गुरुवार, 16 सितंबर 2010

मच्छरदानीःबिल लगे न टेंशन,ऑल आउट रह जाएं

सदियों से "ड्रैकुला" की तरह इंसानों का खून पी-पीकर दिन का चैन और रातों की नींद हराम करने वाले मच्छर आज भी रक्त-पिपासु बनकर खून चूस रहे हैं। हालांकि इनसे निपटने के लिए बाजार में कई तरह के साधन उपलब्ध हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर का लंबे समय तक प्रयोग करना खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है क्योंकि ऐसी स्थिति में तीव्र रसायन वाले ये साधन इनसानी सेहत के लिए तो खतरनाक साबित होने लगते हैं, पर मच्छर धीरे-धीरे अपनी प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाकर खुद को इनके अनुसार ढालकर इनके अभ्यस्त होने लगते हैं। इस रूप में "मैट", "क्रीम", "लिक्विडेटर", "स्प्रे" या "क्वायल" जैसे तमाम साधन एक ही थैली के चट्टे-बट्टे साबित होते हैं। इन सब में कहीं न कहीं, कोई न कोई कमी रहती है। ऐसे में याद आता है नानी-दादी का बरसों पुराना सुरक्षा कवच यानी मच्छरदानी। अब तो वैज्ञानिक भी इस बात को मानने लगे हैं कि मच्छरों से बचने-बचाने का एकमात्र सबसे कारगर उपाय मच्छरदानी ही है। और मच्छर ही क्यों मक्खी, टिड्डे, भुनंगे जैसे तमाम कीट-पतंगों और कीड़े-मकौडों से बचाने में भी मच्छरदानी बेहतरीन "अंगरक्षक" साबित होती है। मच्छरदानी का प्रयोग करते समय न तो बिजली की जरूरत होती है और न ही किसी रासायनिक पदार्थ के दुष्प्रभाव का डर रहता है। इसके अलावा इसके इस्तेमाल से मक्खी, टिड्डे, छिपकली, बरसाती मौसम में निकलने वाले कीटों आदि से भी बचाव होता है। कहने-सुनने और देखने में भले ही मच्छर छोटे दिखते हों, पर बीमारी और मौत फैलाने में खून चूसने वाले ये नन्हे राक्षस बड़े से बड़े खूनी दरींदों को भी मात दे देते हैं। दुनियाभर में हर साल लाखों-करोड़ों लोग मच्छरों के काटने से होने वाली मलेरिया, डेंगू, पीत ज्वर जैसी बीमारियों का शिकार बनते हैं। हर साल लाखों मौतों के जिम्मेदार ये मच्छर ही होते हैं। जहां तक दूसरे कीट-पतंगों की बात है, उनसे परेशानी तो जरूर होती है पर मौत के मामलों में वे इन रक्त-खोरों से बहुत पीछे रहते हैं। इसलिए मच्छरों से बचाव ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और मच्छरदानी यह काम बखूबी पूरा करती है। मच्छरदानियों पर भरोसे के कारण ही यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी इन्हें अपने विशेष कार्यक्रमों में शामिल करके रोगग्रस्त इलाकों के लोगों में बांटती हैं। विश्व में मच्छरदानियों की सबसे बड़ी वितरक ये संस्थाएं ही हैं। इससे असरदार नहीं है कुछ मच्छरों से बचने के लिए जापान में भी एक विशेष प्रकार की मच्छरदानी के निर्माण पर प्रयोग किया गया है। इसकी खासियत यह है कि इसके पास आते ही मच्छर मर जाते हैं। साधारणतः प्रयोग की जाने वाली मच्छरदानी हाई-डेनसिटी पॉलिएथीलीन (एचडीपीई) से बनाई जाती है लेकिन इस विशेष मच्छरदानी को बनाते समय एचडीपीई में मच्छर-रोधी पदार्थों को भी मिला दिया जाता है। इस तरह मच्छर इस मच्छरदानी के पास भी नहीं फटक पाते और अगर इसके पास आ भी जाएं तो मच्छर-रोधी पदार्थों के कारण मारे जाते हैं। हालांकि यह मच्छरों के लिए खतरनाक है लेकिन मनुष्यों के स्वास्थ्य पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। सामान्य परिस्थितियों में इस प्रकार की मच्छरदानी बिना दोबारा मच्छर-रोधी पदार्थों के इस्तेमाल के करीब पांच सालों तक लगातार अपना काम कर सकती है। "कीटरोधी-उपचार" से तैयार ऐसी विशेष मच्छरदानियों पर अन्य देशों में भी काम किया गया है और ये बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। "विश्व स्वास्थ्य संगठन" (डब्लूएचओ) के अनुसार कीटरोधी-उपचारित