गुरुवार, 22 जुलाई 2010

चुनिए डाइट जो रखे सेहत संतुलित

व्यायाम से गठी हुई देह की पसंद वाले इस समय में हमारे सामने रोज नई मिरैकल डाइट्स आ रही हैं। डॉक्टर और स्वास्थ्य सलाहकार शिखा शर्मा अच्छी डाइट को रोजमर्रा की सेहत संबंधी रूटीन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानती हैं। उनके अनुसार, ‘इससे व्यवहारगत बदलाव की शुरुआत होती है, आपको अनुशासित और एकाग्रचित बनाती है, लेकिन यह केवल बदलाव करने का एक तरीका है, संपूर्ण विधि नहीं।’

तो चाहे वह जेनिफर एनिस्टन का बेबी फूड हो या बेयॉन्स नाउल्स का शायेन पैपर और वाटर प्रोग्राम, डाइट का स्वरूप लगातार अजीबोगरीब होता जा रहा है। हमारे पैनल एक्सपर्ट्स डॉ. शर्मा, न्यूट्रीशियन इन्फॉर्मेशन, काउंसलिंग एंड हैल्थ एजुकेशन (एनआईसीएचई) की मैनेजिंग पार्टनर व संस्थापक शीला कृष्णास्वामी एवं होल फूड्स की क्लीनिकल न्यूट्रीशियनिस्ट एवं डायरेक्टर ईशी खोसला ने पांच जाने-माने ईटिंग प्लान्स का आकलन किया।

ब्लड टाइप ‘ईट राइट फॉर योर टाइप’किताब के लेखन पीटर डीएडमो के अनुसार व्यक्ति के ब्लड टाइप और खाने वाली चीजों में लेक्टिन नाम तत्व के कारण एक रसायनिक क्रिया होती है। उनके सिद्धांत के अनुसार यदि भोजन बेमेल लेक्टिंस से युक्त है तो वह किसी अंग विशेष पर अपना प्रभाव डाल सकता है और उस हिस्से के रक्त कणों को आपस में जोड़ सकता है। ब्लड टाइप डाइट आपकी जीन संरचना और रक्त समूह से मेल खाने वाले खाद्य समूह के अनुसार होती है। खाद्य समूह को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है-बेहद फायदेमंद, खाए जा सकने वाले खाद्य पदार्थ और नहीं खाए जा सकने वाले खाद्य पदार्थ। सामान्य फल-सब्जियां जैसे पालक और सेब सभी तरह के ब्लड टाइप में खाए जा सकते हैं।

कितने समय तक तीन महीने से अधिक नहीं। न्यूट्रिशियनिस्ट की सलाह से ही लें।

किसके लिए उपयोगी है डॉ. शर्मा के अनुसार यह आहार ऐसे लोगों के लिए उपयोगी है जिन्हें एलर्जी की समस्या होती है। कुछ खाद्य पदार्थो को अलग करने पर, हम यह जान सकते हैं कि एलर्जी का प्रमुख कारण क्या है।

क्या अच्छा है हालांकि अधिकतर आहार विशेषज्ञ इस डाइट योजना को लेकर संशय में हैं, डॉ. शर्मा के अनुसार कि इस आहार का सबसे अच्छा पहलू यह है कि इसमें व्यक्ति के शरीर और इसके लिए क्या अच्छा रहेगा इस बात पर ध्यान दिया जाता है। यह कुछ आयुर्वेदिक सिद्धांतों से मेल खाती है। कुछ हद तक इस आहार ढांचे में संभावना है पर यह पूरी तरह असरकारी नहीं है।

क्या खराब है इस आहार में सबसे बड़ा जोखिम आवश्यक पोषक तत्वों की कमी है। डॉ. खोसला के अनुसार ओ और ए ब्लड टाइप में डेयरी उत्पाद सीमित होते हैं। परिणामस्वरूप डाइट में केल्शियम और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। यह कई लोगों के लिए उलझन देने वाली है, जिसका कारण है स्वीकृत और अस्वीकृत खाद्य पदार्थो की सूची इसे अस्थायी बना देती है। यह वजन कम करने पर केन्द्रित नहीं है।

सावधानियां चूंकि पोषक तत्वों की कमी होने का स्वाभाविक जोखिम इसमें निहित है, इसे किसी न्यूट्रिशियनिस्ट की देख-रेख में ही लें।

