शुरू हो जाए या दो हफ्ते से ज्यादा समय से मुंह के भीतर निकले छाले (अल्सर) ठीक न हो रहे हों तो यह मुंह का कैंसर शुरू होने का संकेत हो सकता है। आप ज्यादा गर्म पेय पदार्थ या खाना खाते हैं, जिससे अक्सर मुंह के भीतर की त्वचा जल जाती है तो लगातार यह स्थिति भी घातक हो सकती है। मुंह के भीतर की त्वचा जलने से भी कैंसर होने का खतरा है। ऐसा मानना है डेंटल डॉक्टरों का। पंजाब यूनिवर्सिटी में डॉ. एचएस जज डेंटल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रिंसिपल डॉ. के गाबा ने बताया कि इंस्टीट्यूट में जो मरीज आते हैं उनमें तंबाकूयुक्त गुटखा और पान मसाला खाने वालों की बड़ी तादाद है। अगर कभी भी किसी को उपरोक्त लक्षण दिखें तो इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, बल्कि तुरंत डेंटल डाक्टर से संपर्क साधना चाहिए, क्योंकि यह कैंसर हो सकता है। अगर सही वक्त पर पकड़ में आ गया तो इलाज संभव है वरना जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने बताया कि कई लोग बहुत तेज गर्म पेय पदार्थ या खाने की चीजें खाते हैं जिससे मुंह के भीतर की त्वचा जल जाती है। इससे भी ओरल कैंसर होने का खतरा रहता है। ये है बीमारी की वजह : हम जब कुछ भी खाते हैं तो दांतों के ऊपर बचे खुचे खाद्य पदार्थो से बैक्टीरिया (माइक्रो-आर्गेनिज्म) की परत जमनी शुरू हो जाती है। इसे डॉक्टरी भाषा में डेंटल प्लाक कहा जाता है। इन खाद्य पदार्थो में मौजूद कार्बोहाइड्रेट भोजन को सड़ा देता है और दांतों पर बैक्टीरिया तेजाब बना देता है जिससे इनके भीतर सुराख (कैविटी) बनना शुरू हो जाता है जो दर्द करता है या उसमें गरम ठंडा लगता है। इस बीमारी को डाक्टरी भाषा में डेंटल कैरिज कहा जाता है। डॉ. गाबा के अनुसार दांतों पर डेंटल प्लाक का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए कुछ टेस्ट किए जाते हैं। मरक्यूरोक्रोम, एरिथरोसिन नाम की डाई बाजार में उपलब्ध हैं। दवा की तीन चार बूंदें मुंह में डाली जाती हैं और इन डाई को मरीज के मुंह में डाला जाता है जो डेंटल प्लाक वाले स्थान पर जाकर चिपक जाती हैं। इससे प्लाक का स्थान जाना जा सकता है। प्लाक को दूर रखने के लिए सुबह और एक रात के खाने के बाद ब्रश करना जरूरी है। डॉ. गाबा के अनुसार दिन में तीन बार से ज्यादा कोई मीठी चीज न खाएं। दांतों पर जमा मीठा तेजाब में बदल जाता है जिससे सुराख बनते हैं। हमेशा फ्लोराइड वाला टूथ पेस्ट ही इस्तेमाल करना चाहिए। डॉ. गाबा के अनुसार फ्लोराइड वाला पेस्ट दांतों को मजबूत बनाता है और दांतों पर तेजाब के असर को कम करता है। अंगूठा या उंगली चूसने की जिसे आदत है या जो मुंह खोल कर सोते हैं या जिनकी जीभ तालू के साथ नहीं लगती और दांतों से ज्यादा टकराती है तो ऐसे लोगों के दांत टेढ़े मेढ़े या बाहर की ओर हो सकते हैं। इसे डाक्टरी भाषा में माल एक्लूसन कहा जाता है। इन आदतों पर अंकुश लगाना जरूरी है। जीभ दांतों से टकराती है या मुंह से सांस लेने की आदत है तो डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए(दैनिक जागरण,चंडीगढ़,24.1.11)।
उपयोगी पोस्ट।
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