अपने-अपने देशों की आर्थिक विकास दर बढ़ाने में मशगूल दुनिया की तमाम सरकारें अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर कितनी बेपरवाह हैं, इसका अंदाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन की वार्षिक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। पिछले दिनों जारी हुई इस रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनियाभर में लगभग दस करोड़ लोग अपनी अलग-अलग बीमारियों के चलते मुपᆬलिसी की हालत में पहुंच जाते हैं। यानी बीमारियों से लड़ने की भारी कीमत चुकानी पड़ती है लोगों को। बीमारियों का यह दुष्चक्र हमें अपने देश में भी आसानी से देखने को मिल जाता है, जहां अच्छा-भला, खाता-पीता परिवार अपने किसी एक सदस्य की किसी गंभीर बीमारी की जकड़न में आ जाने से थोड़े ही दिनों में आर्थिक रूप से कंगाल हो जाता है और उसकी जमीन-जायदाद, मकान आदि बिकने की नौबत आ जाती है। अगर बीमार व्यक्ति कमाने वाला हो, तो परिवार पर दोहरी मार पड़ती है क्योंकि एक तो परिवार की जमा पूंजी उस व्यक्ति के इलाज पर खर्च हो जाती है और दूसरे उस व्यक्ति के बिस्तर पकड़ लेने से उसके काम-धंधे से होने वाली आमदनी भी बंद हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि तमाम देशों की सरकारों को अपने यहां सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार कर अपने लोगों को बीमारी के इस दुष्चक्र से बचाना चाहिए। आज भारत दुनिया के उन मुल्कों में शुमार किया जाता है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी बजट का सबसे कम खर्च होता है। देश के चालू साल के बजट को ही देखें, तो उसमें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महज २२,३०० करोड़ रुपए रखे गए हैं जो हमारे सकल घरेलू उत्पाद का महज ०.३६ फीसदी है। एक अनुमान के मुताबिक केंद्र सरकार, राज्य सरकारें तथा स्थानीय निकाय तीनों मिलकर जितना पैसा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करते हैं, उससे लगभग तीन गुना ज्यादा पैसा लोग खुद ही अपने इलाज पर खर्च कर देते हैं। यह हालत तब है जबकि एड्स आदि बीमारियों से लड़ने के लिए वैश्विक संस्थाओं से मदद मिल जाती है। सरकारी और निजी स्तर पर होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खर्च की राशि के इस फर्क का एक कारण तो है सरकारों की जन-सरोकारों के प्रति उदासीनता और दूसरा है, बीमारियों से होने वाली जन-धन की हानि को देश की नहीं, बल्कि निजी हानि मान लेना। अपने लोगों के स्वास्थ्य के प्रति यदि हमारी सरकारें अपना यह दृष्टि-दोष दूर कर लें तो लोगों को बीमारी के चलते बदहाल होने से और असमय मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है(संपादकीय,नई दुनिया,दिल्ली,26.11.2010)।
बहुत चिंताज़नक स्थिति है ।
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च बढ़ाना चाहिए ।
i fully agree
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