अक्सर,स्वास्थ्य के विषय में चर्चा नियंत्रित खान-पान के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाती है। नियंत्रित खान-पान के बावजूद अगर मनोदशा ठीक न हो,तो व्यक्ति स्वस्थ नहीं रह सकता। मनोदशा कई चीजों का निचोड़ होती है और पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। आज के जनसत्ता में रंजना सिंह बता रही हैं कि खासकर शहरी जीवन शैली के कारण समाप्त हो रही सामाजिकता ने मनुष्य के स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित किया हैः
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