बुधवार, 15 सितंबर 2010

मच्छरों से ज़रा बच के

बरसात के साथ ही डेंगू और मलेरिया का आतंक बढ़ गया है। महानगरों के अस्पतालों में डेंगू के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। शोध बताते हैं कि गत कुछ वर्षो से मच्छरों से होने वाले रोगों में इजाफा हुआ है जबकि शासन के पास उन्हें रोकने का कोई कारगर उपाय सामने नहीं आ पाया है। मानवीय लापरवाही और शहरी गंदगी के कारण ये रोग हो रहे हैं। तो क्या है उपाय? कैसे बचें? प्रस्तुत है मुकम्मल जानकारी:

जैसे-जैसे मनुष्य ने मच्छरजनित रोगों पर काबू पाने के उपाय किए हैं, वैसे-वैसे मच्छर भी दिनोंदिन बलशाली होता जा रहा है। उसने तमाम मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रमों को धता बताते हुए ‘न मच्छर रहेंगे, न मलेरिया’ जैसे मानवीय दावों की हवा निकाल दी है। मलेरिया के अलावा कुछ और रोग भी बेबस मनुष्य की झोली में मच्छर ने डाल दिए हैं।

मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के बढ़ते प्रकोप को रोकने के उपाय किए गए तो खबर आई कि चिकनगुनिया का मच्छर तो साफ पानी में पाया जाता है और रात में नहीं दिन में काटता है। तब इनसे बचाव के भी कई उपाय सामने आए अगरबत्ती, टिकिया, लोशन, मगर मच्छर का मुकाबला पूरी तरह हो नहीं पाया।

दवा खा कर पहले मरा पर बाद में मच्छर फिर से खून पी-पी कर इतना ताकतवर हो गया कि मलेरिया की कारगर क्लोरोक्वीन जैसी दवाएं नाकारा कर दीं। दो मिलीग्राम से भी कम भार वाले इस खतरनाक जीव ने आज भी मनुष्य का जीना दूभर कर रखा है। दुनियाभर में सबसे खतरनाक जीव नन्हा मच्छर करोड़ों को काट कर रोगी बना रहा है।

मोटे तौर पर देखा जाए तो रोगों का वाहक मच्छर गंदगी में पनपता है। देश में आज भी बड़े भाग में शौचालय की सुविधाएं विशेषकर उसके निकास के तरीके उचित नहीं हैं जो गंदगी फैलाते हैं। वहीं दूसरी ओर खुले गटर, गड्ढे पानी भरी होदियां, नालियां सब कुछ खुला है और गंद लाता है। उस पर शहरों में कूलर, पानी की खुली टंकियां, टायर जैसा अन्य कबाड़ मच्छरों के इस परिवार को बढ़ाता है। यह सब कुछ बस्तियों के पास और घर के अंदर भी है, तो भला मच्छर क्यों न पनपें और रोग क्यों न फैले।

वैज्ञानिक रॉनल्ड रॉस ने जब पहली बार यह बात उजागर की कि मलेरिया फैलाने के पीछे केवल मादा मच्छर का डंक है तो लोगों को हैरानी हुई थी। तब और शोध सामने आए पता चला कि मच्छर तो निमित्त मात्र है, वह केवल वाहक है। मलेरिया का दोषी तो कोई और ही है जो उसको और मनुष्य को अपना ठिकाना बनाए हुए है। मच्छर ने जब स्वस्थ मनुष्य को काटा तो यह आराम से उसके खून में उतर गया और अपना कहर दिखा गया। इसके बाद जब किसी रोगी को मच्छर ने काटा तो फिर परजीवी मच्छर के अंदर जा पहुंचा। इस तरह से मच्छर और मनुष्य के बीच दूषित रक्त का आदान-प्रदान होता रहा और आराम से रोग बढ़ता-फैलता रहा। इस परजीवी की चार प्रजातियां हैं, प्लाज्मो-डिपम वाईवेक्स, प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लाज्मोडियम मलेरियाई और प्लाज्मोडियम ओवेल।

