सोमवार, 28 जून 2010

क्लीनिकल ट्रायल्स पर रखें नजर

अमरीकी स्वास्थ्य व मानव सेवा विभाग की एक ताजा रिपोर्ट में, देश के बाहर किए गए क्लीनिकल ट्रायल्स की मॉनिटरिंग व निरीक्षण में लचर भूमिका के लिए अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन-यूएस एफडीए की काफी खिंचाई की गई है। इस रिपोर्ट के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। यह भारत की ड्रग रगुलेटरी एजेंसी-ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को भी सावधान करती है क्योंकि इस दशक के शुरूआत में भारत में क्लीनिकल ट्रायल्स का जो बाजार कुछ मिलियन डॉलर था वह अब एक बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार क्लीनिकल ट्रायल्स की मंजूरी में कई लूप होल्स हैं। जिस प्रकार से प्रायोजकों व फार्मास्युटिकल्स कंपनियों ने अमेरिका में दवाओं व बायोलॉजिक्स के लिए विदेशी क्लीनिकल ट्रायल्स आंकड़ों को भारी तवज्‍जो दी, वह नियमों के खिलाफ है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में दवाओं व बायोलॉजिक्स की मार्केटिंग के लिए आवेदनों को मंजूरी देने में 80 फीसदी से ज्यादा में क्लीनिकल ट्रायल्स आंकड़ों का उपयोग हुआ है पर आधे से ज्यादा ट्रायल्स विषय व वेबसाइट अमेरिका से बाहर के हैं और इस रूझान में बढ़ोतरी की संभावना है। लेकिन एफडीए ने ट्रायल के लिए मंजूर साइटों मे से सिर्फ एक फीसदी से भी कम का निरीक्षण किया। अपनी पड़ताल में यूएस डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड हयूमन सर्विसेज ने पाया कि एफडीए ने क्लीनिकल ट्रायल्स आंकड़ों वाले मार्केटिंग अप्लीकेशंस को मंजूरी दी।इसमें 80 फीसदी विदेशी क्लीनिकल्स ट्रायल्स के आंकड़े थे। कुल मिलाकर प्रायोजकों ने दवाओं के 90 मार्केटिंग अप्लीकेशंस पेश किए जिसमें कम से कम एक विदेशी क्लीनिकल ट्रायल्स साइट तो जरूर थी यानी कुल मंजूर दवाओं में 80 फीसदी। इन मार्केटिंग अप्लीकेशंस में 9 में तो सभी आंकड़े विदेशी थे यानी अमेरिका में ट्रायल्स का एक भी आंकड़ा नहीं था। रिपोर्ट के अनुसार एफडीए निरीक्षकों को ट्रायल्स की जांच में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसमें से एक है नियमों के अनुसार एक सप्ताह के भीतर ही साइट पर जाकर जांच कर लेनी है। यह संभव नहीं दिखता क्योंकि यात्रा, वीजा व अनुवादक सरीखे कई मुद्दे हैं जो जल्दी हल नहीं होते। यानी क्लीनिकल ट्रायल्स काफी झोल-झाल भरा मामला है। यह रिपोर्ट क्लीनिकल ट्रायल्स की पल-पल बढ़ती दुनिया की पड़ताल कर सच्चाई भी सामने रखती है। यह रिपोर्ट भारत को भी सावधान करती है। क्योंकि भारत में पिछले कुछ सालों से मरीजों की बहुतायत, कम लागत व तेज गति की वजह से क्लीनिकल ट्रायल्स का बाजार काफी बढ़ रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पसंदीदा मंजिल है यह देश। पर अमेरिकी रिपोर्ट यह सावधान भी करती है कि क्लीनिकल ट्रायल्स के संदर्भ में भारतीय रगुलेटरी प्रणाली की पूरी तरह से समीक्षा करने की जरूरत है। रिपोर्ट ने उजागर किया है कि क्लीनिकल ट्रायल्स की कई फाइलें गायब हो जाने से एफडीए कुछ मामलों में असमर्थ है। यह तो भारत में भारी पैमाने पर संभव है(बिजनेस भास्कर,दिल्ली,28.6.2010)।

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