हमारे देश की चिकित्सा व्यवस्था के लिए यह दिन जितना महत्वपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा महत्व खुद चिकित्सकों तथा मरीजों के लिए है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चिकित्सकीय सेवा भाव पर आर्थिक लाभ हावी हो गया और डाक्टर-मरीज का भावनात्मक लगाव कहीं खो गया है। आलम यहां तक पहुंच चुका है कि अब मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया भी मरीज तथा चिकित्सक के संबंध सुधारने की कवायद पर जोर दे रहा है। इसके लिए बाकायदा एक योजना बनाई गई है। देश में झोलाछाप डाक्टरों की संख्या बढ़ने के पीछे एक अहम कारण भावनात्मक लगाव का कम होना भी है। इसके विपरीत शहर में बहुत से ऐसे चिकित्सक हैं जिन्होंने अर्थ लाभ को महत्व न देते हुए गरीबों के नि:शुल्क इलाज हेतु अपना जीवन समर्पित कर दिया है। गरीब बच्चों की सेवा को छोड़ा अमेरिका अमेरिका के मिशिगन स्थित अमेरिकन मेडिसीन बोर्ड के निदेशक पद तथा वहीं बसे पूरे परिवार को छोड़ कर डा.यूके पाठक मातृभूमि की सेवा के लिए बिहार लौटे। पटना में महावीर ट्रस्ट द्वारा संचालित महावीर वात्सल्य अस्पताल में अवैतनिक निदेशक के रूप में अपनी सेवा देने के साथ ही गरीबों के कल्याणकारी कार्यो से जुड़ गए। उन्होंने गरीब बच्चों के कल्याण के लिए अपने को पूर्णत:समर्पित कर रखा है। प्रदेश के बच्चों में सामान्यत: कैल्शियम की कमी को देखते हुए डा. पाठक ने अमेरिका में कार्यरत बिहार फ्रेंडस क्लब की सहायता से तीन करोड़ का दूध खरीदा। गांव-गांव में शिविर लगा कर डा. पाठक न केवल बच्चों को दूध वितरित करते हैं अपितु सभी बच्चों की नि:शुल्क जांच कर दवायें भी बांटते हैं। उनका कहना है कि बच्चों की स्वस्थ व निश्छल हंसी देखकर जो संतोष मिलता है वह करोड़ों कमाकर भी नहीं मिल सकता। बीपी व डायबिटीज उन्मूलन ही लक्ष्य आर्यभट्ट ज्ञान विवि की सलाहकार समिति के सदस्य, शहर के प्रख्यात चिकित्सक डा.बसंत सिंह ने जीवन का एक ही लक्ष्य बना रखा डायबिटीज व ब्लड प्रेशर का खात्मा। इसके लिए वह प्रत्येक स्कूल में जाकर न केवल बच्चों की नि:शुल्क जांच करते हैं अपितु बीमार होने पर उनका मुफ्त इलाज भी करवाते हैं। बच्चों के अलावा वह 40 साल के ऊपर के अधेड़ों की जांच कर भी यह सुनिश्चित करते हैं कि कहीं उन्हें यह दोनों समस्याएं तो नहीं घेर रही हैं। उन्होंने गांव-गांव घूमकर डायबिटीज व बीपी में जो अध्ययन किया है उसके अनुसार प्रत्येक सौ में से 20 लोग बीपी तथा 20 लोग डायबिटीज के रोगी हैं। उन्हें इस शोध के लिए ब्रिटेन में 2010 का लीडिंग हेल्थ प्रोफेशनल आफ द वर्ल्ड अवार्ड से नवाजा गया है। स्लम ने दिलायी मान्यता अब सेवा की मेरी बारी शहर के प्रख्यात हडडी रोग विशेषज्ञ डा.अमूल्य कुमार वर्तमान में न केवल स्लम बस्तियों के लोगों का मुफ्त इलाज करते है अपितु उनके बच्चों को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने के लिए एक ग्रुप द्वारा प्रोत्साहित करते हैं। डा. अमूल्य का कहना है कि शुरूआती दौर में यही स्लम वाले मेरे पास इलाज को आते थे। उन्हीं की बदौलत मैं यहां तक पहुंचा अब मेरी बारी है कि मैं उनकी कुछ सेवा कर सकूं। नि:शुल्क इलाज तो किया ही जाता है,इसके अलावा गरीब व विकलांग किंतु मेधावी बच्चों को आर्थिक तथा अन्य सहायता देकर डाक्टर बनने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। सेवा करें पैसा खुद पीछे आयेगा यह कहना है रोटरी, ब्लाइंड स्कूल, अनाथालय तथा स्लम बस्ती के बच्चों को शिक्षित करने की अलख जगाये डा.आरएन सिंह का। यह न केवल विभिन्न जगहों पर कैंप लगा कर लोगों का नि:शुल्क इलाज करते हैं अपितु गरीब बच्चों के पठन-पाठन के लिए अपने घर पर स्कूल भी खोले हुए हैं। पूर्ण विकास की सोच रखने वाले डा. सिंह बहुत सी सामाजिक संस्थाओं के संरक्षक हैं जो खेल, शिक्षा तथा स्वास्थ्य के लिए कार्य करती हैं। वह एक कुष्ठ आश्रम भी चला रहे हैं। उनका मानना है कि यदि आप पैसे के पीछे भागेंगे तो पैसा दूर जायेगा और केवल कलंक हाथ आयेगा। यदि आप पैसे को छोड़कर आगे बढ़ेंगे तो पैसा पीछे आयेगा। टीम के साथ करती हैं जन्मभूमि की सेवा शहर की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.शांति एसबी सिंह गत 40वर्षो से अपने जन्मस्थान सोनपुर में नि:शुल्क कैंप लगाकर लोगों का इलाज करती हैं। वह न केवल खुद वहां नियमित रूप से जाती हैं अपितु अन्य चिकित्सकों को भी ले जाती हैं। चाहे वह बोन डेंस्टिटी की जांच हो या आंख,बीपी व डायबिटीज की। जांच के बाद उनके इलाज की पूरी व्यवस्था कराती हैं। अपने गांव में वह सर्जरी समेत अनेक कार्य कैंप लगा कर करती हैं(दैनिक जागरण,पटना,1.7.2010)।
डॉक्टर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?
गिनी चुनी घटनाओ को छोड़ दिया जाए तो अभी भी विश्वास की कमी नहीं है .
जवाब देंहटाएंझोला छाप डाक्टर बनने के लिए सरकार की गलत नीतियाँ जिम्मेदार है