इनमें वाइवेस्ट्रा आम है जबकि फाल्सीपेरम सबसे ज्यादा खतरनाक है जो सीधे मस्तिष्क को प्रभावित करता है। इसके अलावा, यह यकृत, गुर्दे और आंतों के अलावा लाल रक्त कोशिकाओं को भी बरबाद कर डालता है। ज्यों ही परजीवी मानव शरीर में पहुंचता है, वह अपना प्रभाव तेजी से बढ़ाने लगता है। आमतौर पर इसका ठिकाना लिवर यानी यकृत होता है। इसके बाद यह लाल रक्त कोशिकाओं में घुस जाता है और उन्हें प्रभावित करता है। इसकी शुरुआत होते ही शरीर का तापमान बढ़ता चला जाता है। भरी गर्मी में भी ठण्ड लगती है और कंपकंपी आती है। इस कारण तेज सिरदर्द होता है और उल्टियां आती हैं। यह सब कुछ दस से पन्द्रह दिन तक चलता है। अगर खून की जांच कर रोग पकड़ में आ जाए तो तत्काल इसका उपचार किया जाना चाहिए।

सेरेब्रल मलेरिया जो मस्तिष्क को सीधा प्रभावित करता है और भी गंभीर स्थिति पैदा करता है। चिकित्सकों का कहना है कि अगर दो तीन दिन के अंदर रोग काबू में न आए तो बेहोशी के साथ मृत्यु तक हो जाती है। बच्चों में तो इसका प्रभाव और भी गंभीर होता है। तेज बुखार उनमें ऐंठन पैदा कर उन्हें मनोरोगी बना देता है। अगर जल्द ही दवा का असर हो जाए और बुखार उतर जाए तो रोग काबू में आ जाता है और जान बच जाती है।

आमतौर पर इससे बचाव की सलाह दी जाती है यानी पहली दशा में तो मच्छरों के प्रजनन को रोकने की बात। दूसरी सलाह होती है मच्छरदानी लगा कर सोने की ताकि मच्छर काट ही न पाएं। तीसरा है लोशन या मच्छर भगाऊ या मच्छर मार दवाओं का प्रयोग और अगर मलेरिया हो जाए तो तत्काल डॉक्टर की सलाह और कड़वी कुनैन, क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं का प्रयोग। मगर दुखद पहलू यह भी है कि आज मच्छर और परजीवी दोनों पर दवाएं बेअसर भी साबित हो रही हैं।

मच्छरों का यह कहर वर्षो से चला आ रहा है। लाख कोशिशों के बाद भी मच्छर वही है, मनुष्य भी और रोग भी वही है, बल्कि रोग है कि महामारी बन रहे हैं। इनसे निबटने के लिए शोध कार्य भी लगातार चल रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोई कारगर समाधान भी सामने आएगा जो लोगों को मच्छरजनित रोगों और मौत से बचाने में पूरी तरह कारगर सिद्ध होने वाला होगा।

डेंगू बुखार मच्छर की ही देन डेंगू बुखार भी है। इससे प्रभावित रोगी को रोज बुखार आता है, तेज सिरदर्द होता है, इसके अलावा, आंखों और मांसपेशियों में असहनीय पीड़ा होती है। यही नहीं, रोगी के शरीर पर जगह-जगह लाल चकत्ते बनने लगते हैं। रोगी का जी मिचलाता है और लगातार उलटी आती है। गंभीर दशा में संक्रमण फेफड़ों में जा पहुंचता है, साथ ही रक्त परिभ्रमण व्यवस्था लड़खड़ाने लगती है।

रक्तचाप तेजी से गिरने लगता है और बेहोशी आती है। ऐसे में अगर रक्त कोशिकाओं की संख्या घटने लगती है तो जिंदगी खतरे में पड़ जाती है। हमारे स्वस्थ शरीर में औसतन डेढ़ से चार लाख तक प्लेटलैट्स होती हैं जब यह संख्या घटते घटते 30,000 जा पहुंचती है तो खतरे की स्थिति हो जाती है, तब बाहर से प्लेटलैट्स पहुंचाना जरूरी हो जाता है।

