सोमवार, 5 जुलाई 2010

यारसा गंबू को पैदा करने वाला माथ पहचाना गया

पिथौराग़ढ़ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के जीव विज्ञान के शोधार्थी पृथ्वीराज सिंह कोरंगा ने उत्तराखण्ड हिमालय में की़ड़ा ज़ड़ी,जिसे यारसा गम्बू भी कहा जाता है,को पैदा करने वाले माथ की प्रजाति को खोज निकाला है। इस माथ प्रजाति को खोजने के लिए भारतीय वैज्ञानिक लंबे समय से प्रयासरत थे। चीन व तिब्बत हिमालय में तो वैज्ञानिक यह पता कर चुके थे कि यह यारसा गंबू किस माथ के संक्रमण से पैदा होता है लेकिन भारत में यह अज्ञात था। जून के अंत में खोजा गया यह माथ का जीनस तिब्बत व चीन के माथ वाला ही है। यानि यहां भी थिटारोडस जीनस के ही माथ के संक्रमण से यह की़ड़ा ज़ड़ी की काडिसेपिन साइजेन्सिस बनती है। तिब्बत में थिटारोडस कुल की आर्मोनिनुस नामक प्रजाति के संक्रमण से यह मिलती है तो भारतीय हिमालय यानि कुमाऊं ग़ढ़वाल के उच्च अक्षांशीय क्षेत्र में यह की़ड़ा ज़ड़ी की प्रजाति कौन सी है इसका सत्यापन कीट वैज्ञानिक कर रहे हैं। भारत में कीट प्रजातियों के सत्यापन के लिए अधिकृत किए गए प्रख्यात कीट विशेषज्ञ पीटर समैटाचैक के अनुसार यह प्रजाति थटारोडस जीनस की ही मैकूलेटम प्रजाति जैसी लग रही हैं यह प्रजाति नेपाल से रिपोर्ट हुई है लेकिन इस प्रजाति का मात्र नर माथ ही ज्ञात है । मादा प्रजाति अभी तक अज्ञात है। कीट विशेषज्ञ पीटर समैटाचैक के अनुसार यह एक ब़ड़ी उपलब्धि है। इस माथ का पता लगाने में कामयाब रहे शोधार्थी पृथ्वीराज सिंह कोरंगा ने पांच साल के भीतर इसकी खोज के १४ अभियान पूरे किए । लेकिन उन्हें सफलता इस बार मिल पाई। इस माथ की खासियत यह है कि इसमें एक तो मुंह होता ही नहीं दूसरा इसमें ऊर्जा इतनी कम होती है कि वह जिंदगी में मात्र ५ से १०१ मिनट सांझकाल में उ़ड़कर उसी वक्त में जहां मैटिंग करता है वहीं इसी उ़ड़ान के दौरान अंडे भी बिखेर देता है। इससे इसे पक़ड़ना असम्भव होता है। एक बार में यह माथ ४५० तक अंडे छि़ड़कती है। इन माथ्स के बारे में यह खास है कि यह लार्वा स्टेज में जो भोजन करते हैं वहीं इनकी ताजिंदगी काम आता है मुंह न होने के कारण इनके द्वारा एडल्ट स्टेज में भोजन नहीं लिया जाता इसी कारण ऊर्जा इनमें सीमित होती है। इस वर्ष की़ड़ा ज़ड़ी के मामले में पिथौराग़ढ़ जिले को भारी सफलता मिली है। एक तरफ यहां की रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला में की़ड़ा ज़ड़ी का पाउडर बनाने की सफलता हासिल कर इसे औद्योगिक स्तर पर उत्पादित करने के लिए कान्ट्रेक्ट किया तो पिथौराग़ढ़ के ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से जु़ड़े शोधार्थी पृथ्वीराज सिंह कोरंगा ने उस माथ की प्रजाति को ढूंढ निकाला जो कि की़ड़ा ज़ड़ी को अपने शरीर पर संक्रमण से जन्म देती है। यह एक काफी ब़ड़ी उपलब्धि वैज्ञानिक क्षेत्र में मानी जा रही है। यारसा गम्बू यानि कि हिमालयन वियाग्रा की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है। यह ज़ड़ी २० से २५ लाख रूपया प्रतिकिलोग्राम तक पिछले ओलम्पिक में चीन के बीजिंग प्रांत में बिक चुकी है। इसका प्रयोग कई बीमारियों के अचूक इलाज में होता है। इसे प्रयोगशाला स्तर पर बनाने के भी दावे किए जा रहे हैं। लेकिन इस ज़ड़ी को कौन सी प्रजाति के के संक्रमण में पनाह मिलती है यह आज तक अज्ञात था(महेश पांडेय,नई दुनिया,दिल्ली,4.7.2010)।

2 टिप्‍पणियां:

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।