शनिवार, 1 जनवरी 2011

पंचकर्म चिकित्सा

पंचकर्म शरीर शुद्धि की प्राचीन आयुर्वेदिक विधा है। इसमें शरीर के समस्त विषैले पदार्थ विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से बाहर कर दिए जाते हैं। इससे शरीर के सभी सिस्टम ठीक से काम करने लगते हैं। इसमें पाचन क्रिया, रक्त संचार, फेफड़े, गुर्दे, चयापचय आदि प्रक्रियाएँ शामिल हैं। शरीर को पुनः संतुलित अवस्था लाने के लिए पंचकर्म में अनेक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेद की प्राचीनतम विधाओं में से पंचकर्म एक माना जाता है। रोग को केवल औषधियों के जरिए ही ठीक करने की बजाए विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम किया जाता है। जठराग्नि को चरम स्तर पर पहुँचाना और दोष जैसे मल-मूत्र, स्वेद को दूर करना। शरीर से इनका निष्कासन किया जाना जरूरी है। पंचकर्म द्वारा जननेंद्रियों और कर्मेंद्रियों तथा मन और आत्मा को स्थायित्व प्रदान किया जाता है।

पंचकर्म क्या है?
पंचकर्म का अर्थ है पाँच तरह के कर्म जिनसे शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। देश के दक्षिणी हिस्से को छोड़कर सभी जगह यह माना जाता है कि पंचकर्म यानी मालिश करना है, लेकिन ऐसा नहीं है। पंचकर्म का अर्थ है शोधन क्रिया। तेल द्वारा की जा रही अन्य क्रियाएँ उपकर्म के नाम से जानी जाती हैं। यह चिकित्सा पद्धति हर मरीज के रोग के आधार पर तय की जाती है। हर मरीज की प्रकृति और विकृति एक समान नहीं होती।

तीन तरह से होती है शरीर की शुद्धि
पूर्वकर्म (जठराग्नि को संतुलित करना) : जठराग्नि को संतुलित रखने में सहायक तथा पाचनक्रिया को बढ़ाने वाली औषधियाँ खाने की सलाह दी जाती है। औषधियाँ चयापचय को भी ठीक रखती हैं। औषधियों के बाद घी, तेल आदि पिलाए जाते हैं। तेल मालिश के बाद भाप स्नान कराया जाता है ताकि वसा के स्तर तक के विषैले पदार्थ अलग हो सकें और पाचन प्रणाली तथा मलद्वार तक आ सकें।

प्रधानकर्म : इस क्रिया में भी औषधियों और आहार के माध्यम से शरीर की विभिन्ना प्रणालियों में से शेष रह गए पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। इस दौरान मरीज से अपेक्षा की जाती है कि वह आहार के प्रति लापरवाह न हो तथा वही खाए जिसकी सलाह दी गई है।

पश्चात कर्म : मरीज के स्वास्थ को चरम की प्रक्रिपंचकर्म शरीर शुद्धि की प्राचीन आयुर्वेदिक विधा है। शरीर के समस्त विषैले पदार्थ विभिन्ना क्रियाओं के माध्यम से बाहर कर दिए जाते हैं। इससे शरीर के सभी सिस्टम ठीक से काम करने लगते हैं। इसमें पाचन क्रिया, रक्त संचार, फेफड़े, गुर्दे, चयापचय आदि प्रक्रियाएँ शामिल हैं। शरीर को पुनः संतुलित अवस्था लाने के लिए पंचकर्म में अनेक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है।


विषैले पदार्थों से मुक्ति के लाभः
जठराग्नि संतुलित होती है और चयापचय ठीक होता है।
शरीर बलवान और पुष्ट होता है तथा नवजीवन मिलता है।
बीमारियों का प्रभाव क्षीण होता है।
शरीर की सभी क्रियाओं का संतुलन पुनः लौट आता है।
इन्द्रियों,मन और मेधा का चरम स्तर हासिल होता है।
रक्त शुद्धि होने से त्वचा कांतिमय हो जाती है।
उम्र के कारण शरीर के क्षतिग्रस्त होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है तथा बुढ़ापा देर से आता है।
जीवन लंबे काल तक नीरोग रहता है।

(डॉ. शारिका मेनन,आयुर्वेद कंसल्टेंट, श्री श्री आयुर्वेद पंचकर्म विभाग, आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल आश्रम,बेंगलुरू का यह आलेख नई दुनिया के सेहत परिशिष्ट में दिसम्बर,तृतीय अंक,2010 में प्रकाशित हुआ है)।

3 टिप्‍पणियां:

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।