जोन एटकिन्स डाइट का हल्का स्वरूप जोन डाइट है, जिसे अमेरिका के बायोकेमिस्ट बैरी सीअर्स ने ईजाद किया है। यह लो-काबरेहाइड्रेट और उच्च प्रोटीन वाली डाइट है। इसके अनुसार खाद्य पदार्थो को उपचार के लिए बताई गई दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है-जिसमें खाद्य पदार्थों का सही तालमेल दवाओं की तरह असरकारी होता है।

इसके तहत, आपके आपकी नियमित कैलारी का 40 प्रतिशत काबरेहाइटड्रेट से, 30 प्रतिशत वसा से और 30 प्रतिशत प्रोटीन से मिलता है। इसके तहत असीमित मात्र में फल व सब्जियों का सेवन भी शामिल है। सीयर्स के अनुसार, यह डाइट वसा कम करने का सबसे सही माध्यम है। खोसला के अनुसार इस आहार में खाए जाने वाले आहार की मात्रा एक महत्वपूर्ण घटक है और क्लाइंट से उनके खान-पान को नियंत्रित करने के लिए प्रेरित करती है।

इस आहार में तीन तरह के भोजन और दो स्नैक्स होते हैं। स्नैक्स का सेवन दोपहर बाद और देर शाम रखा गया है। इस डाइट का खास गुण उन्होंने अपनी दूसरी किताब में बताया है, जिसमें एक खास दर से आमैगा-3 और ओमैगा-6 फैटी एसिड का सेवन है।

कितने समय तक इसका असर एक महीने में दिखने लगता है।

किसके लिए उपयोगी ऐसे किसी के लिए भी जो कि अपनी जीवनशैली को बदलने को इच्छुक हैं और लाभकारी खाद्य पदार्थो के तालमेल और उचित मात्र का ध्यान रखते हैं।

क्या अच्छा है डॉ. शर्मा के अनुसार अन्य डाइट की तुलना में जोन सबसे संतुलित पोषक डाइट है। जबकि कृष्णास्वामी इस आहार में ओमैगा फैटी एसिड को दिए गए महत्व से खुश है। यह एटकिन्स की तुलना में कम थकावट देती है क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट की कुछ मात्रा को शामिल किया गया है।

क्या बुरा है अन्य डाइट जैसे एटकिन्स और जीएम की तुलना में इसमें वजन धीरे-धीरे घटता है। डॉ. शर्मा के अनुसार धीरे-धीरे वजन कम होना कोई बुरी बात नहीं है क्योंकि लंबे समय तक यह प्रभाव रहता है। चूंकि इसमें कई गणना शामिल होती हैं यह डाइट केवल उनके अनुरूप होगी जो कि पूरी तरह समर्पित हैं। यह डाइट प्लान उन लोगों के लिए कठिन हैं जो अपना अधिकतर समय खाने के विभिन्न और महंगे विकल्पों के बारे में सोचने में लगाते हैं। कृष्णास्वामी लो-कार्बोहाइड्रेट डाइट के होने वाले नुकसान के प्रति भी सतर्क करती हैं-जिससे गुर्दे को नुकसान और कब्ज होने की आशंका रहती है।

सावधानी आहार-विशेषज्ञ इस डाइट को अपनाने में एटकिंस और जोन के बीच के आकर्षण से बचने के प्रति सतर्क करते हैं। डॉ. शर्मा के अनुसार लोग इस डाइट का पालन तो सही तरीके से शुरू करते हैं और बीच में वे कार्बोहाइड्रेट डाइट को पूरी तरह छोड़ देते हैं जो असंतुलन उत्पन्न करती है।

स्पार्क पीपल डाइटर्स की फेसबुक, स्पार्कपीपल शुल्करहित है इसमें डाइट और एक्सरसाइज संबंधी सूचना होती है। इसे ज्वाइन करने पर आपसे आपका वजन और लंबाई पूछी जाती है ताकि आपके सही बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का अंदाजा लगाया जा सके और केवल स्वास्थ्य लक्ष्यों को ही मंजूरी दी जाती है।

प्रगति को स्पार्कप्वाइंट्स में मापा जाता है जो आपके स्वास्थ्य लक्ष्य संबंधी गतिविधियों के आधार पर मिलते हैं। आप कार्बोहाइड्रेट्स खा सकते हैं और कैलोरी ब्रेड में कटौती करने की इजाजत है। कॉटेज और पनीर के रूप में डेयरी उत्पाद लेने की भी इजाजत है। व्यायाम को बहुत महत्ता दी जाती है, साथ ही अनेक सलाह और वेबसाइट स्पार्कपीपल डॉटकाम से व्यंजनों की सूची में से चुनाव करते सकते हैं।

