राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) अब पहली बार देश के असली गांव-देहातों तक पहुंचने की तैयारी में है। गांवों के नाम पर शुरू हुई इस योजना में अब तक अधिकांश रकम जिला मुख्यालयों में ही खर्च की जाती रही है, लेकिन अब यह छोटे शहरों और कस्बों से भी आगे जा कर पंचायत व उससे भी निचले स्तर पर पहुंचेगा। इस योजना के तहत मिलने वाली रकम का 70 से 80 फीसदी हिस्सा अब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और उप केंद्र (एससी) पर खर्च करने की तैयारी की गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि 14 महीने के अंदर शहरी इलाके के लिए अलग से शहरी स्वास्थ्य मिशन शुरू हो जाएगा। इसलिए सुदूर गांव-देहात तक पहुंचाने की नई रणनीति पर काम करना जरूरी हो गया है। राज्यों की राजधानियों से ले कर प्रमंडल और जिला ही नहीं, अनुमंडल तक के स्वास्थ्य ढांचे का भी ध्यान शहरी मिशन के तहत रखा जा सकेगा। इसलिए बेहद जरूरी है कि अभी से ग्रामीण योजना को अपने मूल लक्ष्य में लगाया जाए। स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने इस नई तैयारी के बारे में राज्यों को आगाह कर दिया है। हैदराबाद में चल रही राज्य स्वास्थ्य मंत्रियों की दो दिन की बैठक में उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि इस योजना का 70 से 80 फीसदी धन सीधे स्वास्थ्य उप केंद्रों और प्राथमिक केंद्रों पर खर्च किया जाए। आजाद के मुताबिक डॉक्टर या प्रशिक्षित दाई की देख-भाल में होने वाला प्रसव 47 फीसदी से बढ़ कर 72 फीसदी हो गया है। इसी तरह दूसरे पैमानों पर भी काफी तरक्की हासिल हुई है, लेकिन अगली पंचवर्षीय योजना में भी इसे और ज्यादा रकम के साथ मंजूरी दिलाने के लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य पैमानों पर और बेहतर नतीजे लाएं। यह नई रणनीति के जरिए ही मुमकिन हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक गांवों के नाम पर बनी इस योजना के लिए पिछले छह साल में लगभग 68 हजार करोड़ रुपये जारी हो चुके हैं। इसके बावजूद अब तक 65 हजार स्वास्थ्य उप केंद्रों के पास अपना कमरा तक नहीं। सात हजार उप केंद्रों में एक ट्रेंड नर्स दाई तक नहीं। इसी तरह 2,330 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना डॉक्टर के ही चल रहे हैं(मुकेश केजरीवाल,दैनिक जागरण,दिल्ली,मकर संक्रांति-2011)
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