राजधानी दिल्ली में मनोरोगियों की संख्या में प्रति वर्ष पांच से दस फीसदी की दर से इजाफा हो रहा है, लेकिन उनके इलाज के लिए डॉक्टरों का अभाव है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स), राममनोहर लोहिया और इबहास को छोड़ कर अन्य सरकारी अस्पतालों में मनोरियों के इलाज की व्यवस्था तक नहीं है। बिखरते परिवार, आर्थिक दबाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण दिल्ली जैसे महानगर में मानसिक रोगियों में बड़ी तादाद महिलाओं की है।
जानकारी के मुताबिक भारत में मनोरोगियों की संख्या १५ फीसदी है। करीब १५ करोड़ लोग मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं, लेकिन इनके इलाज के लिए डॉक्टरों का अभाव है। देश में केवल चार हजार मनोचिकित्सक हैं जबकि जरूरत ४० से ५० हजार की है। इस समय मानसिक रोगियों का ८० फीसदी इलाज निजी क्षेत्र में हो रहा है।
दिल्ली मनोचिकित्सा केंद्र के निदेशक डॉ. सुनील मित्तल ने बताया कि हाल ही में नेशनल कांग्रेस ऑफ द इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी (एनसिप के) के वार्षिक अधिवेशन में इस बात पर चिंता जाहिर की गई कि मरीजों के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या नगण्य है। सरकार को देश भर में बेसिक मेंटल हेल्थ प्रोग्राम को मजबूत करने की जरूरत है। मेंटल हेल्थ प्रोग्राम को इस समय देश के ६०० जिलों में पहुंचाने का लक्ष्य है, लेकिन पहुंच केवल १४० जिला तक ही हुआ है।
वास्तव में एमबीबीएस और एमडी में मेंटल हेल्थ पर केवल १० लेक्चर होते हैं, जिस कारण डॉक्टर तैयार नहीं होते। देश के ३३० मेडिकल कॉलेज में से केवल १०३ मेडिकल कॉलेजों में मनोचिकित्सा की पढ़ाई है। शिक्षकों की कमी के कारण इन कॉलेजों में भी पढ़ाई से अधिक कोर्स पूरा करने पर जोर होता है। डॉ. सुनील मित्तल के अनुसार सरकार को जिला स्तर पर निजी डॉक्टरों व फीजिशियनों को मानसिक हेल्थ की शिक्षा देने की जरूरत है। इसके लिए शॉर्ट टर्म ओरिएंटेशन कोर्स चलाया जा सकता है और इसे प्राइमरी हेल्थ केयर के साथ जोड़ कर सफल बनाया जा सकता है। यदि सरकार ऐसा नहीं कर सकी तो भविष्य में मुश्किलें पैदा होंगी। जिस तरह से परिवार बिखरने, रिश्ते टूटने, तलाक, प्रताड़ना, तनाव, अवसाद आदि के मामले बढ़ रहे हैं, उससे निकट भविष्य में देश में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ेगी और उनके इलाज के लिए डॉक्टर नहीं होंगे(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,31.1.11)।
वास्तव में एमबीबीएस और एमडी में मेंटल हेल्थ पर केवल १० लेक्चर होते हैं, जिस कारण डॉक्टर तैयार नहीं होते। देश के ३३० मेडिकल कॉलेज में से केवल १०३ मेडिकल कॉलेजों में मनोचिकित्सा की पढ़ाई है। शिक्षकों की कमी के कारण इन कॉलेजों में भी पढ़ाई से अधिक कोर्स पूरा करने पर जोर होता है। डॉ. सुनील मित्तल के अनुसार सरकार को जिला स्तर पर निजी डॉक्टरों व फीजिशियनों को मानसिक हेल्थ की शिक्षा देने की जरूरत है। इसके लिए शॉर्ट टर्म ओरिएंटेशन कोर्स चलाया जा सकता है और इसे प्राइमरी हेल्थ केयर के साथ जोड़ कर सफल बनाया जा सकता है। यदि सरकार ऐसा नहीं कर सकी तो भविष्य में मुश्किलें पैदा होंगी। जिस तरह से परिवार बिखरने, रिश्ते टूटने, तलाक, प्रताड़ना, तनाव, अवसाद आदि के मामले बढ़ रहे हैं, उससे निकट भविष्य में देश में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ेगी और उनके इलाज के लिए डॉक्टर नहीं होंगे(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,31.1.11)।
आधुनिक जिंदगी का खामियाज़ा है मानसिक बीमारियाँ ।
जवाब देंहटाएंbahut hi vicharniya lekh....... sach bahut hi dayniya sthiti hai.
जवाब देंहटाएं