दिल्ली के स्कूली स्टूडेंट्स जरूरी मात्रा से चार गुना ज्यादा खाते हैं। इसमें भी 70 पर्सेंट जंक फूड होता है। यही वजह है कि इस ग्रुप में मोटापे और डायबीटीज की समस्या तेजी से बढ़ रही है। नैशनल डायबीटीज फोरम की स्टडी के मुताबिक, पिछले तीन बरसों में डायबीटीज पीडि़त स्टूडेंट्स की तादाद 9.8 से 11.7 पर्सेंट तक पहुंच गई है और मोटे स्टूडेंट्स की तादाद 11.6 से बढ़कर 17 पर्सेंट तक हो गई है।
सरकारी के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों के स्टूडेंट्स की हालत ज्यादा खराब है। फोरम के एक्सर्पट्स ने आठ शहरों, (दिल्ली, मुंबई, आगरा, इलाहाबाद, देहरादून, जयपुर और लखनऊ) के स्कूली स्टूडेंट्स की फूड हैबिट, फिजिकल एक्टिविटी और जागरूकता के बारे में स्टडी की। इनमें दिल्ली के स्टूडेंट्स की हालत सबसे ज्यादा खराब पाई गई।
यहां के 14 से 18 साल की उम्र के स्कूली बच्चों में मोटापा और डायबीटीज खतरनाक रफ्तार से बढ़ रही है। लड़कों में मोटापा 32.2 से बढ़कर 25.2 पर्सेंट हो गया है। नैशनल ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. अनूप मिश्रा का कहना है कि यहां के स्टूडेंट्स की खान-पान की आदतें बेहद खराब हैं।
वे रोज औसतन 78 ग्राम फैट लेते हैं, जो कि जरूरत से चार गुना ज्यादा है। कोल्ड ड्रिंक के रूप में ये रोजाना औसतन 30 कैलोरी लेते हैं। हर तीसरा स्टूडेंट हफ्ते में एक बार से ज्यादा बाहर खाता है। इनमें से 35 पर्सेंट कोला पीते हैं, 23 पर्सेंट बर्गर खाते हैं और 36.4 पर्सेंट पीत्सा खाते हैं।
36 पर्सेंट लड़के और 38 पर्सेंट लड़कियां रोज खाने में एक पर्सेंट से ज्यादा ट्रांस फैटी एसिड लेती हैं, जो कि शरीर में गंदा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने का काम करता है।इतना ही नहीं, 35 पर्सेंट टीचर्स और पेरंट्स को सैचुरेटेड फैट के बारे में जानकारी नहीं है। 60 पर्सेंट पेरंट्स और 50 पर्सेंट टीचर्स यह मानते हैं कि बटर सैचुरेटेड फैट में नहीं आता।
खास बात यह है कि ऐसा मानने वालों में करीब 80 पर्सेंट प्राइवेट स्कूल के स्टूडेंट्स के पेरंट्स या टीचर्स हैं। इस सबके साथ 60 पर्सेंट स्टूडेंट्स इंडोर गेम खेलते हैं, जिसमें कोई फिजिकल एक्टिविटी नहीं होती। 47 पर्सेंट बच्चे एक घंटे ही खेलते हैं। 10 पर्सेंट से ज्यादा टीनएजर्स का लिपिड प्रोफाइल असामान्य है।
जब डायबीटीज के प्रौढ़ मरीजों से इससे जुड़े सवाल पूछे गए तो 18 पर्सेंट को बीमारी से होने वाली जटिलताओं के बारे में पता नहीं था। 46 पर्सेंट को उनके डॉक्टर ने भी कोई जानकारी नहीं दी थी।
44 पर्सेंट हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड शुगर) के बारे में नहीं जानते, 49 पर्सेंट इंसुलिन इंजेक्शन की सही तकनीक से वाकिफ नहीं थे, 38 पर्सेंट ग्लूकोज मॉनीटरिंग के बारे में नहीं जानते और 33 पर्सेंट मरीज अपने पैरों की विशेष देखभाल नहीं करते। इसी तरह से डाइट में जरूरी फाइबर, हेल्दी तेल, फलों व हरी सब्जियों की भूमिका और बीमारी के कंट्रोल में शारीरिक व्यायाम की भूमिका के बारे में भी 40 से 52 पर्सेंट लोग अनजान थे(नीतू सिंह,नवभारत टाइम्स,13.11.2010)।
आपका ये ज्ञानबर्धक लेख बहुत पसंद आया. आभार .
जवाब देंहटाएंइतने अंग्रेजी शब्द जबरन क्यों घुसाए गए हैं?
जवाब देंहटाएंओह आई डिड नॉट रेड इट इज एनबीटी... सॉरी
माँ बाप के जागरूक होने की जरूरत है।
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