देश में शाकाहारियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2006 में हुए एक सर्वे में शुद्ध शाकाहारियों की तादाद 30 फीसदी बताई गई थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन व यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के सर्वे के मुताबिक भारत में यह तादाद 42 फीसदी तक हो चुकी है। इसके पीछे भारत में खानपान की परंपरागत संस्कृति तो है ही, सेहत को लेकर बढ़ती जागरूकता भी है।
मशहूर शेफ संजीव कपूर इस चलन को स्वाद से भी जोड़ते हैं, जिनकी एक शाकाहारी डिश ‘शाम सवेरा’ इन दिनों खूब पॉपुलर हो रही है। बकौल संजीव, ‘पहले लोगों को लगता था कि शाकाहार में वैराइटी कम है। लेकिन अब फूड पर किताबों, कार्यक्रमों से उनकी जानकारी में इजाफा हुआ है। लोग अब कोई भी डिश ट्राय करने से पहले पूछते हैं कि यह मेरी सेहत के लिए फायदेमंद है या नहीं? जाहिर है, वेजिटेरियन डिश सेहत के लिए अच्छी ही होती हैं।’
बहुत सारे लोग खानपान से आगे बढ़कर जिंदगी के अन्य पहलुओं में भी पशु संरक्षण के विचार को अपना चुके हैं। मशहूर मॉडल मेहर भसीन बताती हैं कि उन्होंने न सिर्फ मांसाहार छोड़ा है, बल्कि जानवरों की खाल से बनाए जाने वाले कपड़े पहनना भी छोड़ दिया है। मेहर ‘ग्रीन’ को हैप्पी कलर मानती हैं। दिल्ली के फैशन डिजाइनर राहुल जैन के मुताबिक, जागरूकता इस हद तक बढ़ रही है कि लोग ग्रीन कलर को तो प्राथमिकता देते ही हैं, वे यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि यह रंग पूरी तरह से प्राकृतिक हो। राहुल बताते हैं कि उनके कस्टमर में 40 प्रतिशत लोग नेचुरल डाई किए हुए कपड़ों की मांग करते हैं।
विदेशों में शाकाहार
2010 के न्यूजपोल सर्वे के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में 10 प्रतिशत लोग वेजिटेरियन हैं। बेल्जियम में हफ्ते का एक दिन वेजी डे घोषित किया जाता है। वेजिटेरियन टाइम्स सर्वे के अनुसार, अमेरिका में तीन फीसदी से ज्यादा युवा शुद्ध शाकाहारी हो गए हैं और करीब आधे फीसदी तो इतने कट्टर हैं कि दूध और शहद जैसे जानवरों से जुड़े प्रोडक्ट भी छोड़ चुके हैं(रंजना, दैनिक भास्कर,दिल्ली ,३०.१.११)।
विदेशों में शाकाहार
2010 के न्यूजपोल सर्वे के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में 10 प्रतिशत लोग वेजिटेरियन हैं। बेल्जियम में हफ्ते का एक दिन वेजी डे घोषित किया जाता है। वेजिटेरियन टाइम्स सर्वे के अनुसार, अमेरिका में तीन फीसदी से ज्यादा युवा शुद्ध शाकाहारी हो गए हैं और करीब आधे फीसदी तो इतने कट्टर हैं कि दूध और शहद जैसे जानवरों से जुड़े प्रोडक्ट भी छोड़ चुके हैं(रंजना, दैनिक भास्कर,दिल्ली ,३०.१.११)।
अच्छी सूचना।
जवाब देंहटाएंनिसंदेह यह जाग्रति प्रेरक लेख है, लोगों का रुझान प्रकृति-सद्भाव हो रहा है। इस प्रस्तुति के लिये आभार
जवाब देंहटाएंवाह! अच्छा लगता है अपने जैसे लोगों की गिनती बढ़ते देख :)
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