पिछले साल स्वाइन फ्लू महामारी ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया था। मगर यह कभी महामारी थी ही नहीं बल्कि दवा कंपनियों द्वारा फैलाया गया षड्यंत्र था! हाल ही में आई एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि स्वाइन फ्लू महामारी की घोषणा एक भयंकर भूल थी। धन के लालच में दवा कंपनियों ने इसके भय को विश्व में फैलाने की साजिश रची थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दवा कंपनियों द्वारा बनाए गए टीकों को खरीदने में लोगों का पैसा जमकर बर्बाद हुआ। काउंसिल ऑफ यूरोप के लिए स्वाइन फ्लू की जांच का जिम्मा संभाल रहे लेबर पार्टी के सांसद पॉल फ्लिन ने इसे महामारी जो वास्तव में कभी थी ही नहीं के रूप में परिभाषित किया है। रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) पर आरोप लगाया गया है कि जिस प्रक्रिया के तहत पिछले साल उसने चेतावनी जारी की थी,उसकी पारदर्शिता में गंभीर खामियां हैं। सांसद ने कहा कि पूरी दुनिया डब्लूएचओ पर विश्वास करती है मगर खतरे का ढोल पीटने के बाद उसकी प्रतिष्ठा संकट में आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमाई के चक्कर में दवा कंपनियों ने महामारी का डर लोगों के बीच फैलाया है। फ्लिन ने कहा कि प्लेग को लेकर कहा गया था कि इसकी चपेट में आकर 75लाख ज्यादा लोग काल के गाल में समा सकते हैं। मगर यह भी बढ़ा-चढ़ा कर बताई चेतावनी साबित हुई। इससे विश्वभर में 20,000 से भी कम मौतें हुई थीं। ब्रिटेन खुद अपने यहां 65,000 से ज्यादा मौतें झेलने के लिए तैयार हो गया था। इसी के मद्देनजर उसने टीकों के लिए 540 मिलियन पाउंड (करीब 36.72 अरब रुपये) की भारी-भरकम राशि का करार किया। जबकि मौतों की संख्या 500से भी कम रही थी और अब ब्रिटेन करार खत्म करने व अनुपयोगी इंजेक्शनों को वापस करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। स्वाइन फ्लू पर ध्यान केंद्रित करने से अन्य स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ा और जनता में भी डर का वातावरण बना। इस दौरान फार्मा कंपनियों के वारे न्यारे हो गए। इसके टीकों की जबरदस्त बिक्री के कारण उनका लाभ करीब 4.6 बिलियन पाउंड (करीब 313 अरब रुपये) तक पहुंच गया। फ्लिन ने कहा, इसमें ज्यादा संदेह नहीं है कि मामले को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया। उन्होंने खतरे को जरूरत से ज्यादा बताया और सरकारें ऐसी स्थिति में थीं कि उन्हें कार्रवाई करनी पड़ी। उन्होंने कहा,ब्रिटेन में हमने सिर्फ तैयारियों पर ही 1 बिलियन पाउंड (करीब 68 अरब रुपये) खर्च कर डाले। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से जबरदस्त असफलता है। काउंसिल उन गंभीर आरोपों की जांच कर रही है जिसमें कहा गया है कि डब्लूएचओ ने पिछले साल महामारी घोषित करने की अपनी परिभाषा का स्तर काफी गिरा दिया। आलोचकों का कहना है कि बीमारी की घातकता पर विचार करनी की जरूरत को खत्म करने के पीछे दवा कंपनियों की साजिश थी। वे चाहती थीं कि बर्ड फ्लू का का डर फैलने के बाद उन्होंने टीके विकसित करने में जितनी राशि खर्च की है वह उन्हें वसूल हो जाए। वहीं,डब्लूएचओ का कहना है कि महामारी की मूल परिभाषा में कभी बदलाव नहीं किया गया। फ्लिन ने कहा, इस बात का कोई मतलब समझ नहीं आता कि क्यों महामारी की घोषणा से सिर्फ एक माह पहले उन्होंने इसकी परिभाषा में बदलाव कर दिया। उन्होंने जोड़ा,इस मामले में यह सिर्फ साजिश नहीं है बल्कि बेहद फायदेमंद साजिश है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,6 जून,2010)।
डबल्यूएचओ भी संदिघ्ध है इस मामले में . अब तो विटामिन ए का खेल चालू है
जवाब देंहटाएंएड्स भी ऐसा ही है भाई, ऐसा कोई वैज्ञानिक साक्ष्य है ही नहीं जिससे की एचआईवी का सम्बन्ध एड्स से जोड़ा जा सके. पर फिर भी एचआईवी-एड्स का मायाजाल खड़ा किया गया है.
जवाब देंहटाएंपैसे का लालच जो न करवा दे !!
जवाब देंहटाएंये आज की बात नहीं बल्कि सालों से चला आ रहा है
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