क्या अच्छा है व्यंजन और व्यायाम टिप्स मुफ्त हैं। कृष्णास्वामी कहते हैं, ‘यह कैलोरीज का संतुलित वितरण नजर आता है, इसमें व्यायाम करने और पानी पीने को भी प्रोत्साहन दिया जाता है।’ डॉ शर्मा कहती हैं कि इससे लोगों को सेहतपूर्ण खान-पान के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने में सकारात्मक मदद मिलती है और वे ‘बहुत कुछ सीखते हैं।’

क्या बुरा है डॉ. शर्मा इसे कुछ ज्यादा ही सुरक्षित मानते हैं। वह कहती हैं, ‘मैं डाइट्स को किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत जरूरत के हिसाब से आंकती हूं, कभी-कभार पश्चिमी विज्ञान और आयुर्वेद के सम्मिश्रण के आधार पर भी।’ जो डाइट सामान्य तौर पर खाई जाती हैं वह कुछ ज्यादा ही सुरक्षित हो सकती हैं और कभी-कभी गैर-असरकारी भी। डॉ. शर्मा के अनुसार स्पार्कपीपल को डाइट की बजाय स्वास्थ्य संबंधी पोर्टल के तौर पर देखा जाना चाहिए।

सावधानियां खोसला चेतावनी देते हैं कि जिनमें इंसुलिन का असंतुलन हो उनके लिए यह डाइट ठीक नहीं होती। व्यंजन विधियों को मधुमेह वाले व्यक्तियों को चीनी की मात्रा के संबंध में ध्यान से पढ़ना चाहिए। जो किशोर खानपान के प्रति लापरवाह हैं उन्हें इस डाइट की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

मीठे पर रोक इस डाइट के अनुसार सभी प्रकार का मीठा विषाक्त होता है क्योंकि इसकी वजह से वजन बढ़ता है। 1995 में पहली बार प्रकाशित इस पुस्तक के तब से इसके चाहने वालों की संख्या काफी बढ़ी है। यह भोजन में विशेषत: रिफाइन्ड शुगर को रोकने को कहती हैं और व्हाइट ब्रेड और पास्ता जैसे हाई ग्लिसिमिक फूड के साथ छुपी हुई शुगर वाले खाद्य पदार्थ जैसे मक्का, शहद, ग्लुकोज, फल और शीरा एवं अन्य। यहां तक कि कई फल एवं सब्जियां जैसे आलू, मक्का और गाजर पर भी पाबंदी है।

वजन घटाने के साथ-साथ डाइट में कम कोलेस्ट्रॉल, अधिक ऊर्जा और मधुमेह का इलाज भी करती है। ज़ोन की तरह, यह प्रोग्राम 30 प्रतिशत प्रोटीन, 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट्स और 40 प्रतिशत वसा युक्त होता है। एल्कोहल में केवल रेड वाइन लेने की इजाजत है।

कब तक? छह माह तक कम कैलोरी कटौती के हिसाब से चला जा सकता है, जिसके बाद व्यक्ति को अपनी खानपान की आदत में आमूल परिवर्तन के बारे में ध्यान देना होगा

किसके लिए है ये? अधिकांशत: मधुमेह रोगियों के लिए क्योंकि यह हर तरह की शुगर को हटाने में पहल करता है। डॉ. शर्मा के अनुसार यदि आप डायबेटिक नहीं हैं तो आप फल एवं सब्जियों के प्राकृतिक स्रोतों को छोड़ शुगर के अधिकांश स्रोत रोक सकते हैं।

क्या बेहतर है अधिकांश न्यूट्रीशियनिस्ट शरीर पर शुगर के विपरीत असर पर एकमत हैं। डॉ. शर्मा कहती हैं, ‘शुगर को हमेशा के लिए छोड़ने में कोई समस्या नहीं होती, इससे शरीर फूलता है, हार्मोनल असंतुलन, एसिडिटी और मोटापा बढ़ता है।’ कृष्णास्वामी को यह इसलिए पसंद है क्योंकि यह किसी विशेष खाद्य सामग्री को रोके बिना परिष्कृत शर्करा को दूर करता है। वह कहती हैं, ‘अधिक शुगर से ट्राइग्लिसीराइड्स और दांतों का क्षरण होता है, इससे इंसुलिन की मात्रा में भी उठा-पटक होती है, जिससे अधिकाधिक खाने की इच्छा बढ़ती है।’

