स्वस्थ्य मनुष्य को विकलांग बनाने वाले रोग फाइलेरिया के इलाज में वैज्ञानिकों को नई सफलता मिलने की उम्मीद है। प्रारंभिक स्तर पर इस रोग का इलाज कीमोथैरेपी के माध्यम करने का प्रयास किया जा रहा है। शुरूआती अवस्था में रोग की पुष्टि होते ही परिजीवियों का स्तर जानकर उन्हें निष्क्रिय किया जा सकेगा। इसके लिए वैज्ञानिकों को कुछ हद तक सफलता भी मिली है। शोधकताओं ने रोगी के शरीर से पैरासाइट्स निकाल उसके गुणसूत्रों को समझकर रोग को जड़ से नष्ट करने कवायद शुरू कर दी है। फाइलेरिया जिसे लोग फीलपांव अथवा हाथीपांव भी कहते हैं, मनुष्य को एक अवधि के बाद असहाय पीड़ा देता है। यह रोग मनुष्य के जिस हिस्से को संक्रमित करता है वहां पर मांस का स्तर काफी मात्रा में बढ़ जाता है। मच्छर के काटने के बाद यह रोग लगभग दस वर्ष के बाद अपना असर दिखाना शुरू करता है। इस अवधि के अंदर यह शरीर के ग्लूकोस एवं प्रोटीन के माध्यम से पनपता रहता है। अब तक दुनिया के किसी भी हिस्से में इसका निश्चित इलाज नहीं खोजा गया है।
लखनऊ में केंद्रीय औषधि शोध संस्थान में इस रोग के निवारण हेतु विशेष शोध कार्य शुरू किया गया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जन्तु विज्ञान विभाग के प्रो. एसके मेहरोत्रा का कहना है कि कहना है कि इस रोग के चिकित्सा जगत में फाइलेरिया के लिए अब तक मात्र दो ही दवाएं ही कारगर साबित हुई हैं। इसमें फाइलेरिया डाफाइल एवं कारबोनीन आइवर मैक्टिन हैं, लेकिन यह औषधियां निर्धारित अवधि तक ही मरीज को फायदा पहुंचाती हैं। रात में दस बजे से भोर चार बजे के आसपास जब फाइलेरिया के परिजीवी सक्रिया होते हैं तो ये दवाएं भी काम करना बंद कर देती हैं। यह समय मरीज के लिए अत्यंत पीड़ादायक होता है। सेंट्रल ड्रग इंस्टीट्यूट में चल रहे रिसर्च में वैज्ञानिक प्रयासरत हैं कि मूल परजीवियों को औषधियों के माध्यम से खत्म किया जा सके। नये शोध में इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा है कि समस्त प्रक्रिया में रोगी को शारीरिक हानि न हो(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,6.11.2010)।
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