मंगलवार, 13 जुलाई 2010

कैशलेस मेडिकल सुविधा समाप्त किए जाने से मरीज बेहाल

चिकित्सा बीमा कंपनियों ने देश के १८० अस्पतालों को कैशलेस सूची से बाहर कर, मरीजों की जिंदगी से खिलवा़ड़ किया है। मरीज अस्पताल में भर्ती हैं और उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। अस्पतालों ने हाथ ख़ड़े कर दिए हैं। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने वाले लोग महीनों से प्रीमियम भर रहे हैं और अचानक इनके व्यवहार से ठगा महसूस कर रहे हैं। अस्पतालों की मांग है कि टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) को तत्काल बर्खास्त किया जाए। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों के लिए लिए सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (स्मार्ट कार्ड) प्राईवेट मेडिक्लेम व स्वास्थ्य इंश्योरेन्स से कहीं बेहतर है। इसे सभी लोगों के लिए लागू कर सरकार आमजन का भला कर सकती है। बीमा कंपनियां टीपीए के मार्फत बीमा पॉलिसी बेचती है। बीमा पॉलिसी खरीदने वालों से टीपीए सलाना करीब ६००० करो़ड़ ヒपए का प्रीमियम वसूलते हैं। टीपीए वाले कभी समय से स्वीकृति नहीं भेजते, जिस कारण मरीजों को २४ से ४८ घंटे तक इंतजार करना प़ड़ता है। अस्पतालों को पेमेंट भी आठ महीने से एक साल में मिलती है। इस दौरान ८ महिने से एक साल का बैंक का ब्याज उनकी कमाई होती है। अस्पताल प्रबंधकों का कहना है कि यह कंपनियां अस्पतालों का भुगतान एक साल तक रोके रहती है, लेकिन उल्टा यह अस्पतालों पर अधिक बिल का आरोप लगा रही हैं। इंडियन अस्पताल के चेयरमैन डॉ राजेश कुमार सिंह का कहना है कि सरकार को गरीबी रेखा से नीचे जनता के लिए चल रही आरएसबीवाई कार्ड योजना की तरह गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले लोगों के लिए कार्ड बनना चाहिए। इसमें मरीज का ऑनलाइन रिकार्ड कुछ सेकेंडों में बीमा कंपनी तक पहुँचाता है। अस्पताल को भी २१ दिन में भुगतान मिल जाता है। सरकार की इस योजना में कवर एक परिवार के लिए पहले दिन से ही से इलाज व सर्जरी मान्य है। इस कार्ड में कोई आयु सीमा निर्धारित नहीं है एवं पूर्व जानकारी की बीमारी भी इसमें कवर्ड है। इंडियन हॉस्पीटल में इलाज के लिए आए रवि वर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लोग सुविधा के लिए खरीदते हैं, लेकिन ये कंपनियों मरीजों को परेशान कर रही हैं। यदि लोगों के पास चार-पांच लाख ヒपए होंगे ही तो कोई बीमा पॉलिसी कोई क्यों लेगा? बत्रा अस्पताल में इलाज के लिए आए संजीव वाधवा का कहना है कि अस्पताल वालों ने इलाज के लिए मना कर दिया है। मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि इन निजी अस्पतालों का खर्च वहन कर सकूं। बीमा पॉलिसी ऐसे ही दिनों के लिए लिया था, लेकिन अब वह कंपनी मनमाना व्यवहार कर रही है। इन कंपनियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए(नई दुनिया,दिल्ली,13.7.2010)।

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