कैंसर की समस्या बढ़ रही है लेकिन उसके इलाज की एकरूपता नहीं है। कैंसर का इलाज पश्चिमी देशों के दिशा-निर्देश के तहत अब तक हो रहा है। लेकिन अब कैंसर का इलाज भारतीय दिशा-निर्देश के तहत होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि भारतीयों का जीन पश्चिमी देशों के लोगों के जीन से अलग होता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने पेट, गर्भाश्य और मुंह के कैंसर को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इससे यह माना जा रहा है कि इलाज सस्ते हो जाएंगे।
आईसीएमआर ने वर्ष २००७ में कैंसर की पहचान और उसके कारणों का पता लगाने के लिए एक पायलट योजना शुरू की थी। इसमें १३२ कैंसर रोग विशेषज्ञ और वैज्ञानिक शामिल थे। योजना को सफल बनाने के लिए २० उप-केंद्र भी बनाए गए थे। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. वीएम कटौच ने बताया कि २१ तरह के कैंसर रोग होते हैं। योजना में शामिल विशेषज्ञों को निर्देश दिया गया था कि वे मरीजों की जानकारी वैज्ञानिक तरीके पर उपलब्ध कराएं। इलाज के दौरान दी गई दवाओं का असर किस रूप में होता है इसकी भी जानकारी हासिल करें। फिलहाल पेट, गर्भाशय और मुंह के कैंसर के इलाज के लिए दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। बाकी के लिए अभी काम चल रहा है। इस दिशा-निर्देश का पालन सभी डॉक्टरों को करना होगा। पायलट योजना के प्रमुख और एम्स के आईआरसीएच केंद्र के प्रमुख प्रो. जीके रथ ने बताया कि कैंसर का इलाज डॉक्टर अपने-अपने हिसाब से करते हैं। अब तक भारत पश्चिमी देशों के दिशा-निर्देश पर इलाज कर रहा था। जबकि पश्चिमी देशों के लोगों का जीन भारतीय के जीन से अलग होता है। मसलन भारतीय का हीमोग्लोबिन सामान्यतया दस ग्राम होता है जबकि पश्चिमी देशों में १४ ग्राम होता है। कैंसर पीड़ित महिलाओं में ९० फीसदी भागीदारी गर्भाश्य कैंसर की है। अध्ययनों से बात सामने आई है कि १०० से ज्यादा वायरस कैंसर को बढ़ाने में भागीदारी निभा रहा है। यह वायरस असुरक्षित यौन संबंधों से फैलता है। चिंता का विषय यह है कि गर्भाश्य के कैंसर का समाज के गरीब व मध्य वर्ग की महिलाओं में ज्यादा हो रहा है। दिशा-निर्देश से इलाज सस्ता हो जाएगा। निर्देश में रोग के लक्षण, प्रकृति और रूप को इंगित किया गया है। इसका फायदा यह होगा कि मरीजों को अनाप शनाप दवा न दी जा सकेगी। अनाप शनाप दवा देने के मामले सामने आने पर डॉक्टर सजा पाने से भी नहीं बच सकेंगे(अमर उजाला,दिल्ली,16.1.11)
चलिए, कुछ तो सुकून मिलेगा कैंसर रोगियों को।
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