रविवार, 14 नवंबर 2010

तीन महीने में केवल एक बार इंसुलिन लेना होगा पर्याप्त

डायबिटिज के मरीजों के लिए खुशखबरी है, बार-बार इंसुलिन लेने के लिए बीमारी में अब सिर्फ तीन महीने में एक बार ही इंसुलिन लेना पड़ेगा। इंसुलिन के इस आसान विकल्प पर नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ इम्यूनोलॉजी ने शोध किया है। तीन साल तक चले शोध के दौरान सुपरमॉलिक्यूलर इंसुलिन एसेबली टू को विकसित किया गया है। जिसमें रक्त में तीन महीने तक ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने की क्षमता है। शोध पर किए गए कार्य के अनुसार अगले दो साल में इंसुलिन बाजार में होगी। इसके लिए कंपनियों के चयन और पेटेंट की तैयारिया चल रही हैं।

टाइप वन डायबिटिज के मरीजों में इंसुलिन का बनना बंद हो जाता है, ओरल और इंजेक्टेबल इंसुलिन के जरिए रक्त में शर्करा की कमी को दूर किया जाता है। इस तरह के मरीजों को अब तक 15 से 18 घंटे के बीच में तीन से चार बार इंसुलिन का प्रयोग करना पड़ता था। संस्थान के शोध प्रमुख शर्करा नियंत्रित करने वाले हार्मोन की यदि क्षमता को बढ़ा दिया जाएं तो इंसुलिन की निर्भरता को कम किया जा सकता है। इसके लिए सुपर मॉलिक्यूलर इंसुलिन असेंबी टू, जिसे एसए टू का नाम भी दिया गया है। मॉलीक्यूलर को हार्मोन का इस तरह का संगठन कहा जा सकता है, जिसे एक बार लेने के बाद तीन महीने तक रक्त में शर्करा की मात्र को नियंत्रित रख सकते हैं। तीन साल तक किए गए शोध पर दो करोड़ रुपए का खर्च हुआ है। बाजार में लाने से पहले दवा के पेटेंट और कंपनी के चयन का काम प्रमुख माना जा रहा है, जिसमें लगभग दो साल का समय लगेगा(हिंदुस्तान,दिल्ली,12.11.2010)।

3 टिप्‍पणियां:

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