पानी में है डेंगू से राहत डेंगू की कोई कारगर दवा अभी तक सामने नहीं आई है, इसलिए रोग का सहयोगी उपचार किया जाता है। चिकित्सकीय सलाह है कि चूंकि इसके संक्रमण से शरीर में तेजी से पानी की कमी होने लगती है, इसलिए रोगी को खूब पानी पिलाना चाहिए। भले ही कोई कारगर दवा न हो, मगर जो भी है उससे रोग पर काबू पाना संभव है।

डेंगू बुखार एडीज़ इजिप्टी मच्छरों के काटे जाने से फैलने वाली वाइरल डिजीज़ है। ये मच्छर इनसानी बस्तियों में खुले और साफ पानी में पैदा होते हैं, जैसे कि बगैर ढक्कन वाली टंकियां, टूटे फूटे सामान, कबाड़ और पुराने और बेकार पड़े टायरों में भरा पानी। ये मच्छर दिन के समय काटते हैं।

खासकर सुबह और शाम व रात होने से पहले के कुछ घंटे इनके काटने का समय है। डेंगू फैलाने वाले चार वाइरस- डेन वन, डेन टू, डेन थ्री और डेन फोर इम्युनोलॉजी के लिहाज से आपस में संबंधित हैं, लेकिन एक दूसरे के प्रति क्रॉस प्रोटेक्शन की इम्युनिटी नहीं देते। दुनिया की करीब ढाई अरब आबादी इस बीमारी की आशंका वाले इलाकों में रहती है।

बचाव में ही सुरक्षा डेंगू से बचाव के लिए कोई सटीक टीका उपलब्ध नहीं है। इसलिए जहां तक हो सके मच्छर के काटने से खुद को बचा कर रखें। - शरीर का कोई अंग खुला न छोड़ें। पूरी बाजू के कपड़े पहनें। - मच्छर मारने वाली दवा का प्रयोग करें। डेंगू होने पर बुखार को काबू में करने के लिए डॉक्टर एसिटामिनोफेन देते हैं। - डेंगू में एस्पिरिन और आइबूप्रोफेन नहीं लेना चाहिए। खासकर बच्चों को तो एस्पिरिन बिलकुल नहीं देनी चाहिए। - डेंगू के मरीज़ को भरपूर आराम करना चाहिए और तरल पदार्थो का सेवन करना चाहिए। - डेंगू बिगड़ने पर मरीज को बुखार के साथ-साथ तेज पेट दर्द होता है। - डेंगू बुखार में शरीर के रक्त में तेजी से प्लेटलेट्स का स्तर कम होता है, इसलिए बुखार में भूल कर भी एस्प्रीन दवाएं, डिस्प्रीन या फिर क्रोसिन नहीं देनी चाहिए, जबकि पैरासिटामोल का सेवन बुखार में सुधार ला सकता है। -जरूरी नहीं हर तरह के डेंगू में प्लेटलेट्स चढ़ाए जाएं, केवल हैमरेजिक और शॉक सिंड्रोम डेंगू में प्लेटलेट्स की अनिवार्यता बताई गई है, जबकि साधारण डेंगू में जरूरी दवाएं काम करती हैं। - लगातार उल्टियां और चिड़चिड़ापन, सुस्ती और विभ्रम जैसी मानसिक परेशानियां भी हो सकती हैं। - ऐसे में मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती करके ग्लूकोज चढ़ाना ज़रूरी हो जाता है।

डेंगू मरीजों का खान-पान डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए डाइट में लिक्विड की मात्र ज्यादा रखनी चाहिए। लिक्विड में सबसे ज्यादा मात्र जूस की होनी चाहिए। हालांकि लस्सी, दूध, नारियल पानी, वेजिटेबल सूप, मट्ठा वगैरह भी डेंगू के मरीजों के लिए बेहतर है। बैलेंस्ड डाइट के अलावा उन्हें एक दिन में कम से कम तीन लीटर तक तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए। डॉ. माला मनराल (डायटीशियन), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली

(हिंदुस्तान,दिल्ली,14.9.2010)

1 टिप्पणी:

  1. अच्छी जानकारी है ........

    मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
    कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...

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