सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

स्टेम सेल थेरेपी

अमेरिका के अटलांटा शहर के शेफर्ड सेंटर में रिसर्चरों ने स्पाइनल कॉर्ड की चोट से पीड़ित एक व्यक्ति को स्टेम सेल्स इंजेक्ट करके दुनिया में पहली बार एक ऐसी थेरेपी के क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत कर दी है, जो मानव भ्रूण से मिलने वाले स्टेम सेल्स पर आधारित है।

भ्रूण-स्टेम सेल रिसर्चरों के लिए इस परीक्षण की शुरुआत को एक बड़ी उपलब्धि बताया जा रहा है। ये रिसर्चर वर्षो से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी, डायबिटीज और अनेक स्नायु विकारों के इलाज के लिए स्टेम सेलों के इस्तेमाल की संभावनाओं का अध्ययन कर रहे हैं। कैलिफॉर्निया की जीरॉन कॉरपोरेशन नामक कंपनी द्वारा संचालित यह परीक्षण अभी प्रारंभिक अवस्था में है और इनका मुख्य उद्देश्य थेरेपी की सेफ्टी का परीक्षण करना है।

गत 7 अक्टूबर को शुरू किए गए ट्रायल चूहों पर किए गए सफल प्रयोग पर आधारित है। यूसी इर्विन स्थित रीव-इर्विन रिसर्च सेंटर के एक न्यूरोलॉजिस्ट हैंस कीरस्टीड के नेतृत्व में रिसर्चरों की टीम ने चूहों में स्टेम सेल थेरेपी विकसित करने के बाद जीरॉन को इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की अनुमति दी और अमेरिका के द फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कंपनी को इसका लाइसेंस प्रदान कर दिया। स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का ट्रीटमेंट विकसित करने के लिए जीरॉन कंपनी अब तक 17 करोड़ डालर खर्च कर चुकी है।

सफल शुरुआतः आखिर ये स्टेम सेल क्या हैं, जिनको लेकर पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इतने रोमांचित हैं। स्टेम सेल्स ऐसी कोशिकाएं हैं, जो सभी बहु-कोशिकीय जीव-जंतुओं में पाई जाती हैं। ये कोशिकाएं अपने विकास की प्रारंभिक अवस्था में होती हैं, लेकिन ये शरीर की किसी भी खास कोशिका में अपने को तब्दील कर सकती हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के अर्नेस्ट ए. मैककुलोच और जेम्स ई. टिल द्वारा साठ के दशक में की गई खोज के बाद स्टेम सेल के क्षेत्र में रिसर्च की शुरुआत हुई थी। स्तनपायी जीवों में दो तरह के स्टेम सेल होते हैं। ये हैं एम्रियोनिक या भ्रूण स्टेम सेल तथा वयस्क या एडल्ट स्टेम सेल। भ्रूण स्टेम सेल भ्रूण में पाए जाते हैं, जो सभी प्रकार के विशेष टिशुओं में परिवर्तित हो सकते हैं, जबकि ज्यादातर एडल्ट सेलों का शरीर के अंदर खास उद्देश्य होता है और उन्हें बदला नहीं जा सकता। मसलन, एक लिवर सेल एक खास काम को अंजाम देने के लिए विकसित किया गया है। उससे दिल के सेल की भूमिका नहीं अदा कराई जा सकती।

चूहों पर किए गए परीक्षण में यह देखा गया था कि जो चूहे अपने पैरों का कंट्रोल खो चुके थे, वे ट्रीटमेंट के बाद आंशिक तौर पर चलने और भागने में सफल रहे। कीरस्टीड की टीम मानव भ्रूण स्टेम सेल को ओलिगोडेंड्रोसाइट्स में बदलने में कामयाब रही। ये सेल नर्व फाइबर्स को माइलिन की कोटिंग प्रदान करते हैं। कीरस्टीड का कहना है कि नर्व सेलों को सुरक्षा प्रदान करने वाली परत उगाकर कई मामलों में रीढ़ में सिग्नलों का ऊपर-नीचे प्रवाह दोबारा शुरू किया जा सकता है। उनका कहना है कि स्पाइनल कॉर्ड की अधिकांश चोटों में कॉर्ड पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं होती, सिर्फ नर्व सेलों की माइलिन परत क्षतिग्रस्त या नष्ट होती है।

मनुष्यों पर शुरू किया गया परीक्षण पहले चरण का परीक्षण है। इसमें यह देखा जाएगा कि ट्रीटमेंट मनुष्यों के लिए सुरक्षित है या नहीं। ट्रायल में 10 मरीज शामिल किए जाएंगे और चोट लगने के 14 दिन केअंदर उनमें स्टेम सेल इंजेक्ट किए जाएंगे। यदि मरीज इस ट्रीटमेंट को बर्दाश्त करने में सफल रहे और चिकित्सीय दृष्टि से इसे सुरक्षित पाया गया तो रिसर्चर अगले चरण में यह टेस्ट करेंगे कि ट्रीटमेंट कितना प्रभावी है।

अटलांटा के शेफर्ड सेंटर के अलावा पहले चरण के ट्रायल शिकागो के निकट नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में भी किए जाएंगे। बाद में सात सेंटरों में ये परीक्षण किए जा सकते हैं। ये परीक्षण करीब दो साल तक चलेंगे। अनेक स्पाइन और न्यूरो सर्जनों ने स्टेम सेल थेरेपी ट्रायल को उत्साहवर्धक बताया है। कीरस्टीड का कहना है कि भले ही यह थेरेपी लोगों को चलने-फिरने और भागने लायक न बना पाए, फिर भी यह उन्हें अपने शरीर की दूसरी महत्वपूर्ण क्रियाओं को अपने वश में करने में मदद कर सकती है।