क्या खराब है खोसला इस डाइट की बड़ी प्रशंसक नहीं हैं क्योंकि इससे आवश्यक खनिजों और पोषक तत्वों की कमी रहती है, यह शाकाहारियों के लिए आदर्श नहीं है और इसमें कुछ स्वास्थ्यवर्धक फलों एवं सब्जियों पर भी रोक लगती है। शुगर की बिल्कुल कमी से डाइट स्वादहीन हो जाती है। वजन कम करने के लिए यह जरूरी है, इसके नतीजे कैलोरी-बंधित भोजन के आधार पर आते हैं, और अधिकाधिक कैलोरी मात्रा 1200 प्रतिदिन होती है।

सावधानियां खोसला के अनुसार, ‘प्लान का पूरा जोर वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स के नापतोल पर होता है जो गैरजरूरी है क्योंकि इससे ईटिंग डिसॉर्डर हो जाता है।’ डाइट में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्र बेहद कम होती है, लिहाजा, केटोसिस और उससे जुड़ी समस्याओं का खतरा रहता है।

मॉर्निग बनाना डाइट जापान के लोगों में इस डाइट का काफी क्रेज है, जिसके तहत सुबह के समय केले खाए जाते हैं। सुबह के नाश्ते में आप जितने चाहे केले खा सकते हैं, पर केले खाने पर इतना नियंत्रण जरूरी होगा कि उन्हें खाने के बाद आपका पेट अफर ना जाए यानी भरपेट केले ना खाएं।

इस फल को आप सादे पानी के साथ खाएं, जो कि इस तरह के आहार के लिए पेय पदार्थ का काम करता है। इसके बाद आप रात्रि आठ बजे तक अपनी पसंद के अनुसार दोपहर और रात के भोजन और हल्के नाश्ते के तौर पर कुछ भी ले सकते हैं। रात आठ बजे के बाद कुछ भी खाना प्रतिबंधित है।

पाबंदी के तहत आइसक्रीम, डेयरी उत्पाद, एल्कोहल व रात के भोजन के बाद किसी तरह के डेजर्ट आदि की मनाही है, पर आप बीच दोपहर के बाद इनमें से एक स्वीट स्नैक ले सकते हैं। इस योजना का एक अन्य पहलू यह है कि इसमें व्यायाम पर कम जोर दिया गया है। आप चाहें तो व्यायाम कर सकते हैं पर अधिक कठिन वर्कआउट से बचें।

कितने समय तक सुबह के नाश्ते में केला खाने की अपनी आदत को ताउम्र बनाए रख सकते हैं। सादे पानी के साथ लें (गुनगने पानी का सेवन अधिक बेहतर होगा।) ठंडा पानी पाचन प्रक्रिया पर बुरा असर डालता है।

किसके लिए उपयोगी ऐसे किशोर जिनके पास नाश्ता करने का समय नहीं होता, उनके लिए सुबह कुछ केले खाना अच्छा साबित होगा।

क्या है अच्छा डॉ. शर्मा के अनुसार सुबह के समय केला खाना सबसे बेहतर होता है, क्योंकि इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। आयुर्वेद के अनुसार, केले में कफ तत्व की प्रधानता होती है, जो कि ठंडा होने के साथ ऊर्जावान होता है। यदि इसे रात्रि में खाया जाए तो यह आपकी उपापचय की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कृष्णस्वामी फलों के अनगिनत लाभों से पूरी तरह सहमति जताती हैं और मानती हैं कि इस डाइट में रात के भोजन के बाद आइसक्रीम, एल्कोहल और डेजर्ट आदि नहीं लेना वजन घटाने में मदद करने का प्रमुख कारण है।

क्या खराब है खोसला इस आहार में पोषक तत्वों का असंतुलन देखते हैं और इसे बुरा समझते हैं क्योंकि इसमें व्यायाम पर कम जोर दिया जाता है। कृष्णास्वामी कहती हैं, नाश्ते के बाद डाइट को किसी तरह निर्धारित नहीं किया गया है। चूंकि रात तक आप कुछ भी खाने के लिए मुक्त हैं, ऐसे में जंक फूड खाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा डेयरी उत्पादों के स्थान पर किसी अन्य विकल्प की सलाह नहीं दी गई है। ‘कुछ लोगों में केले के अधिक और नियमित सेवन से वजन बढ़ने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। इससे इस आहार योजना का प्रभाव सीमित हो सकता है(वसुधा राय,हिंदुस्तान,दिल्ली,20.7.2010)।’

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