गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

गुड़गांव में मिलेगा अपने जैसा कृत्रिम घुटना

गु़ड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी अब घुटना बदलने की सर्जरी करने वाले दुनिया के उन चंद केंद्रों में शुमार हो गया है जहां हर पांव के लिए कृत्रिम घुटने की खास सर्जरी की जाती है। मेदांता बोन एंड ज्वाइंट इंस्टिट्यूट के चेयरमैन डॉ. अशोक राजगोपाल ने हाल में इस विधि से ६ सर्जरी करने के बाद दावा किया है कि इससे पारंपरिक तरीके से की जाने वाली घुटने बदलने की सर्जरी की सारी खामियां दूर हो जाती हैं ।

बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में मेदांता मेडिसिटी के सीएमडी डॉ. नरेश त्रेहान ने कहा कि भारत में इस तरह की सर्जरी शुरू करने वाला मेदांता पहला अस्पताल है। सर्जरी की यह नई तकनीक बुजुर्गों के लिए वरदान साबित होने वाली है। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के हड्डी विशेषज्ञ डॉ. राजगोपाल ने कहा कि दुनिया में कोई भी दो घुटने एक जैसे नहीं होते। खराब घुटने वाले सब मरीजों में एक सी सर्जरी कर देने से टांग की हरकत कभी सामान्य नहीं हो पाती । साफ दिखता है कि टांग में बाहर से कुछ लगाया गया है। लेकिन नई तकनीक में कृत्रिम इंप्लांट पांव का एक स्वाभाविक हिस्सा बन जाता है ।

डॉ. राजगोपाल ने कहा कि एक सॉफ्टवेयर की मदद से वास्तविक सर्जरी के पहले यह तय हो जाता है कि कहां क्या कट लगाना है । सर्जरी का यह प्लान टांग के थ्री डी इमेज देखते हुए तैयार किया जाता है । फिर यह प्लान बेल्जियम भेजा जाता है जहां बैठे तकनीकी विशेषज्ञ जांच कर यह बताते हैं कि वह सटीक है या नहीं। इस तरह की सर्जरी में बहुत कम उपकरणों की जरूरत होती है । डॉ. राजगोपाल ने कहा कि इस तकनीक की खासियत यह है कि इंप्लाइंट के बाद पूरा पांव, घुटने से लेकर जांघ तक एक सीध में आ जाता है। सर्जरी का समय एक दम कम हो जाता है। संक्रमण की आशंका नहीं के बराबर रह जाती है(नई दुनिया,दिल्ली,23.12.2010)।

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अब ए, बी या सी किसी भी नाप का घुटना प्रत्यारोपित कराने की जरूरत नहीं रह गई है, क्योंकि अब खासतौर पर आपके ही घुटने की कार्बनकापी तैयार करके आपके लगाई जा सकेगी। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि रोगी को ऑपरेशन के बाद होने वाली पीड़ा से पूरी तरह निजात मिल जाएगी। मेदान्त मेडिसिटी के बोन एंड ज्वायंट रिप्लेसमेंट विभाग के प्रमुख डॉ. अशोक राजगोपाल ने कहा कि जैसे 8 या 9 नंबर के जूते ही पैर में फिट करने पड़ते हैं उसी तरह ए से एफ तक नंबर के घुटने सभी मरीजों को लगाने पड़ते थे लेकिन अब हर मरीज के लिए अलग आकार-प्रकार का घुटना बनाकर उसे लगाया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि ऐसा एक खास प्रकार के एमआरआई स्कैन की मदद से किया जाएगा। डॉ. राजगोपाल ने बताया कि रोगी के घुटने का यह खास एमआरआई स्कैन मिनटों में बेल्जियम स्थित ऑनलाइन सेंटर पहुंच जाएगा जहां घुटना तैयार करके चिकित्सक तक पहुंचा दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि अभी तक घुटने को एक अलग अंग की तरह मानकर प्रत्यारोपित किया जाता था इसीलिए ऑपरेशन के बाद काफी तकलीफें पेश आ रही थीं, लेकिन वर्चुअल टोटल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी में हर रोगी के घुटने की अलग कार्बन कापी तैयार की जाती है। फिर उसके लिए खासतौर पर घुटना तैयार किया जाता है। डॉ. राजगोपाल ने कहा कि इस सर्जरी का लाभ 140 किलो यानी करीब 300 पौंड तक के वजन वाले तथा किसी भी उम्र के व्यक्ति उठा सकेंगे। इसके अलावा इसमें चीरफाड़ भी कम होगी। मेदान्त के प्रमुख डॉ. नरेश त्रिहन ने बताया कि यह तकनीक अधिक सफल इसलिए है क्योंकि इसमें केवल घुटने का नहीं बल्कि पूरे पैर के संतुलन को ध्यान में रखा जाता है। खासकर कूल्हे घुटने और टखने का। उन्होंने बताया कि इस सर्जरी में करीब तीस हजार रुपये प्रति घुटना अतिरिक्त खर्च आएगा लेकिन रोगी 3-4 हफ्ते में ही सामान्य रूप से चलने-फिरने लगेगा। उन्होंने बताया कि इस प्रकार से तैयार घुटने की आयु 35 वर्ष या इससे भी अधिक हो सकती है। डॉ. त्रिहन ने बताया कि इस प्रकार की पहली सर्जरी गत 17 दिसंबर को की गई जिसके बाद से अब तक कई सर्जरी की जा चुकी हैं तथा सभी सफल रही हैं। उन्होंने बताया कि इस पद्धति से सर्जरी कराने के लिए रोगी को कम से कम दो हफ्ते पहले पंजीकरण एवं जांच का काम पूरा कराना पड़ता है ताकि ठीक उसी के नाम का घुटना तैयार किया जा सके।

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