शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

नीम हकीमों के सहारे

इस तथ्य से सरकार की सेहत पर फर्क पड़ना चाहिए कि दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में भी झोलाछाप डाक्टरों का वर्चस्व कायम हो गया है। यदि देश में प्रशिक्षित डाक्टरों की तुलना में झोलाछाप डाक्टरों की संख्या तीन गुना हो गई है तो इसका सीधा मतलब है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी सेहत की भलाई के लिए इन्हीं नीम-हकीमों पर निर्भर है। हालांकि हमारे नीति-नियंता उन कारणों से भली तरह परिचित हैं जिनके चलते झोलाछाप डाक्टरों की संख्या बढ़ती चली जा रही है, लेकिन उनका निवारण करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं और इसका सबसे बड़ा सबूत है महानगरों में भी ऐसे डाक्टरों की संख्या बढ़ जाना। ऐसा लगता है कि सरकार ने उच्चतम न्यायालय के उन दिशा-निर्देशों को भी भुला दिया जिनके तहत झोलाछाप डाक्टरों को चिह्नित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा गया था। शायद ही किसी राज्य सरकार ने इन दिशा-निर्देशों के अनुसार समुचित कार्रवाई की हो। कुछ राज्यों ने ऐसे डाक्टरों को चिह्नित करने का अभियान शुरू अवश्य किया, लेकिन वर्तमान में कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि इन अभियानों का क्या हश्र हुआ? केंद्र और राज्य सरकारें भले ही स्वास्थ्य ढांचे में सुधार के लिए बड़े-बडे़ दावे करती हों, लेकिन यथार्थ यह है कि यह वह क्षेत्र है जो सर्वाधिक उपेक्षित है। यही कारण है कि सरकारी स्वास्थ्य ढांचा चरमराता जा रहा है और निजी स्वास्थ्य तंत्र तेजी से तरक्की कर रहा है। यह वह स्थिति है जो कुल मिलाकर झोलाछाप डाक्टरों का काम आसान कर रही है। सरकारी स्वास्थ्य ढांचे के चरमराने और निजी क्षेत्र में चिकित्सा खर्च महंगे होते चले जाने के कारण आम आदमी झोलाछाप डाक्टरों के पास जाने के लिए विवश है। विडंबना यह है कि नीति-निर्माता इससे खुश हैं कि देश में निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य ढांचे का जो निर्माण हो रहा है उससे विदेशी नागरिक भी भारत में इलाज कराने आने लगे हैं। इसमें कुछ भी अनुचित-अस्वाभाविक नहीं कि पर्यटन की एक नई शाखा मेडिकल पर्यटन के रूप में विकसित हो रही है, लेकिन क्या कोई इस पर विचार करने के लिए तैयार है कि ऐसा किस कीमत पर हो रहा है? स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होना कोई शुभ संकेत नहीं कि विदेशी नागरिकों के लिए भारत में इलाज कराना तो सुलभ हो जाए, लेकिन देश के आम लोगों के हिस्से में झोलाछाप डाक्टर बढ़ते जाएं। समस्या केवल यह नहीं है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा झोलाछाप डाक्टरों की सेवाएं लेने के लिए विवश है, बल्कि यह भी है कि भारत रोगियों का ठिकाना बनता जा रहा है। सामान्य और जटिल बीमारियों के जितने रोगी भारत में हैं उतने शायद ही किसी विकसित देश में हों। कहने को तो सरकारों के पास सबको स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के आकर्षक नारे हैं और वे बार-बार यह दावा भी करती हैं कि स्वास्थ्य ढांचे को सशक्त बनाना उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है, लेकिन सच्चाई यह है कि हाल-फिलहाल सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं सभी को सुलभ होने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते(संपादकीय,दैनिक जागरण,2.7.2010)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।