शनिवार, 4 दिसंबर 2010

विपश्यना से खिलता है मन का कमल

जब से मेरे जीवन में विपश्यना आई है, मेरा जीवन बदल गया है। यह विपश्यना किसी स्त्री का नाम नहीं है- यह एक ध्यान-पद्धति का नाम है, जो भगवान बुद्ध के समय से चली आ रही है।

ध्यान की सैकड़ों विधियां हैं और इनमें से अधिकांश विधियों को करने में कुछ पुरुषत्व की जरूरत होती है, लेकिन विपश्यना ध्यान की एक स्त्रैण विधि है, जिसमें कुछ करना नहीं होता है, सिर्फ होना होता है। इसमें आपकी उपस्थिति, आपका होना ही पर्याप्त है फिर जो कुछ भी होता है अपने से होता है।

आज सुबह-सुबह बिस्तर पर पड़े-पड़े पक्षियों का कलरव सुन रहा था और सुनते-सुनते विपश्यना हो रही थी। कल रात बिस्तर पर जाने के पहले एक मित्र झगड़ रहा था, वह भी मैं सुन रहा था और विपश्यना हो रही थी। झगड़े के बाद बिस्तर पर सोने चला गया, मन में बहुत विचार चल रहे थे और उन्हें मैं सिर्फ देख रहा था और विपश्यना हो रही थी। मन में उठे विचारों का कोलाहल धीरे-धीरे स्वयं शांत हो गया और सहज ही नींद लग गई। शरीर को विश्राम में और मन को शांति में उतरते हुए देखने में विपश्यना हो रही थी।

श्वास का आना-जाना स्वयं हो रहा है। दुनिया में हमारे आगमन के पहले दिन से हो रहा है। श्वास के इस आने-जाने को देखना, श्वास ने नासापुटों को स्पर्श किया और वह भीतर गई। श्वास के साथ आप कुछ कर नहीं रहे, यह अपने से ही आपके भीतर जा रही है। श्वास ने आपके फेफड़ों में प्रवेश किया, आपने देखा। श्वास ने नाभिस्थल का स्पर्श किया, आपने देखा। फिर श्वास ने वापस लौटने की यात्रा शुरू की, आपने देखा। श्वास स्वयं बाहर आ गई, आपने देखा। इस पूरी प्रक्रिया में आपने कुछ भी नहीं किया, सिर्फ देखा, देखना निरंतर बना रहा।

आप श्वास पर साक्षी हो गए, साक्षी-भाव बना रहा तो शरीर के तल पर विपश्यना ध्यान हो गया। भगवान बुद्ध ने इसे अनापान सतीयोग का नाम दिया है। योग अर्थात जुड़ना। आप श्वास के आने-जाने के साथ जुड़े रहे।

श्वास की प्रक्रिया के प्रति साक्षी होने के साथ-साथ और भी कुछ इसके आयाम हैं शरीर के तल पर। आप बैठे हैं, चल रहे हैं, भोजन कर रहे हैं, किसी से वार्तालाप हो रहा है या सड़क पर गाड़ियों का बहुत शोर है, आपके शरीर में कुछ उत्तेजनाएं हो रही हैं- आप इस सबको स्वीकार भाव से देख रहे हैं, सुन रहे हैं, आप कोई हस्तक्षेप नहीं करते, केवल देखते हैं और अगर कोई हस्तक्षेप करते भी हैं तो उसे भी देखते हैं- तो इस सारे खेल के भीतर विपश्यना हो रही है। लेकिन यह विपश्यना का शारीरिक तल है।

ओशो कहते हैं कि अगर आप इस तल पर होश रखने में, साक्षी-भाव बनाए रखने में कुशल हो गए तो फिर आप और सूक्ष्म तल पर विपश्यना में प्रवेश कर सकते हैं। वह तल है मन का-मन में निरंतर चलते विचारों का।

