एचआईवी/एड्स के इन्फेक्शन से बचाव के लिए अब काउंसलिंग और कॉन्डम के साथ - साथ पिल का विकल्प भी उपलब्ध हो गया है। हाल ही में हुई स्टडी के मुताबिक , एंटीरेट्रोवायरल कीमोप्रॉफीलेक्सिस दवा एचआईवी वायरस को फैलने से रोक सकती है। अगर रिस्क ग्रुप को पहले ही यह दवा दे दी जाए , तो उसमें संक्रमण का खतरा 44 फीसदी तक कम हो जाएगा।
डॉक्टरों का कहना है कि यह तरीका एचआईवी पीड़ितों के साथ काम करने वालों और असुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन के मामले में काफी अच्छा साबित हो सकता है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक , स्टडी में शामिल जिन पुरुषों ने कॉन्डम के साथ इस पिल का इस्तेमाल किया था , उनमें सिर्फ कॉन्डम का इस्तेमाल करने वाले ग्रुप के मुकाबले इन्फेक्शन काफी कम पाया गया। महिलाओं को इन्फेक्शन से बचाने के लिए मार्केट में आई जेल के मुकाबले यह पिल ज्यादा असरदार पाई गई , क्योंकि उससे इन्फेक्शन का खतरा 39 फीसदी तक कम होता है और पिल से 44 फीसदी तक।
अपोलो हॉस्पिटल के एक्सपर्ट डॉ . नलिन नाग के मुताबिक, ‘दवा इन्फेक्शन के रिस्क से पहले लेना शुरू करना होता है और सात दिन तक लेना होता है , जबकि हाल ही में आई पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस 28 दिन तक इस्तेमाल करनी होती है।’ बकौल नलिन, ‘पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस ड्रग्स के मामले में जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत है , ताकि रेप की शिकार और स्वास्थ्यकर्मियों को इसे देकर उन्हें बीमारी के खतरे से बचाया जा सके। ’
हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ . के . के . अग्रवाल कहते हैं कि एचआईवी / एड्स कंट्रोल के मामले में ये दवाएं साल की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं। उनका कहना है कि प्री - एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस ड्रग्स एक्सिडेंट आदि के शिकार उन मरीजों को जीवनदान दिला सकती है , जो ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में पहुंचते हैं। उन्हें ब्लड की जरूरत होती है , लेकिन हॉस्पिटल में ब्लड जांच सुविधा न होने की वजह से डोनर उपलब्ध होने के बावजूद खून नहीं चढ़ाया जा सकता है। ऐसे में , मरीज को अगर एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस देकर उसके ब्लड ग्रुप वाले डोनर का ब्लड सीधे चढ़ा दिया जाए तो उसकी जान बच सकती है(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,6.12.2010)।
के के अग्रवाल की बात में कुछ तो दम है ।
जवाब देंहटाएं