मेरे एक परिचित की बेटी की शादी थी। सारी तैयारियां हो गई थीं। पूरा परिवार कम्यूनिटी हॉल के लिए निकल रहा था, पर लड़की की मां का चेहरा उतरा हुआ था। पूछने पर पता चला, बड़ी बेटी घर में है और वह भी जिद कर रही है, कम्यूनिटी हॉल जाने की, मगर पिता ने उसे इजाजत नहीं दी। उन्होंने कहा, इसे हम वहां नहीं ले जा सकते, अगर लोगों को उसके घर में होने का भी पता चल गया कि तो अनर्थ हो जाएगा। दरअसल, उनकी उस लड़की ने अंतर्जातीय प्रेम विवाह किया है, घर से भागकर। बिरादरी में उन्होंने कह दिया है कि वह मेरे लिए मर गई। अब मरी हुई बेटी भला अपनी बहन की शादी में कैसे शामिल हो सकती है? मेरे परिचित किस प्रदेश या जाति के हैं, यह बताने की जरूरत नहीं। हिंदी पट्टी में यह कहीं का भी किस्सा हो सकता है।
खतरनाक सेक्स रेशियो
आंकड़ों के जाल में उलझना बेकार है। ऑनर किलिंग की लगभग रोजाना आने वाली खबरों से साफ है कि जातिवादी और पुरुषवादी जकड़न के मामले में कोई भी पीछे नहीं है। यूं तो पूरा हिंदीभाषी इलाका इस बीमारी से ग्रस्त है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान इसमें खास तौर पर उल्लेखनीय हैं। सामाजिक विकास की दशा और दिशा नापने के अन्य पैमाने भी इसकी पुष्टि करते हैं। मसलन, आबादी में सेक्स अनुपात की बात करें तो हरियाणा में यह 2002 में 805 और राजस्थान में 2004 में 835 महिला प्रति 1000 पुरुष तक जा चुका है। इसके लिए कन्या भ्रूण हत्या को जिम्मेदार माना जाता है जो लंबे समय से इस क्षेत्र की विशेषता बना हुआ है।
घृणित सामाजिक बीमारी
लड़कियों को बोझ मानने की एक बड़ी वजह यह है कि उनसे पढ़-लिखकर अच्छा रोजगार हासिल करने और परिवार के लिए दो पैसे कमा लाने की अपेक्षा नहीं की जाती। इसके लिए लड़कियों को अच्छी शिक्षा देने और घर से बाहर काम करने की छूट देने की जरूरत है। लेकिन यहां फिर समाज की महिला विरोधी मानसिकता आड़े आ जाती है। साक्षरता दर के आंकड़े इस मानसिकता की झलक पेश करते हैं। 2001-02 में हरियाणा का साक्षरता प्रतिशत 68.59 था, लेकिन इसमें पुरुषों की साक्षरता दर 79.25, जबकि महिलाओं की मात्र 56.31 फीसदी थी। साफ है कि समाज का बड़ा हिस्सा आज भी लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाने के बजाय उन्हें घरेलू भूमिका में रखना ज्यादा बेहतर समझता है। यह स्थिति एक अन्य घृणित सामाजिक बीमारी को जन्म देती है जो लंबे समय से हिंदीभाषी राज्यों की सचाई बनी हुई है, लेकिन उस पर चर्चा करना जरूरी नहीं समझा जाता। वह है इनसेस्ट यानी खून के रिश्ते में आने वाले या करीबी रिश्तेदारों में सेक्स संबंध।
यह अजीब बात है कि समाज का जो हिस्सा गोत्र के अंदर शादी को अस्वास्थ्यकर , अवैज्ञानिक , अपराध और संस्कृति पर कलंक वगैरह बताते हुए इसके लिए हत्या तक को जायज बताता है , वही परिवार के अंदर चलने वाले यौन शोषण पर जुबान खोलने को भी राजी नहीं होता। अंतरंग बातचीत में ज्यादातर पुरुष और स्त्रियां इस बीमारी के मौजूद होने की पुष्टि करते हैं। लेकिन खुले तौर पर जब भी इस पर चर्चा शुरू होती है तो पहला आरोप यही लगाया जाता है कि हमारे समाज को बदनाम करने के लिए ऐसी निराधार बातें की जा रही हैं।
बहरहाल , ये बातें निराधार नहीं हैं। इनकी पुष्टि उन खबरों से होती है , जो गाहे - बगाहे सार्वजनिक हो जाती हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले यह खबर आई थी कि कैथल में 50 से ऊपर के एक किसान ने 30 साल की अपनी बहू से सेक्स संबंध बना लिए। दोनों के बीच रिश्ता करीब एक साल चला। फिर बात पंचायत तक पहुंची तो दोनों को अलग रहने का आदेश दिया गया। इसी तरह भिवानी के एसपी को 16 साल की एक लड़की ने खत लिख कर बताया कि कैसे उसके पिता और चचेरे भाई सात महीने तक उसके साथ सेक्स संबंध बनाते रहे। बाद में उसने अपने बॉयफ्रेंड को यह बात बताई। उसने एतराज किया तो पिता और भाइयों ने उसे बहुत पीटा और पुलिस में उसके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर दिए। जब इस लड़की ने पुलिस के पास जाने की धमकी दी तो उसे भी घर में बंद कर दिया गया। बाद में जब उसे छोड़ा गया तो एक दिन वह अपने बॉयफ्रेंड के साथ घर से भाग गई। फिर लड़के के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करवा दिया गया और कोई नहीं जानता कि वह कपल अब कहां है।
