बुधवार, 8 सितंबर 2010

आइ फ्लू

बारिश के बाद आई फ्लू की जो बीमारी फैलती है, उसे डॉक्टरी भाषा में कंजक्टिवाइटिस कहते हैं। आंखों की निचली व ऊपरी पलकों की बाहरी परत को कंजेक्टिवा कहते हैं, इसमें वायरल, बैक्टीरियल व एलर्जिक संक्रमण कंजक्टिवाइटिस कहलाता है।

इसमें आँखें लाल-लाल हो जाती हैं। उनमें जलन होती है। आंखों से चिपचिपे द्रव्य का निकलना व आईलैश जुड़ने को एलर्जिक संक्रमण माना जाता है। इसकी शुरुआत खारिश से होती है। आँखों से पानी भी निकलता है और दर्द भी होता है। यह छूने से फैलने वाला रोग है इसलिए संक्रामक भी है।

साधारणत: संक्रमण 4 से 5 दिन में ठीक हो जाता है। इसके बावजूद, लालिमा बढ़ने पर चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि आंखों की इस बीमारी से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है और वह है सावधानी।

नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक उपचार से आई फ्लू की तीव्रता को तो कम किया जा सकता है। दवा डालने का फायदा यह होता है कि इससे आंखों में दर्द कम हो जाता है और सेकेंड्री इन्फेक्शन फैलने की आशंका भी नहीं रहती, लेकिन ऐसा कोई उपचार नहीं है, जिससे आई फ्लू को समय से पहले ठीक किया जा सके। कंजक्टिवाइटिस के सामान्य तौर पर एलर्जिक, बैक्टीरियल और वायरल आदि प्रकार हैं। यह रोग एक रोगी से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। बच्चों में यह संक्रमण तेजी से फैलता है। उनमें इस बीमारी की स्थिति में श्वास संबंधी समस्या देखने को भी मिल सकती है। जो लोग लैंस इस्तेमाल करते हैं उन्हें लक्षण दिखाई देने पर बगैर देरी के लैंस निकाल लेना चाहिए। यदि संभव हो तो उन लैंस का दोबारा प्रयोग न करें।

नेत्र रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि वातावरण में नमी अधिक होने पर यह वायरस सक्रिय हो जाता है। हर वर्ष अगस्त माह के अंत और सितम्बर की शुरुआत में आई फ्लू का संक्रमण होता है क्योंकि इन दिनों माहौल में आर्द्रता अधिक रहती है। अनुमान है कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष कंजक्टिवाइटिस करीब तीस प्रतिशत अधिक फैल रहा है।

एक्यूट कंजक्टिवाइटिस यह रोग की वह अवस्था होती है जिसमें आंख का सफेद हिस्सा पूरी तरह से लाल हो जाता है। इस अवस्था में काफी ध्यान देने और विशेषज्ञ डॉक्टर से इलाज कराने की जरूरत होती है। इस स्थिति में रोगी को आंखों में बहुत दर्द होता है और बेचैनी व चुभन महसूस होती है।

लक्षण वर्षा के मौसम में आंखों का यह संक्रामक रोग तेजी से फैलने लगता है। इस रोग के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं : नींद से उठने पर दोनों पलकों का आपस में चिपक जाना, सिर दर्द होना, आंखों में दर्द और जलन होना, आंखों में बार-बार कीच आना, पलकों पर अधिक सूजन होना, आंखों में लाली, चुभन और खुजली होना, रोशनी सहन न कर पाना आदि।

बचाव के कुछ सुझाव - आंखों को धुआं, धूल, वर्षा के मौसम की तीखी धूप और तेज हवा से बचाएं - हर 30 मिनट उपरांत घड़े के फिटकरी घुले शीतल जल से आंखों पर छींटे मारें - ठंडे गुलाब जल को रुई के फोहे में लेकर आंखों पर रखें। हालांकि गुलाब जल या अन्य किसी देसी इलाज से पहले चिकित्सक से संपर्क करना अच्छा रहता है - आंखों में नमी बनी रहने दें, धूप का चश्मा भी पहनें - रोशनी से बचकर रहें। टीवी न देखें, अधिक देर तक पत्र-पत्रिकाएं न पढ़ें, धूप में न टहलें - आंखों को हाथों से मसले नहीं अन्यथा उनमें लाली ज्यादा उभरने लगेगी - स्टेरॉयड आई ड्राप का सेवन न करें, कॉर्निया प्रभावित हो सकता है - इस्तेमालशुदा तौलिया, साबुन व आईड्राप अलग रखें - कॉन्टैक्ट लैंस वाले अधिक सावधान रहें। आंखों को रगड़े नहीं। - स्वीमिंग पूल का इस्तेमाल न करें - कोल्ड कंप्रैसर का इस्तेमाल अच्छा रहेगा। - होमियोपैथी में इसके उपचार की बड़ी अच्छी दवा है यूफ्रेशिया। यह दवा 4-4 गोली दिन में 3 या 4 बार ली जा सकती है। इसका तरल मदर टिंक्चर भी मिलता है। आधा कप पानी में 4-5 बूंद मिला कर उस पानी से आँखें धोनी चाहिए।

