मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

एम्स में कीमोथैरेपी की जगह जीन मैपिंग से इलाज़ का इंतज़ाम

जीन मैपिंग टेस्ट कैंसर के इलाज में नई क्रांति लेकर आया है। इससे सबसे ज्यादा फायदे की उम्मीद ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में है। वजह, यह बीमारी का जल्द पता लगा पाने में सक्षम होने के साथ ही उसकी सही स्टेज का भी पता लगा सकता है। ऐसे में करीब 50 पर्सेंट मरीजों को कीमोथेरपी से निजात मिल सकती है। एम्स के कैंसर डिपार्टमेंट ने हाल ही में इस टेस्ट का इंतजाम किया है। एम्स के कैंसर डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. पी. के. जुल्का ने बताया कि फिलहाल दो तरह के जिनेटिक टेस्ट आए हैं। इसमें एक है ऑन्कोटाइप डीएक्स (21 जीन सिग्नेचर) और दूसरा मैमाप्रिंट (17 जीन रिसेप्टर)। इन दोनों तकनीकों को यूएस एफडीए से मंजूरी मिल चुकी है और वहां कई मरीजों पर इसका इस्तेमाल भी हो चुका है। उन्होंने बताया कि एम्स के मरीजों के लिए एक लैब के साथ बातचीत चल रही है। इस पर आने वाले खर्च को लेकर समझौता होना बाकी है, क्योंकि फिलहाल इसमें तीन लाख रुपये का खर्च आता है। हमने प्रयोग के तौर पर 4 मरीजों का टेस्ट कराया है, जिसके परिणाम काफी अच्छे रहे हैं। ये टेस्ट जीन सिग्नेचर को पकड़ते हैं। इनकी मदद से यह पता लगाना आसान हो जाता है कि ब्रेस्ट कैंसर कौन सी स्टेज में है। उन्होंने बताया कि इस टेस्ट से यह पता लगाया जाता है कि ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के बाद कीमोथेरपी की जरूरत है या सिर्फ हार्मोन से ही काम चल जाएगा। ऐसा नहीं करने से बीमारी दोबारा हो सकती है। अब तक सर्जरी के बाद कीमोथेरपी दी जाती है। इसके चलते उनमें बाल झड़ने, उल्टी, ब्लड काउंट कम होने, तनाव और कई तरह के इन्फेक्शन जैसे साइड इफेक्ट्स सामने आते हैं। नए टेस्ट में हार्मोन रिसेप्टर पॉजिटिव आने पर सिर्फ हार्मोन देने की जरूरत होती है, इससे वह कीमोथेरपी के साइड इफेक्ट से बच जाता है। उनके मुताबिक, ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के बाद मरीज के इलाज की तीन स्टेज, अर्ली, मिडल और एडवांस, होती हैं। इसका सही पता लगने पर अर्ली स्टेज वाले को हार्मोन, मिडल वाले को हार्मोन के साथ कीमोथेरपी और एडवांस स्टेज वाले को कीमोथेरपी दी जाती है। डॉ. जुल्का का कहना है, अब तक हमारे पास इन्हें पहचानने की कोई तकनीक नहीं थी। लेकिन जीन मैपिंग टेस्ट से अलीर् स्टेज को पहचानने का नया तरीका मिल गया है। मिडल स्टेज की पहचान की तकनीक डिवेलप करने के लिए ट्रायल चल रहा है। कैंसर हीलर सेंटर की सीनियर स्पेशलिस्ट डॉ. दीपिका कहती हैं कि जंक फूड, स्मोकिंग, अल्कोहल जैसी चीजों की आदतें और मोटापा पोस्ट मीनोपॉज स्टेज वाली महिलाओं को यह बीमारी तेजी से चपेट में ले रही है। हालांकि, अगर शुरुआती दौर में पता लग जाए तो इसका इलाज पूरी तरह से संभव है(नीतू सिंह,नवभारत टाइम्स,10.10.2010)।

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