अक्सर सामने आने वाली ऐसी घटनाओं को इक्का - दुक्का कह कर खारिज करने की कोशिश की जाती है। लेकिन , इनपर समाज की प्रतिक्रिया से भी इसका अंदाजा मिलता है कि वह इसे किस रूप में ले रहा है। आखिर कैथल के उस किसान के खिलाफ किसी खाप ने बहिष्कार का आह्वान तक नहीं किया , न इसे समाज का कलंक वगैरह कहा गया और न ही ऐसी कोई सजा देने की जरूरत महसूस की गई जिससे भविष्य में दोबारा कोई ऐसी हिम्मत न कर सके ( जैसा आम तौर पर कहा जाता है ) ।
समीकरण की शर्त
असल में लड़की जब तक चुपचाप सब कुछ झेलती है , तब तक किसी को कुछ गलत नहीं लगता। थोड़ी - बहुत ज्यादती को भी स्वाभाविक मान लिया जाता है। कुछ ज्यादा न्यायप्रिय लोग गंभीर मुद्रा में उसकी निंदा कर देते हैं लेकिन समाज उस पर उबलता नहीं। वह उबलता तब है जब उसके वर्चस्व को चुनौती मिलती दिखती है। परिवार के अंदर के सेक्स संबंध समाज के मौजूदा समीकरण को किसी तरह की चुनौती नहीं देते , लेकिन प्रेम विवाह , अंतरजातीय विवाह या सगोत्र विवाह - संक्षेप में कहें तो लड़की का अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुन लेना - इस समीकरण को उलट - पलट कर देने की क्षमता रखते हैं(प्रणव प्रियदर्शी,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,22.11.2010)।
Nice lines .
जवाब देंहटाएंएक छोटा सा इल्मी तोहफा है मेरे ब्लाग पर ।
जवाब देंहटाएंज्ञान पहेली
क्या आप जानना चाहेंगे कि मैंने निम्न सिद्धांत किसके ब्लाग पर प्रतिपादित किया ?
1, भारतीय नागरिक जी ! जी से पूरी तरह सहमत ।
2, कमी कभी धर्म नहीं होती इसीलिए धर्म में कभी कमी नहीं होती । कमी होती है इनसान में जो धर्म के बजाए अपने मन की इच्छा पर या परंपरा पर चलता है और लोगों को देखकर जब चाहे जैसे चाहे अपनी मान्यताएँ खुद ही बदलता रहता है ।
3, जिसके पास धर्म होगा वह न अपने मन की इच्छा पर चलेगा और न ही परंपरा पर , वह चलेगा अपने मालिक के हुक्म पर , जिसके हुक्म पर चले हमारे पूर्वज ।
4, धर्म बदला नहीं जा सकता क्योंकि यह कोई कपड़ा नहीं है ।
5, जो बदलता है उस पर धर्म वास्तव में होता ही नहीं है ।
6, अब आप बताइए कि नृत्य और हर पल आप उस मालिक के आदेश पर चलते हैं या अपनी इच्छाओं पर ?
तब पता चलेगा कि वास्तव में आपके पास धर्म है भी कि नहीं ?
देखें -
ahsaskiparten.blogspot.com
औरत की तरक्की औरत होने में है न कि मर्द बनने की कोशिश में, अपनी हया ग़ैरत और आबरू गंवाकर माल कमाने में।
जवाब देंहटाएंकभी हमारे ब्लाग पर भी पधारकर उसे भी सुनहरा कर दें ।
औरत की तरक्की औरत होने में है न कि मर्द बनने की कोशिश में, अपनी हया ग़ैरत और आबरू गंवाकर माल कमाने में।
जवाब देंहटाएंकभी हमारे ब्लाग पर भी पधारकर उसे भी सुनहरा कर दें ।
भारतीय संस्कृति में लज्जा को नारी का श्रृंगार माना गया है. पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता कि जो महिलों को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है.
जवाब देंहटाएंअपने आसपास के परिवेश में मौजूद ज्वलंत संवेदनशील एव सामयिक मुद्दों पर रोशनी डालती आलेख,जिसमें हमारे समाज के छिन्न भिन्न होते ताने बाने को समझने की एक बैचेनी और ईमानदार कोशिश परिलक्षित होती है.इस विचारोत्तेजक आलेख के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
Ek Achha Mudda aur gambhir vishya , bahut badhiya.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंजब तक स्त्री सहती रहती है, तब तक सब ढाका छुपा रहता है। जब मुह खोलती है तभी लोगों को पता चलता है। लेकिन एक लड़की ही मारी जाती है दोनों ओर से। बोले तब भी जाए, न बोले तो भी जाए।
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बास बड़ा संवेदनशील मुद्दा उठाया है आपने. आपकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील मुद्दा उठाया है
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