मधुमेह रोगी के पैर को अधिक कटने से बचाने की जब उम्मीदें खत्म सी हो गईं तो स्टेम सेल प्रत्यारोपण ने उम्मीदों को नई रोशनी दी। आशा की किरण को जगाया एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस की टीम ने। अस्पताल का दावा है कि उत्तरी भारत में इस तरह पहली बार ऐसी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया है। संस्थान की कार्डियो-थोरेसिक वैस्कुलर यूनिट के मुख्य कार्डियक सर्जन डॉ. मुकेश गोयल ने बताया कि हिसार निवासी 55 वर्षीय रोगी भगवान दास मधुमेह से पीडि़त था। कई अस्पतालों में जाने पर भी उसे अपने पैर के कटने से बचाने की कोई उम्मीद नजर नहीं आई। मधुमेह से पीडि़त होने के कारण रोगी के पूरी तरह से अवरुद्ध हो चुके बाएं पैर में की गई एंजियोप्लास्टी और बाईपास भी विफल हो गई थी। डॉ. मुकेश ने बताया कि आमतौर पर ऐसे रोगियों के लिए पैर को अधिक काटने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। इंस्टीट्यूट प्रबंध निदेशक डा.एन.के.पांडे ने कहा कि स्टेम सेल थेरेपी के बाद रोगी में सुधार की काफी उम्मीद है और रोगी के पैर को काफी कम काटा जा सकता है। डॉ. पांडे ने कहा कि पिछले महीने मरीज भगवान दास उनके अस्पताल आया था। उसके सभी रिकार्ड देखने के बाद उसे स्टेम सेल थिरेपी की सलाह दी गई। इस थिरेपी में रोगी के अपने ही कुल्हे की हड्डियों से अस्थि मज्जा लेकर उसे विशेष मशीन से संसाधित करके पैर की मांसपेशियों में इंजेक्ट कर दिया जाता है। अब स्टेम सेल थिरेपी का इस्तेमाल शरीर के वैसे कई हिस्सों में किया जा रहा है जहां सभी परंपरागत सर्जरी या चिकित्सा थिरेपी असफल हो जाती है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,19.1.11)।
अच्छी जानकारी
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