भविष्य की तैयारीः चिकित्सा जगत दिल की बीमारियों तथा डायबिटीज के इलाज के लिए मानव भ्रूण स्टेम कोशिकाओं के प्रयोगों का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहा है। मानव भ्रूण स्टेम कोशिका से पैंक्रियाज़ के इंसुलिन उत्पादक बीटी सेल विकसित करने में दो कंपनियां जुट गई हैं। इसमें कैलिफॉर्निया की नोवोसेल आगे है। एक अन्य कंपनी गेरॉन भी ऐसी कोशिश में जुटी है।

क्या स्टेम कोशिकाओं से दिल की भी मरम्मत की जा सकती है? वैज्ञानिकों की मानें तो हां। पैरिस के जार्ज पौपिन्दू अस्पताल के जीव-वैज्ञानिक फिलिप मेनाशे और उनके सहयोगी मानव भ्रूण की स्टेम कोशिकाओं से निकली कोशिकाओं से क्षतिग्रस्त हृदय की मरम्मत का इरादा रखते हैं। मेनाशे की टीम ने जानवरों में दिल के दौरे के बाद इस तरह की कोशिकाएं विकसित की थीं।

टीम ने पाया कि इन कोशिकाओं ने हृदय की स्वस्थ कोशिकाओं में विकसित होने के बाद क्षतिग्रस्त टिश्यु की मरम्मत करने में मदद की। मेनाशे अब यह प्रयोग उन लोगों पर करना चाहते हैं, जिनके दिल के बायपास आपरेशन के बाद दिल के टिश्यु क्षतिग्रस्त हो गए थे।

ताइवान की नेशनल चेंग कुंग यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने लान्यु नस्ल के नन्हे सूअरों पर सफल प्रयोगों के बाद दिल की मरम्मत के लिए स्टेम सेल आधारित नई थेरपी विकसित कर लेने का दावा किया है। उनका यह भी दावा है कि यह विश्व में अपने किस्म की पहली थेरेपी है और इसकी मदद से दिल म्योकॉर्डियल मसल को रिजेनरेट किया जा सकता है।

अपार संभावनाएं- मानव भ्रूण में पाए जाने वाले स्टेम सेलों को लेकर पिछले एक दशक से कई तरह के दावे किए जा रहे हैं और दुनिया की विभिन्न प्रयोगशालाओं में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि स्टेम सेलों से शरीर के क्षतिग्रस्त अंगों को दोबारा उगाया जा सकता है। कुछ अन्य का दावा है कि स्टेम सेल की मदद से शरीर के रुग्ण अंगों की मरम्मत की जा सकती है अथवा डायबिटीज जैसी बीमारियों को ठीक किया जा सकता है।

यदि हम अब तक किए गए प्रयोगों के निष्कर्षो को गंभीरता से लें तो स्टेम सेल में छिपी अपार संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह सही है कि मानव भ्रूण के स्टेम सेलों को लेकर किए गए प्रयोग शुरू से ही विवादों के घेरे में रहे हैं। कुछ लोग धार्मिक और नैतिक आधार पर इन प्रयोगों का विरोध करते रहे हैं। लगभग दस साल तक वैज्ञानिक ऊहापोह और राजनीतिक खींचतान के बाद अब स्टेम कोशिका आधारित दर्जनों तकनीकें मनुष्यों पर प्रयोग के लिए तैयार हो चुकी हैं।

मानव भ्रूण के स्टेम सेल की खासियत यह है कि यह 200 किस्म के मानव टिश्यु में परिवर्तित हो सकती है। उसकी इस खूबी को देखकर वैज्ञानिकों के मन में यह ख्याल आया कि क्यों न भ्रूण स्टेम कोशिका की अलग-अलग श्रेणियां तैयार की जाएं और जरूरत पड़ने पर इन सेलों या इनसे विकसित अंगों को मानव शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाए।

स्टेम सेल पर अनुसंधान में सबसे बड़ी रुकावट 2001 में आई थी, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने सरकारी सहायता प्राप्त रिसर्चरों के अनुसंधान को सिर्फ दर्जन भर भ्रूण स्टेम सेल श्रेणियों तक ही सीमित कर दिया था। उन्होंने यह कदम खासकर उन लोगों को शांत करने के लिए उठाया था, जो नैतिक और धार्मिक आधार पर इस रिसर्च का विरोध कर रहे थे। लेकिन दूसरे संपन्न देशों में यह अनुसंधान बेरोकटोक जारी रहा। अब राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बुश द्वारा लगाई गई बंदिशों को पलट दिया है, लेकिन स्टेम कोशिका अनुसंधान की राह इतनी आसान नहीं है। इन सेलों को हरफनमौलापन का वरदान अवश्य है, पर यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि शरीर के अंदर जाकर वे किस तरह का बर्ताव करेंगी।

अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) जैसे निगरानी संस्थानों ने मानव भ्रूण संस्थानों ने मानव भ्रूण स्टेम सेल से तैयार की गई कोशिकाओं के प्रति थोड़ी सावधानी बरतने की सलाह दी है। मान लीजिए कुछ कोशिकाएं अपने अपेक्षित रूप में विकसित न हो पाईं तो वे अपने लक्ष्य से हटकर शरीर के दूसरे हिस्सों में जाकर कुदरती प्रक्रियाओं में रुकावट पैदा कर सकती हैं अथवा कैंसर सेलों में विकसित हो सकती हैं।

(मुकुल व्यास,हिंदुस्तान,दिल्ली,18.10.2010)

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