सोमवार, 10 मई 2010

उत्तराखंड में हिमालयन वियाग्रा की खोज के लिए मारामारी

मर्दाना ताकत बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय दवा वियाग्रा है। बहुत मंहगी है,फिर भी लोगों को चाहिए। किसी को पौरुष प्राप्ति के लिए तो किसी को पौरूष शक्ति में असाधारण इजाफे के लिए। जाहिर है,इस प्रकार की मांग वाली दवा सस्ती नहीं हो सकती। इसके विकल्प की तलाश भी होती रही है। दो वर्ष पूर्व खबर आई थी कि चीन का एक जंगली पौधा हार्नी गॉट वीड पुरुषों की यौन क्षमता बढ़ाने वाली दवा वियाग्रा का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। मिलान विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मारियो डेल एगली के अनुसार इस पौधे से तैयार की गई प्राकृतिक दवा के नतीजे हैरतअंगेज हैं। इसमें वियाग्रा की तरह के सभी गुण मौजूद हैं।
गौरतलब है कि इस समय फाइजर, इली, लिली समेत कई कंपनियाँ वियाग्रा को विभिन्न नामों से बेच रही हैं, लेकिन जैसे-जैसे इस दवा का इस्तेमाल बढ़ा है, इसके प्रतिकूल असर भी सामने आए हैं। इटली के वैज्ञानिक इगली का कहना है कि चीन की परंपरागत प्राकृतिक औषधि इसका बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पौधे में इकारीन नाम का एन्जाइम पाया जाता है, जो वियाग्रा की तरह यौन अंग में रक्त का संचार तेज कर देता है।
कुछ समय पूर्व मिजोरम के लोगों के हवाले से यह खबर भी छपी थी कि बांस के बीज में वियाग्रा के गुण हैं। सौ ग्राम बांस के बीज में 60.36 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और 265.6 किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। मिजोरम के कृषि विभाग के अधिकारी जेम्स लालसिएमलियाना का कहना है कि इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ किसी भी प्राणी को सक्रिय करता ही होगा, यहां तक कि सैक्स के मामले में भी।
वियाग्रा के ज्यादा इस्तेमाल से सिरदर्द, पेट की खराबी और आँखों की रोशनी पर दुष्प्रभाव पड़ता है । वियाग्रा के बढ़ते प्रतिकूल प्रभावों के मद्देनजर वैज्ञानिक इसका विकल्प ढूँढने में लगे हुए हैं। देश के विभिन्न हिस्सों और पड़ोसी देशों में इन दिनों एक हर्बल वियाग्रा का अवैध व्यवसाय फल-फूल रहा है।
पिछले वर्ष नेपाल के उत्तरी जिले मानांग में नार गांव में आयुर्वेदिक वियाग्रा- यारसागुंबा के संग्रहण को लेकर हुए संघर्ष में 7 लोगों की मौत हो गई थी। यारसागुंबा हिमालय पर्वत में 3,500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाया जाने वाला एक प्रकार का कवक है। माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं और यह कामोत्तेजना बढ़ाता है। प्रत्येक साल गर्मियों में उत्तरी नेपाल के लोग यारसागुंबा को एकत्र करने के लिए निकलते हैं।
पिछले दिसंबर में एक रैकेट का खुलासा हुआ था, जो 74 किग्रा यारसागुंबा चीन निर्यात करने की कोशिश कर रहा था। उन्हें यह उत्तराखंड से मिली थी। पकड़े गए लोगों ने स्वीकार किया था कि इस उत्पाद की चीन में बहुत माँग है। नेपाल, चीन और तिब्बत के अलावा शुद्ध रूप में यारसागुंबा पिथौरागढ़, नंदादेवी, हाहुल और लेह-लद्दाख के कई भागों में पाया जाता है। इसी क्रम में देखिए 9 मई के नई दुनिया में देहरादून से महेश पांडेय की रिपोर्टः
"हिमालयन वियाग्रा की खोज में आजकल देहरादून में धारचूला के उच्च अक्षांशीय क्षेत्र धौलीगंगा एवं छिपलाकेदार सहित ग़ढ़वाल के नंदादेवी जैवमंडल क्षेत्र में कई ग्रामीण रात दिन एक किए हुए हैं। इन लोगों द्वारा यारसा गुंबा नामक यह वियाग्रा खोजने के लिए पूरे परिवार समेत इसके पाए जाने की संभावना वाले क्षेत्रों में डेरा डाल दिया गया है। सरकार ने इसे तलाशने की जिम्मेदारी कुमाऊं मंडल विकास निगम को दी है। यारसा गुंबा जिसे हिमालयन वियाग्रा का खिताब हासिल हो चुका है। नपुंसकता दिल की बीमारी, किडनी रोग, कैंसर, घुटने व पीठ दर्द, कमजोरी समेत बु़ढ़ापे संबंधी तमाम बीमारियों की अचूक औषधि है। इसके इस गुण के कारण बीजिंग ओलंपिक में यह यारसा गुंबा एक पैसा बनाने की मशीन के तौर पर उपयोगी साबित हो चुकी है। यारसा गुंबा को अब पिथौराग़ढ़ स्थित डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला में कल्चर तैयार कर पैदा करने की तकनीक विकसित कर ली गई है। इस संस्थान के निदेशक डॉ. जेड अहमद के अनुसार इस तकनीक का विकास संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के नेतृत्व वाले परफॉर्मेंस इन्हेंसर डिवीजन द्वारा किया गया है।"

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