घरेलू इलाज - सूखे नारियल की गिरी और मिश्री खाने से ‘आई फ्लू’ रोग में तेजी से लाभ पहुंचने लगता है। नारियल पानी और नींबू पानी का सेवन भी लाभकारी है।

-सेब, केला, गन्ना व मूली इस रोग के लिए काफी फायदेमंद हैं। ध्यान रहे इस रोग में सेब को चाकू से काटकर न खायें, बल्कि दांतों से चबा-चबाकर अच्छी तरह खाएं, जल्दी आराम मिलेगा।

- रात को 8 बादाम की गिरी भिगोकर प्रात: पीसकर पानी मिलाकर पी लें। ऊपर से दूध पीयें। यह रोग ठीक हो जाएगा। रात को मिट्टी के पात्र में दो चम्मच त्रिफला एक गिलास पानी में भिगो दें। प्रात: छानकर उस पानी से आंखें धोने से ‘आई फ्लू’ रोग दूर होता है।

- इसके रोगी का रूमाल, तोलिया, बिस्तर व कपड़े इत्यादि अलग रखने चाहिए और हाथों को बार-बार साबुन से धोना चाहिए तथा काला चश्मा पहनना चाहिए। चिकित्सक से सलाह-मशविरा करके ही दवा का इस्तेमाल करना चाहिए।

सेहत के लिए जरूरी पायथोन्यूट्रिएंट खाने की थाली में शामिल होने वाली 34 प्रतिशत सब्जियां प्रोसेस्ड फूड की श्रेणी में गिनी जाने लगी हैं, जिनमें पायथोन्यूट्रिएंट की मौजूदगी न के बराबर होती है, प्रोसेस्ड की तकनीक खाद्य पद्धार्थो में पायथोन्यूट्रिएंट की जगह पायथोकैमिकल को रिप्लेस कर देती है।

डायटिशियन के अनुसार पायथोन्यूट्रिएंट तत्वों में पर्याप्त मात्र में एंटी ऑक्सीडेंट होता है, जिसे फाइट फॉर कैमिकल्स भी कहा जाता है, शोध के अनुसार प्राकृतिक सब्जियों में 900 विभिन्न तरह के पायथोन्यूट्रिएंट होते हैं, कुछ प्रमुख जाने-माने पायथोन्यूट्रिएंट को, लायकोपीन, लेमोनिन, करकुमिन, रिसरवेटॉल व क्वीरटाइन नाम से जाना जाता है।

लायकोपीन लाल टमाटर में, करकुमिन लाल अदरक में, रिसरवेटॉल लहसून में व क्वीरटाइन सेब के छिलके व पत्ता गोभी में पर्याप्त मात्र में पाया जाता है। डायटिशियन डॉ. शुभा सबरवाल कहती हैं कि दिल को तंदुरुस्त रखने, सेल्स के पुनर्निर्माण व आंखों की रोशनी के लिए पायथोन्यूट्रिएंट का सेवन कारगर माना गया है(हिंदुस्तान,दिल्ली,7.9.2010)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बीमारी सारी दिल्ली में फैली हुई है इसलिए इस बार आंख चुराने में ज्यादा विश्वास कर रहा हूं। आंख से आंख भिड़ाने से पहले जांच रहा हूं। फिर भी अगर अंखियां लड़ गईं तो क्या करुंगा। झेलूंगा ही। जैसे की होने पर झेलना पड़ता है. वैसे अभी ही इस बीमारी से बच कर निकला हूं। बीमारी ने वार किया ही था कि पानी की शरण ले ली औऱ फिर दवाई की......

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