दिल्ली मे शाहदरा स्थित मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान जिसे हम मेंटल हॉस्पीटल के नाम से जानते हैं,झाड़-फूंक के चक्कर में फंसे लोगों को जागरूक बनाने के लिए आज से हफ्ते भर का जागरूकता कार्यक्रम शुरू कर रहा है। इस बारे मे,आज के दैनिक भास्कर,दिल्ली संस्करण में प्रकाशित बलिराम सिंह की रिपोर्ट बताती है कि कैसे अनपढ तो अनपढ,संभ्रांत माना जाने वाला तबका भी इन ओझाओं के चक्कर लगा रहा हैः
21वीं शताब्दी में जहां एक ओर हम चांद छूने को बेताब हैं, वहीं आज भी भारत का प्रबुद्ध वर्ग मानसिक बीमारियों को जादू-टोना मानकर ओझा की शरण में जाता है। यह हालत न केवल भारत के ग्रामीण इलाकों की है, बल्कि देश की राजधानी के पॉश कॉलोनियों में भी है। हमारे राजनेता और नौकरशाह भी मानसिक समस्याओं को दूर करने के लिए डॉक्टर के पास जाने से पहले झाड़-फूंक के लिए ओझाओं के पास जाते हैं। पूर्वी दिल्ली स्थित ‘इहबास’ अस्पताल के डॉक्टरों का मानना है कि पहले की अपेक्षा मानसिक समस्याओं में बढ़ोतरी हुई है और डॉक्टर इसका मूल कारण बढ़ते तनाव और भागदौड़ भरी दिनचर्या को मानते हैं।
‘इहबास’ के न्यूरोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.विजय नाथ मिश्र का कहना है कि दिल्ली के निम्न तबके के अलावा पॉश कॉलोनियों के लोग भी मानसिक समस्याओं से निजात पाने के लिए डॉक्टर के पास जाने से पहले जादू-टोना समझकर ओझा के पास जाते हैं। क्योंकि इस तरह की बीमारियों के इलाज के लिए अस्पतालों में इलाज कराने से कतराते हैं और शर्मिंदगी महसूस करते हैं। डॉ.मिश्रा का कहना है कि यह समस्या न केवल पढ़े-लिखे लोगों में है, बल्कि हमारे राजनेताओं और नौकरशाहों में भी है।
आज भी लकवा अथवा मिर्गी जैसी बीमारी को लोग ऊपरी हवा समझकर झाड़-फूंक कराते हैं। लोगों में फैली इस तरह की भ्रांतियों को समाप्त करने के लिए इहबास 15 मार्च से एक सप्ताह तक जागरूकता अभियान चलाएगी। जागरूकता अभियान के तहत लोगों को मानसिक समस्याओं को दूर कराने और हेलमेट लगाने पर जोर दिया जाएगा, ताकि सिर में चोट न लगे। जागरूकता अभियान में मुख्यत: नशा मुक्ति, मानसिक समस्या और सिर में लगी चोट के बारे में लोगों को जानकारी दी जाएगी और इससे बचाव का उपाय बताया जाएगा। नुक्कड़-नाटक के जरिए भी राजधानी के विभिन्न इलाकों में शिविर का आयोजन किया जाएगा।
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