गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

निराशा के क्षणों में "पश्चिमोत्तासन"

यदि अत्यधिक कार्य के दबाव के चलते मन अशांत हो जाता है और इससे कई बार निराशा महसूस होने लगती है। इससे बचने के लिए प्रतिदिन पश्चिमोत्तासन करें।
विधि- समतल भूमि पर आसन बिछाकर दोनों पैरों को सीधा सामने करके बैठ जायें। धीरे -धीरे शरीर का ऊपरी भाग आगे की ओर झुकाते हुए दोनों पेरों के अंगूठों को पकडऩे का प्रयास करें। घुटने को न मोणे तथा सिर को घुटनों से मिलाएं। इस स्थिति में कुछ देर रुकें। जब अच्छी तरह अभ्यास हो जाए तो दोनों हाथों की अंगुलियां आपस में फंसाकर दोनों पेरों के तलुओं को पकडऩे का प्रयत्न करें। इस आसन को तीन आवृत्ति में करें। जिन्हें कमर में दर्द हो वे इस आसन को न करें।
लाभ- इस आसन के नियमित अभ्यास से शरीर और मन दोनों स्वस्थ और शक्तिशाली बनते हैं। इसके साथ ही तन और मन के अनेक प्रकार के रोग भी इस आसन को करने से समाप्त होते हैं। शरीर स्वस्थ एवं कांतिमय तथा मन प्रसन्न होता है। आत्मविश्वास बढ़ताहै तथा भय व निराशा समाप्त होते हैं। इससे प्राण की गति इतनी सूक्ष्म हो जाती है कि व्यक्ति एक मिनिट में पांच श्वांस से ही अपना काम चला लेता है। इससे व्यक्ति दीर्घायू होता है। इस आसन के करने से चर्म रोग दूर होते हें तथा कमर पतली व सुडोल होती है। इस आसन के करने से अनिद्रा दूर होती है तथा अच्छी व अटूट नींद आती है(दैनिक भास्कर,उज्जैन,1.12.2010)

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