तिल का उपयोग तिल-गुड़ के लड्डू बनाने के अलावा इन्हें ब्रेड, सलाद और डेजर्ड पर गार्निश करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। तिल में विटामिन ए और सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए निहायत जरूरी होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है। इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते।

ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है। तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है। यह कब्ज भी नहीं होने देता।
 
तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन आपकी त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं। सौ ग्राम सफेद तिल से आप 1000 मिलीग्राम कैल्शियम हासिल कर सकते हैं। काली और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है। तिल में मौजूद लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।
चमत्कारिक तिल के गुणों का फायदा उठाना बहुत मुश्किल नहीं है। तिल का तेल नियमित खाद्यतेल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में मौजूद सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊंचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।

चमत्कारिक तिल के गुण
रक्तवर्धकः पानी में भिगोई हुई तिल को कढ़ाई में हल्का सा भून लें। इसे पानी या दूध के साथ मिक्सी में ग्राइंड कर लें। इसे सादा या गुड़ मिलाकर पी सकते हैं। इससे रक्तवर्धक में फायदा होगा।

दर्दनाशक : एक चाय के चम्मच भर तिलबीजों को रातभर एक पानी के गिलास में छोड़ दें। सुबह इसे पी लें। विकल्प के तौर पर सुबह एक चम्मच तिलबीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के पावडर के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें। इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।

मासिकधर्म में दर्द : तिल गुड़ के लड्डू खाने से मासिकधर्म का रक्त निर्बाध गति से बहता है तथा दर्द में आराम मिलता है।

उच्च रक्तचाप : तिल के तेल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।

गठिया : भाँप से पकाए तिलबीजों का पेस्ट दूध के साथ मिलाकर पुल्टिस की तरह लगाने से गठिया में आराम मिलता है(डॉ शशांक वझे,सेहत,नई दुनिया,जनवरी प्रथमांक,2011) ।

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