रेल स्वास्थ्य निदेशालय ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि हमारे अस्पतालों में भर्ती मरीजों पर दवाएं असर नहीं कर रही हैं। ये मानक के मुताबिक नहीं हैं और बहुत घटिया हैं। इसी रिपोर्ट को आधार मानते हुए रेलवे ने 24 अक्टूबर को अपने अस्पतालों में 23 कंपनियों की इन दवाओं के इस्तेमाल पर तत्काल रोक लगा दी। कंपनियों पर जुर्माना भी लगाया गया है। इनमें से चार कंपनियां सरकारी हैं। रेलवे की यह रिपोर्ट दवा कारोबार में हो रही व्यापक धांधली का प्रमाण है। उत्तर रेलवे के मुख्य चिकित्सा निदेशक डॉक्टर आरएन त्रिपाठी के अनुसार उत्तर रेलवे के पांच मंडल अस्पतालों और उसके अधीन क्लीनिकों से पिछले एक साल से लगातार दवाओं की गुणवत्ता को लेकर शिकायतें आ रही थीं। अस्पतालों में भर्ती मरीज स्वास्थ्य में सुधार न होने की शिकायतें करते और डॉक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि खामी कहां पर है। उत्तर रेलवे की ओर से अप्रैल 2010 से अब तक चार बार लिखित शिकायत रेल स्वास्थ्य निदेशालय से की जा चुकी है। कई जोनल मुख्यालयों ने भी गुणवत्ता घटिया होने की शिकायत निदेशालय से की। तब रेलवे में शीर्ष स्तर पर चर्चा हुई और तय हुआ कि दवाओं के नमूनों की जांच करायी जाए। कई जोनल मुख्यालयों ने अपने लैब में दवाओं के नमूनों की जांच करायी तो कुछ ने राज्य सरकारों की लैब में। जैसे पूर्वी रेलवे ने कोलकाता में अपनी लैब में नमूनों की जांच करवायी और नार्थ फ्रंटियर रेलवे ने गुवाहाटी में राज्य सरकार की प्रयोगशाला से रिपोर्ट मंगवायी। जांच में पता चला कि 23 कंपनियों की दवाएं, सिरप और इंजेक्शन मरीजों पर असर नहीं कर रहे हैं। रेलवे निदेशालय ने इन कंपनियों की सूची अपने जोनल कार्यालयों को भेजकर दवा खरीद पर रोक लगा दी है। सात जोनल मुख्यालयों ने 19 प्राइवेट कंपनियों व छह जोनल मुख्यालयों ने चार सरकारी दवा कंपनियों की दवाओं और सिरप की शिकायत की थी(निशांत यादव,दैनिकजागरण,लखनऊ,20.11.2010)।
sir ,der aaye ,kintu durust,wali kahawat railway aur inke adhikario par lagu hoti hai.very good information.thank you.
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