मंगलवार, 3 अगस्त 2010

योग गुरुओं को भी कराना होगा पंजीकरण!

योग के नाम पर इलाज का खम ठोंकने वालों को अब अपना पंजीकरण कराना होगा। स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता सुधार की कानूनी कवायद के तहत सरकार डॉक्टरों के अलावा योग प्रशिक्षकों के लिए भी अपने निदान केंद्रों का पंजीयन अनिवार्य बनाने जा रही है। बीते सत्र के दौरान लोकसभा में बिना चर्चा की मंजूरी के बाद सोमवार को राज्यसभा में नैदानिक स्थापना पंजीयन और नियमन विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बारे में अक्सर संवेदनहीनता की शिकायतें मिलती हैं। लिहाजा यह जरूरी है कि इस तरह के विधेयक के सहारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता के मानक तय किए जाएं। विधेयक के मुताबिक सरकार से मान्यता प्राप्त किसी भी चिकित्सा पद्धति से चलने वाले अस्पताल, नर्सिग होम, मैटरनिटी होम, डिस्पेंसरियां या एक चिकित्सक द्वारा संचालित क्लीनिकों का भी पंजीयन अनिवार्य होगा। परीक्षण लैब और रेडियोलॉजी आदि पद्धतियों से जांच करने वाले केंद्र भी नए विधेयक के दायरे में होंगे। इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक चिकित्सा केंद्र किसी गंभीर स्थिति में लाए गए मरीज को भर्ती करने से इनकार भी नहीं कर पाएंगे। वहीं नैदानिक केंद्रों को हर पांच साल बाद अपने पंजीकरण का नवीनीकरण कराना होगा। नैदानिक केंद्रों के नियमन के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर परिषद गठित की जाएगी। वैसे यह विधेयक फिलहाल हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और मिजोरम के अलावा केंद्र शासित प्रदेशों में ही लागू होगा। क्योंकि इन राज्यों की विधानसभाओं ने इस बाबत प्रस्ताव पारित किए हैं, लेकिन अन्य राज्य चाहें तो अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कर इसे अपना सकते हैं। हालांकि इस पर चर्चा के दौरान माकपा सांसद वृंदा करात का कहना था कि विधेयक का जोर पंजीयन पर ज्यादा और नियमन पर कम है। साथ ही उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर योग का प्रशिक्षण देने वालों को इसके दायरे में लाने का विरोध किया। वहीं वृंदा के अलावा डीएमके सांसद कनीमोझी ने इस विधेयक को राज्यों के अधिकारों में केंद्र का अतिक्रमण भी करार दिया। गौरतलब है कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है(दैनिक जागरण,दिल्ली,3.8.2010)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार और सरकार में बैठे लोगों के मानसिक दिवालियापन की एक और मिसाल ,सरकार में बैठे भ्रष्ट मंत्री कोई भी सार्थक सामाजिक काम होने ही नहीं देना चाहते ,अरे मैं कहता हूँ कमियों की जड़ तो मंत्रालय और देश के जिलों के समाहारालय में भ्रष्ट मंत्रियों और आधिकारियों के रूप में बैठें हैं जिनको नियंत्रित और ईमानदारी से काम करने के लिए बाध्य करने की जरूरत है सारे फर्जिबारों के जड़ में इन लोगों का शेयर होता है | नियम-कायदे को बेचते हैं ये लोग न की उसका पालन करते हैं | काम करते नहीं कागजी लकीर को पिटते रहते हैं सारा दिन जिसकी वजह से व्यवस्था सड़ चुकी है | सरकारी पंजीकरण वाली संस्थाएं घोटालों और गवन में सबसे आगे है और ये पंजीकरण ही बिना रिश्वत के बरी मुश्किल से मिलता है ऐसे में रिश्वत देकर पंजीकरण वही लेगा जो वैसे ही कामों को अंजाम देगा | सरकार सामाजिक और जनहित में कार्य कर रही संस्थाओं का सर्वे करे और खुद उनको पंजीकृत करे उनके ईमानदारी भरे जमीनी कार्यों को देखकर | इसके लिए गंभीर इंसानी सोच और सच्चे प्रयास की जरूरत है और जिसकी सरकार तथा सरकार में बैठे ज्यादातर लोगों में सख्त अभाव है |

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  2. ये तो अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने इस तरह के लोगों का डेटाबैंक तो तैयार हो जाएगा।

    …………..
    अद्भुत रहस्य: स्टोनहेंज।
    चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..।

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  3. लेकिन पंजीकरण किस चीज़ का करेंगे । क्या इनके पास कोई डिग्री होती है ?

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