मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

क्यों आती है छींक?

छींकना हमारे शरीर की एक ऐसी क्रिया है जिसमें हवा के तेज झटके के साथ हमारा शरीर उन चीजों को बाहर निकालने की कोशिश करता है जो नाक में फुरफुराहट पैदा कर रही होती हैं। छींक प्रायः तब आती है जब हमारी नाक के अंदर की झिल्ली किसी बाहरी पदार्थ के घुस जाने से "परेशानी" महसूस करती है। ऐसा होते ही नाक से तुरंत हमारे दिमाग को यह जानकारी मिल जाती है और दिमाग शरीर की मांसपेशियों को आदेश देता है कि इस पदार्थ को बाहर कर दिया जाए। छींक की क्रिया में छाती, पेट, डॉयफ्राम, गला, वाकतंतु जैसे कई अंग काम करते हैं। ये सब अंग बाहरी पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने के लिए एकजुट होकर काम करते हैं। कई बार एक छींक से काम नहीं चलता इसलिए एक के बाद एक कई छींकें आती हैं। छींकते समय हमारे मुंह और नाक से बाहर निकलने वाली हवा की गति एक घंटे में डेढ़ सौ किलोमीटर से भी ज्यादा होती है। यही वजह है कि छींकते समय हमारे पूरे शरीर में एक कंपन-सा होता और आंखें भी बंद हो जाती हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि छींक का हमारे दिल पर भी असर पड़ता है और बहुत थोडे समय के लिए उसका धड़कना भी बंद हो जाता है। छींक का आना कई चीजों पर निर्भर करता है। आपने देखा होगा कि जब कोई चीज नाक में चली जाती है तो नाक में गुदगुदी-सी होने लगती है और फिर हमें छींक भी आ जाती है। हमें छींक किसी खास वजह से ही आती है। हमारी नाक में म्यूकस झिल्ली होती है जिसके टिशूज और सेल्स बहुत संवेदनशील होते हैं। कभी-कभी जुकाम या एलर्जी वगैरह की वजह से इस झिल्ली में सूजन आ जाती है तो इससे इन टिशूज और सेल्स में सरसराहट-सी होने लगती है जिससे हमें छींक आने लगती है। कई बार तेज रोशनी देखने से आंख के रेटिना और दिमाग को जोड़ने वाली "ऑप्टिक वेन" उत्तेजित हो जाती है। इस वजह से भी हमें छींक आ जाती है। छींक को लेकर हमें कई तरह की शुभ-अशुभ या शगुन-अपशगुन की बातें भी सुनने को मिलती हैं लेकिन छींक का इन बातों से कोई लेना-देना नहीं होता। इसलिए छींक आने का असली कारण समझने के बाद आप छींक के बारे में शगुन-अपशगुन का वहम करने वाले लोगों को भी सीख दे सकते हैं कि छींक हमारे शरीर के लिए कई बार बहुत जरूरी और अच्छी होती है(राजीव शर्मा,नई दुनिया,19.10.2010)

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