आप विश्रामपूर्वक बैठे हैं या अपने बिस्तर पर लेटे हैं। विचारों का रेला चला आ रहा है। आपने उन्हें बुलाया नहीं है; वे बिना बुलाए मेहमानों की भांति चले आ रहे हैं। आप उनके साथ कुछ कर नहीं सकते। डंडा पकड़ कर उन्हें भगाने में नहीं लग जाना है। ऐसे आप उन्हें कभी भगा भी नहीं पाएंगे। उन्हें भी आप ऐसे ही देखें जैसे आप अपनी श्वास को देख रहे थे। देखते ही देखते, निरंतर देखते रहने से विचार स्वयं शांत हो जाते हैं और एक निर्विचार भाव-दशा में आपका सहज ही प्रवेश होता है।

विचार के तल पर होश और जागरण के बाद अब आप और सूक्ष्म तल पर उतर सकते हैं-अपनी भावनाओं के तल पर। आपके भीतर क्रोध की, ईर्ष्य़ा की, कामवासना की कोई लहर उठी। आप इस लहर के उठने के समय जागे रहे तो यह लहर स्वयं शांत हो जाएगी।

अगर आपने होश न रखा तो यह लहर एक तूफान, एक झंझावत का विकराल रूप धारण कर लेगी और उसमें आप कहां खो गए आपको पता भी नहीं चलेगा। ऐसे ही सारी दुनिया में लोग तूफानों के थपेड़े खा रहे हैं और उनमें खो गए हैं। इसलिए दुनिया एक विशाल-विकराल पागलखाना बन गई है। इसलिए सब प्रकार की भावनाओं की उठती लहरों के समय जागे रहना ही विपश्यना का सूक्ष्मतर तल है।

अगर आप शरीर के तल पर, मन के तल पर और हृदय के तल पर, सब प्रकार की भावनाओं के तल पर होश में बने रहे तो आपका साक्षी-भाव परिपक्व हो जाएगा और चौथी भावदशा को उपलब्ध हो जाएंगे। यहां आकर आपकी विपश्यना शुद्धतम हो गई। फिर एक दिन जब मृत्यु आएगी- श्वास बाहर जाएगी और लौटेगी नहीं और आप केवल उसे देख रहे होंगे- तो मृत्यु का कोई भय नहीं पकड़ेगा, आपका अमृत में प्रवेश होगा। आपके भीतर विपश्यना का कमल खिल जाएगा।

भगवान बुद्ध के पूर्व भी यह ध्यान-विधि अस्तित्व में थी। विज्ञान भैरव तंत्र में भगवान शिव ने अपनी प्रियतमा पार्वती को इस विधि के अनेक आयामों की अनुभूति कराई। लेकिन गौतम बुद्ध ने इस विधि को एक वैज्ञानिक आधार दिया, उनके हजारों-लाखों शिष्यों ने इसे व्यापक पैमाने पर अपनाया। आधुनिक युग में संबुद्ध रहस्यदर्शी जे. कृष्णमूर्ति ने च्वायसलेस अवेयरनेस के नए नाम से इसे अपनाया और सिखाया। ओशो ने इस विधि का पूर्ण परिष्कार किया और सक्रिय ध्यान जैसी विधियों के माध्यम से इस कोमल स्त्रैण ध्यान-विधि की एक सशक्त भूमिका तैयार की(स्वामी चैतन्य कीर्ति,हिंदुस्तान,दिल्ली,3.12.2010)।

7 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तव में इसके द्वारा मन के कमल बिगसित हो जाते है!!

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  2. राधारमण जी बहुत अच्छी पोस्ट लगाई है आपने। इस विषय पर बहुत दिनों से पढना चाह रहा था।
    कुछ दिन किया भी था। बहुत प्रभावी है यह ध्यान योग!

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  3. विपश्यना सचमुच एक बड़े काम की साधना है ।

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  4. विचार के तल पर होश और जागरण के बाद अब आप और सूक्ष्म तल पर उतर सकते हैं-अपनी भावनाओं के तल पर। आपके भीतर क्रोध की, ईर्ष्य़ा की, कामवासना की कोई लहर उठी। आप इस लहर के उठने के समय जागे रहे तो यह लहर स्वयं शांत हो जाएगी।
    bahut kaam ki janakari sir.

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