कुदरत ने देवभूमि को न सिर्फ मुक्त हाथों से खूबसूरती प्रदान की है, बल्कि निरोग रहने के लिए औषधीय जड़ी-बूटियों का विपुल भंडार भी दिया है। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वैश्रि्वक महत्व के 87 औषधीय पौधों में से 36 उत्तराखंड में ही अब तक चिह्नित किए जा चुके हैं। सदियों से असाध्य रोगों तक के उपचार में इनका प्रयोग हो रहा है। वक्त की मार के चलते विलुप्ति के कगार पर खड़े इन पौधों के संरक्षण व कृषिकरण की कड़ी में अब विकसित हो रहे औषधीय पादप संरक्षण क्षेत्रों को नोटिफाइड कराने की तैयारी है। रिसर्च के मद्देनजर इन्हें फारेस्ट जीन बैंक के तौर पर भी तैयार किया जा रहा है। देवभूमि उत्तराखंड में सदियों से चली आ रही लोकस्वास्थ्य परंपरा में औषधीय महत्व के पौधों का इस्तेमाल उपचार में होता आया है। पेट की बीमारियां हों या बुखार अथवा कैंसर, डेंगू जैसे रोग, सभी के उपचार में औषधीय महत्व के पौधे रामबाण हैं। उत्तराखंड औषधीय पौधों के मामले में कितना धनी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली लगभग सात सौ प्रजातियां हैं। इनमें भी 36 वैश्विक महत्व के औषधीय पौधे हैं। यह बात अलग है कि औषधीय पौधों के अनियोजित विदोहन और इन्हें सहेजने की दिशा में अनदेखी के चलते ये विलुप्ति के कगार पर हैं। अलग राज्य बनने के बाद अब जाकर उत्तराखंड सरकार इनके प्रति संजीदा हुई है। इस क्रम में स्टेट मेडिशनल प्लांट बोर्ड की पहल पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के तहत वन विभाग के सहयोग से सूबे में छह औषधीय पादप संरक्षित क्षेत्र विकसित किए जा रहे हैं। एसएमबीपी के सीईओ जीएस पांडे अंतर्राष्ट्रीय महत्व के पौधों समेत अन्य औषधीय पौधों को इनमें संरक्षित किया जा रहा है। अब इन क्षेत्रों को वन विभाग के माध्यम से नोटिफाइड कराने की तैयारी है। श्री पांडे के मुताबिक कोशिश यह है कि औषधीय पौधों की इस प्राकृतिक धरोहर को न सिर्फ संजोकर रखा जाए, बल्कि इनका कृषिकरण भी किया जाए। कुछ एनजीओ के माध्यम से कृषिकरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। ग्रामीणों को भी इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि औषधीय पादप संरक्षित क्षेत्रों को फॉरेस्ट जीन बैंक के तौर पर बनाया जा रहा है, ताकि रिसर्च आदि के जरिए इस दिशा में और आगे बढ़ा जा सके(केदार दत्त,दैनिक जागरण,देहरादून,12.11.2010)।
यदि औषधीय खेती पर किसान ध्यान दें, तो इससे उन्हें आर्थिक लाभ भी होगा और आयुर्वेद के प्रति उनका रूझान भी बढेगा।
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मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।