देश में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचा में कमी को रेखांकित करते हुए एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य पर खर्च के कारण देश के 7 से 8 फीसदी परिवार की माली हालात बिगड़ी है और वे गरीबी रेखा (बीपीएल) के नीचे आ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के लोगों की बेहतर स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा तक पहुंच नहीं है। यह बात विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों, अनुसूचित जाति और महिलाओं के मामले में सही है। हाल ही उद्योग मंडल सीआईआई की ओर से इंडिया हेल्थ रिपोर्ट शीर्षक से जारी रिपोर्ट में देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं का जिक्र किया गया है। इसमें स्वास्थ्य सुविधा तक लोगों की पहुंच, बुनियादी ढांचा उपलब्धता, मानव संसाधन, पानी और स्वच्छता, पोषण तथा सरकार की भूमिका जैसी बातें शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च के कारण करीब 7 से 8 फीसदी परिवार की माली हालात बिगड़ गई और वे गरीबी रेखा के नीचे चले गए। अस्पतालों और प्रशिक्षित कर्मचारियों के संदर्भ में बुनियादी ढांचा की पर्याप्त कमी है। रिपार्ट में यह भी कहा गया है कि निजी क्षेत्र द्वारा अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्ध्ता में धीरे धीरे वृद्धि हुई है। यह 1973 में 28 फीसदी था जो 1996 में लगभग 61 फीसदी हो गया। पोषाहार के मामले में देश की स्थिति अफ्रीकी और बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से भी अच्छी नहीं है। साथ ही इस मामले में हमारा देश लातिन अमेरिकी, चीन और फिलीपींस जैसे देशों से पीछे है। पोषाहार की कमी से जूझ रहे दुनिया के एक तिहाई बच्चों हमारे देश में हैं। नीति निर्माताओं को इस मामले में ध्यान देने की जरूरत है। रिपोर्ट में बीमारी केंद्रित उपायों और समग्र स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने की सिफारिश की गई है(हिंदुस्तान,दिल्ली,5.9.2010)।
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देश में इलाज पर होने वाला तगड़ा खर्च खुद ही मर्ज बन रहा है। इसकी वजह से 7 से 8 फीसदी परिवार गरीबी की रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसा स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे व सुविधाओं में भारी अंतर के चलते हो रहा है। प्रमुख उद्योग चैंबर सीआईआई द्वारा हाल ही में जारी इंडिया हेल्थ रिपोर्ट में इस तथ्य को उजागर किया गया है। यह रिपोर्ट देश के स्वास्थ्य क्षेत्र की बीमारी को भी सबके सामने रखती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच कतई नाकाफी है। खासकर गरीबों, ग्रामीणों, आदिवासियों व औरतों के बारे में तो यह बात और भी दावे के साथ कही जा सकती है। ताजा रिपोर्ट में देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के हेल्थकेयर तक पहुंच, स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, मानव संसाधन, पानी और साफ-सफाई, पोषण और सरकार की भूमिका समेत तमाम पहलुओं को उभारा गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में बड़ी खाई मौजूद है। खासकर हेल्थकेयर सेंटरों और अच्छी तरह प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी साफ झलकती है। इस रिपोर्ट में हेल्थकेयर में निजी क्षेत्र के बढ़ते योगदान का भी जिक्र है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 1973 में निजी क्षेत्र के अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्धता 28 फीसदी के करीब थी, जो वर्ष 1996 में बढ़कर 61 फीसदी हो गई। पोषण के मामले में तो अपने देश का रिकॉर्ड और भी खराब है। दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों की एक तिहाई आबादी भारत में है। इसलिए अब सरकार को पूरा जोर अनाज की उपलब्धता बढ़ाने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, उसे अब उचित अनुपात में किस्म-किस्म के खाद्य पदार्थो की खपत बढ़ाने का इंतजाम करना चाहिए ताकि आवश्यक तत्त्वों की कमी से होने वाली बीमारियों से बचा जा सके। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भारत को बीमारी आधारित कदम उठाने के बजाय अब एक संपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य और हेल्थकेयर व्यवस्था के विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना चाहिए(दैनिक जागरण,6.9.2010)।
"ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आप फलां तरीक़े से स्वस्थ हैं और वो अमुक तरीक़े से। आप या तो स्वस्थ हैं या बीमार । बीमारियां पचास तरह की होती हैं;स्वास्थ्य एक ही प्रकार का होता है"- ओशो
सोमवार, 6 सितंबर 2010
महंगा इलाज़ बढ़ाती है ग़रीबी
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जवाब देंहटाएंशहरों में भी हालात अच्छे नहीं है। महंगे ईलाज से दिल्ली में ही कई लोगो को कंगाल होते देखा है। उच्च मध्यम परिवार को निम्म मध्यम परिवार बनते देखा है राजधानी दिल्ली में। कौन देख रहा है कौन सुन रहा है इस बारे में। सरकार कान में रुई डाल कर बैठी हुई है। औऱ अगर कुछ करने की कोशिश करती है तो सफेद कोट में मौजूद कई शैतान सरकार को कुछ करने नहीं देते....। अब जौधपुर में देखो हड़ताल है कई नवजात शिशु मर गए..पर इनके लिए रोज होने वाली नॉर्मल मौत है......अपने को अब भी भगवान कहते हैं......मी़डिया के सामने.....बेशर्मी की हद और क्या देखोगे....?
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