मच्छरदानियों के प्रयोग से मलेरिया जैसी बीमारियों की आशंका ५० प्रतिशत तक और बच्चों की मृत्युदर २० प्रतिशत तक कम की जा सकती हैं। अफ्रीका-एशिया के गरीब देशों के लिए तो ये बहुत कारगर साबित होती हैं। इस क्षेत्र में शोध कर रहे येल यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ माइकल रेड्डी के मुताबिक अफ्रीका में जहां बीमारी आमतौर पर घरों से फैलती है, मच्छरदानी का प्रयोग सबसे कारगर उपाय रहता है। माना जाता है कि मच्छरों से होने वाली बीमारियों की संभावना सबसे ज्यादा रात के समय ही होती है। ऐसे में मच्छरदानी का प्रयोग बहुत सही साबित होता है। इनका प्रयोग मच्छरों से होने वाली बीमारियों की आशंका को बहुत कम कर देता है। चाहे आप मच्छरों से भरी जोखिम वाली जगहों पर रहते हों या फिर ऐसी जगहों पर सफर कर रहे हों, मच्छरदानी का प्रयोग सबसे सुरक्षित होता है। आज बाजार में कई तरह की मच्छरदानी उपलब्ध हैं। इनमें छोटे बच्चों से लेकर डबल-बेड तक के लिए मच्छरदानी मौजूद हैं। आकार-प्रकार में भी बहुत ज्यादा विकल्प हैं। पिरामिड जैसी, कोण के आकार वाली, आयताकार, ट्रैकिंग के तंबू जैसी, फोल्डिंग और पोर्टेबल आदि हर तरह की मच्छरदानी उपलब्ध हैं। इनके अलावा ऐसी मच्छरदानियां भी आती हैं जिन्हें छत पर किसी एक ही हुक में लगा दिया जाता है। इसलिए अपनी जरूरत और सुविधा के हिसाब से आसानी से मच्छरदानी खरीदी जा सकती है लेकिन इस संबंध में कुछ खास बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। पहली तो यही कि उसका और उसके छेदों का आकार सही हो। छेद इतने बड़े हों कि पर्याप्त हवा का आवागमन तो होता रहे पर छोटे-छोटे मच्छरों से भी सुरक्षा बनी रहे, क्योंकि बड़ी जाली होने पर उसमें मच्छरों के घुसने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। मच्छरदानी इतनी बड़ी होनी चाहिए कि वह सोने वाले व्यक्ति के शरीर से पर्याप्त दूरी पर रहे, क्योंकि यह बिस्तर को पूरी तरह से ढक लेती हैं और सोने वाले व्यक्ति को बिस्तर पर लेटने-बैठने के लिए भी पूरी-पूरी जगह मिल जाती है। मच्छरदानी प्रयोग में लाने का एक अच्छा तरीका यह है कि उसे चारों तरफ से बिस्तर के गद्दे या चादर के नीचे दबाकर रखा जाए ताकि सोते समय कहीं से भी उसके खुलने की संभावना न रहे। आमतौर पर पॉलिस्टर या पॉलियामाइड लगाने-रखने की दृष्टि से हल्की, टिकाऊ और सुविधाजनक होती हैं। इसके अलावा ये विभिन्न आकार-प्रकार में भी मिलती हैं। इनकी एक खासियत यह भी रहती है कि ये आसानी से भीगती नहीं हैं। इसलिए मच्छरदानी खरीदते समय इन पर भी विचार किया जा सकता है। कॉटन से बनी मच्छरदानी भी इस्तेमाल की जा सकती है, पर ये अपेक्षाकृत बहुत भारी होती हैं और भीगने पर तो और ज्यादा भारी हो जाती हैं। इसके अलावा इन्हें उठाने, रखने और लगाने में भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है लेकिन फिर भी मच्छरों से तो पर्याप्त सुरक्षा हो ही जाती है। कोई और विकल्प न होने पर ऐसी मच्छरदानी से भी काम चलाया जा सकता है। अगर आपके पास कीटरोधी-उपचारित मच्छरदानी नहीं हैं, तो भी आप अपनी साधारण मच्छरदानी की सुरक्षा क्षमता बढ़ाने के लिए उसे कीटरोधी बना सकते हैं। इसका एक बहुत अच्छा और आसान तरीका यह है कि मच्छरदानी को नीम के पत्तों के रस में धोकर सुखा लिया जाए। इसके अलावा मच्छरदानी की साफ-सफाई पर भी खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए। हो सके तो डेटॉल जैसी खास दवाओं से भी उसे धोया जा सकता है। कॉटन की मच्छरदानियों पर तो यह तरीका बहुत कारगर रहता है क्योंकि उनमें सोखने की क्षमता अपेक्षाकृत ज्यादा होती है(राजीव शर्मा,नई दुनिया,दिल्ली,16.9.2010)।

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