मंगलवार, 31 अगस्त 2010

विदेशी अभिभावक कर रहे भारतीय बच्चों का शोषण

केंद्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहा कि विदेशी अभिभावकों द्वारा गोद लिए जानेवाले भारतीय बच्चों के शोषण के बारे में काफी तकलीफदेह जानकारी सामने आई है। सरकार ने एक अमेरिकी दंपति द्वारा नौ साल के एक डिसलेक्सिया पीड़ित बच्चे को गोद लिए जाने के कदम का भी विरोध किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक विदेशी महिला को अनाथालय में रह रहे डिसलेक्सिया से पीड़ित एक बच्चे को गोद लेने की अनुमति दे दी। सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रामण्यम ने न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ को बताया कि सरकार का विचार है कि विदेशी माता-पिताओं द्वारा गोद लिए गए भारतीय बच्चों को अनेक किस्म के शोषण का खतरा होता है और एक बार वे देश से चले जाते हैं तो उनके हितों की रक्षा करना कठिन हो जाता है। सालिसिटर जनरल ने कहा कि मैंने जानकारी ली है। काफी कष्टदायी जानकारी सामने आई है। विदेशों में ऐसे बच्चों के शोषण के अनेक मामले हैं। नागरिक संगठनों की तरफ से भी ऐसी सामग्री सामने आई है। उन्होंने कहा कि हमें इस तरह के मुद्दों पर संतुलित रवैया अपनाने की जरूरत है। इन बच्चों (परित्यक्त) की अपनी कोई आवाज नहीं होती। यदि विदेश में बच्चों का उत्पीड़न होता है तो उनके लिए कोई आवाज नहीं उठा सकता। एक बार वे देश छोड़कर विदेश चले जाते हैं तो हम उनके लिए थोड़ा ही प्रयास कर सकते हैं। सालिसिटर जनरल ने एक अमेरिकी दंपति द्वारा डिसलेक्सिया पीड़ित एक भारतीय बच्चे को गोद लेने की अनुमति देने की अपील पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 31 अगस्त को अमेरिका के विनेबागो निवासी सेरेब्राल पाल्सी पीड़ित क्रेग एलेन कोट्स और उनकी पत्‍नी सिंथिया एन कोट्स की लड़के को गोद लेने की याचिका को खारिज कर दिया था। उधर, कोर्ट ने कहा कि अगर विशेषज्ञों की टीम बच्चे के किसी भी तरह के संभावित दुरुपयोग की संभावना से इनकार कर देती है तो अदालत को अनुमति प्रदान करने में दिक्कत नहीं आएगी। बेंच ने सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रामण्यम के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया कि डिसलेक्सिया का इलाज करने वाले डाक्टरों और इससे जुड़े अन्य लोगों की राय के बाद बच्चे को विदेश भेजना उचित होगा। अदालत ने गोद लेने के संबंध में कानून बनाए जाने पर विधि आयोग को भी लिखा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि गोद देने से पहले यह निश्चित करना जरूरी है कि बच्चे का शारीरिक शोषण न हो। बच्चों को गुलामी का जीवन न जीना पड़े, इसकी संभावना न होने पर गोद लेने की इजाजत दी जा सकती है।

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