बहुराष्ट्रीय शीतल पेय कंपनी के संयंत्र से लोगों, पर्यावरण और कृषि क्षेत्र को होने वाले गंभीर नुकसान के मामले में केरल सरकार और कोका-कोला कंपनी फिर आमने-सामने आ गए हैं। राज्य की एलडीएफ सरकार ने बुधवार को कंपनी से मुआवजा वसूलने के लिए विशेष पंचाट की स्थापना करने का निर्णय किया। केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने यहां पत्रकारों को बताया कि सरकार द्वारा नियुक्त उच्चस्तरीय समिति की रपट के आधार पर राज्य कैबिनेट ने पंचाट की स्थापना करने का निर्णय किया है। समिति ने कोका-कोला की भारतीय अनुषंगी हिंदुस्तान कोका-कोला बेवरेज लिमिटेड के संयंत्र से 216.26 करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया है। उन्होंने कहा कि कानून विभाग को प्रस्तावित पंचाट का विवरण तैयार करने को कहा गया है। इस बीच,कंपनी जो इस मुद्दे पर अक्सर कानूनी उलझनों में पड़ती रही है, अपनी स्थिति पर कायम है, उसका कहना है कि समिति ने एक पूर्व निर्धारित और अप्रमाणित निष्कर्ष निकाला है। उसका कहना है कि यहां के निवासियों के कारण संयंत्र के परिचालन में नुकसान कंपनी को उठाना पड़ा है। केरल के पलक्कड़ जिले के प्लाचिमादा में कोका-कोला का संयंत्र स्थापित है,जो पिछले चार वर्षो से लगभग बंद है। प्रतिरोधी समूहों द्वारा समय-समय पर आंदोलन के कारण संयंत्र इस हालत में पहुंच गया है। इसी विषय पर दैनिक जागरण में आज रमेश दुबे का आलेख कहता हैः
"शीतल पेय से गला तर करते समय शायद ही किसी को आभास होता हो कि हम अपने शरीर के साथ-साथ धरती को भी खोखला कर रहे हैं। दिल्ली स्थित हजार्ड्स सेंटर ने पिछले सप्ताह हाउ हार्श इज योर सॉफ्ट ड्रिंक नामक एक किताब जारी की। इस किताब में शीतल पेय कंपनियों के विभिन्न प्लांटों के आसपास के इलाकों का सर्वे किया गया है। हेजार्ड्स सेंटर के अनुसार इस किताब का मकसद देश के पेप्सी और कोक के पांच प्लांटों के आसपास के इलाकों में पानी की गुणवत्ता पर असर जानना है। इसके लिए मेंहदीगंज और गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश), काला डेरा व चौपांकी (राजस्थान) तथा पानीपत (हरियाणा) के प्लांटों का चयन किया गया। शोध में इन शीतल पेय कंपनियों के ठोस कचरे यानी सॉलिड वेस्ट के चलते जमीन पर पड़ने वाले असर का भी अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि प्लांटों से निकलने वाले ठोस कचरे के कारण मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित हुई और भूमि की उत्पादकता के साथ-साथ भूजल में कमी आई। सच्चाई यह है कि जल संकट का सामना कर रहे भारत की मुसीबत बढ़ाने का काम कोला कंपनियां कर रही हैं। एक बोतल (250 मिलीलीटर) कोक बनाने में बीस लीटर पानी बर्बाद होता है और शरीर में जाने के बाद हजम होने के लिए नौ गुना पानी और लगता है। स्पष्ट है कि शीतल पेय कंपनियां पानी की दुश्मन हैं। ये भूजल का बेजा इस्तेमाल करती हैं। उदाहरण के लिए केरल में कोका कोला के प्लौचीमाड़ा (पलक्कड़ जिला) संयंत्र ने बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन शुरू किया और पानी के उपयोग के बाद जो कीचड़ पैदा हुआ, उसे किसानों को खाद के रूप में दे दिया गया। लेकिन सीसे और कैल्शियम की मात्रा अधिक होने के कारण इस खाद से फसलों को नुकसान पहुंचा। इस प्रकार संयंत्र के कारण गांव में जल का स्तर घटा, पेयजल प्रदूषित हुआ और खेती को नुकसान पहुंचा। विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने एक समिति का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट में संयंत्र पर 216 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की सिफारिश की। शीतल पेयों में क्रोमियम की अधिक मात्रा होती है, जिसके लगातार सेवन से कैंसर जैसी बीमारियों के पैदा होने का खतरा रहता है। पानी के 85 नमूनों में से 59 नमूनों में क्रोमियम की मात्रा निर्धारित सीमा (0.05 पार्ट पर मिलियम या पीपीएम) से अधिक पाई गई। कुछ नमूनों में तो यह मात्रा 5.64 पीपीएम तक थी। शीतल पेय के सेवन से मोटापा बढ़ता है। इसका कारण है कि इनमें मिठास पैदा करने के लिए सस्ता तरल स्वीटनर हाई फ्रक्टोज कॉर्न सिरप का इस्तेमाल किया जाता है। यह नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर रोगों से पीडि़त लोगों के लीवर में नुकसान पहुंचा सकता है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों में फ्रक्टोज युक्त स्वीटनर्स वालों के पेट में वसा और रक्त में लिपिड का स्तर अधिक पाया गया और हार्मोन के प्रति संवेदनशीलता कम पाई गई। शीतल पेय शरीर में वसा की खपत में व्यवधान पैदा करते हैं, जिससे दिल के दौरे तथा स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। दांतों की सड़न, हड्यिों की कमजोरी जैसी समस्याएं भी इनके सेवन से पैदा होती हैं। 2003 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) ने यह खुलासा करके सनसनी फैला दी थी कि शीतल पेयों में खतरनाक हद तक कीटनाशकों की मात्रा मौजूद है। कुछ नमूनों में भारत मानक ब्यूरो के तय मानक से पच्चीस गुना ज्यादा जानलेवा कीटनाशक पाए गए। उन कीटनाशकों के शरीर में पहुंचने पर किडनी, लीवर, दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है। अगस्त 2006 में सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में एक बार फिर शीतल पेयों में कीटनाशकों की मौजूदगी का प्रमाण प्रस्तुत किया। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि देश में बिक रहे शीतल पेय में कीटनाशकों की मात्रा यूरोपीय मानकों के हिसाब से 42 गुना अधिक पाई गई थी। इस मसले पर 2004 में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई थी कि वह केंद्र सरकार को शीतल पेय की बिक्री पर गुणवक्ता संबंधी बंदिशें और नियम बनाने का निर्देश दे, लेकिन सरकार ने ठंडे पेयों में कीटनाशकों की मात्रा, उनकी गुणवक्ता जांच और इस बारे में नियम तय करना जरूरी नहीं समझा। कोला कंपनियों ने भी यह जरूरी नहीं समझा कि शीतल पेय में मिलाए जाने वाले रासायनिक तत्वों का ब्यौरा सार्वजनिक करें। दरअसल, आज हमें एक ऐसे नियामक की जरूरत है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से यह सुनिश्चित करे कि हमारा आहार विषाक्त पदार्थो और रसायनों के सख्त मानकों पर खरा उतरे। आहार उद्योग को सिर्फ वाणिज्यिक नजरिए से संचालित करने के परिणाम बहुत घातक होंगे।"
exclusive
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण-विचारणीय.
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