भारत ने अमरीकी कम्पनी को पीछे छोडते हुए 'अश्वगंधा' औषधि का पेटेन्ट हासिल कर लिया है। यूरोपियन पेटेन्ट ऑफिस (ईपीओ) ने इसके पेटेन्ट के सम्बन्ध में भारत की ओर से आवेदन मिलने के बाद, गत 25 मार्च को अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी 'नैट्रियॉन इंक' के पेटेन्ट सम्बन्धी आवेदन को खारिज कर दिया।
अश्वगंधा पौधे की कच्ची जड़ से अश्व जैसी गंध आती है। इसलिए इसे अश्वगंधा कहते हैं। इसे असगंध भी कहते हैं और बराहकर्णी, आसंध, बाजिगंधा आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अश्वगंधा लगभग सारे भारत में पायी जाती है। यह पश्चिमोत्तर भारत, महाराष्ट्र, मुजरात, मध्यप्रदेश आदि मे मिलता है । देश भेद से यह पाँच प्रकार का होता है । मध्यप्रदेश के मन्दोसर जिले मे खूब खेती होती है । 12वीं शताब्दी से ही भारत में विभिन्न बीमारियों के इलाज में अश्वगंधा का उपयोग होता आ रहा है। इसका इस्तेमाल अवसाद, डायबिटीज, इनसोमनिया, गैस की बीमारी आदि में किया जाता है।
अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन है। वैद्यों, हकीमों और आयुर्वेद चिकित्सकों ने पुरातन काल से इसके गुणों को सराहा है। आचार्य चरक ने इसे उत्कृष्ट औषधियुक्त गुणों वाला माना है। सुश्रुत के मतानुसार किसी भी प्रकार की दुर्बलता और कृशता को दूर करने में यह निहायत गुणकारी है। पुष्टि और बलवर्धन के लिए आयुर्वेद में इससे श्रेष्ठ औषधि अन्य कोई नहीं है।
अश्वगंधा मूलतः कफ-वात नाशक और बलवर्धक है। इसे सभी प्रकार के जीर्ण रोगों, क्षय, शोय आदि के लिए श्रेष्ठ माना गया है। कायाकल्प योग की यह एक प्रमुख औषधि है। इसके पत्तों को एरण्ड तैल मे गरम करके प्रभावित स्थान पर रखने से सूजन मे कमी आती है । अश्वगंधा चूर्ण में सोंठ तथा मिस्री, क्रमशः 2:1:3 अनुपात में मिला कर, सुबह-शाम भोजन के पश्चात गर्म जल से सेवन करने से वात विकार में आराम मिलता है। ६ ग्राम अश्वगंधा को मिस्री मिला कर दूध के साथ, या शहद में मिला कर देने से शरीर की दुर्बलता दूर होती हैं। इसकी जड़ को पानी मे पीस कर लेप लगाने से गिल्टी और स्थानिक सूजन ठीक हो जाती है। अश्वगंधा का चूर्ण, शतावर के चूर्ण के साथ बराबर मात्रा में मिला कर, थोड़ा गुड़ मिला कर, दूध के साथ सुबह और शाम लेने से खोयी हुई ताकत वापस आती है। अश्वगंधा के 2 ग्राम चूर्ण के साथ आधा ग्राम वंशलोचन मिला कर सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है। जिन स्त्रियों के स्तनों का विकास न होता हो, उन्हें शतावरी चूर्ण के साथ इसका सेवन करना चाहिए। चोपचीनी और अश्वगंधा के चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर कोष्ण जल के साथ लेने से आमवात और पी आई डी मे चमत्कारिक असर दिखता है । अश्वगंधा के चूर्ण को दूध में पका कर, क्षीर पाक बना कर देने से सूखा रोग ग्रस्त बालक का शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाता है और उसका वजन बढ़ता है। पेशाब उतरने में कष्ट और स्त्रियों की गर्भाशय संबंधि व्याधियों में यह बहुत ही उपयोगी है । अश्वगंधा चूर्ण दूध या घी के साथ नियमित लेने से नपुंसकता दूर होती है और शुक्राणु की संख्या बढ़ती है और उनकी दुर्बलता दूर होती है।
पाठकों को बताते चलें कि यूरोपीय पेटेंट कार्यालय पपीता, काली तुलसी, पुदीना, अदरक, इसबगोल, आंमला, जीरा, सोयाबीन, टमाटर, मेथी समेत आयुर्वेद में वर्णित हमारे परंपरागत 285 औषधीय पौंधों के इस्तेमाल को लेकर पेटेंट जारी कर चुका है। करीब दस साल पूर्व हल्दी और नीम के विदेशों में पेटेंट पर मचे हल्ले के बाद सरकार ने परंपरागत चिकित्सा ज्ञान के संरक्षण के लिए ट्रेडिशनल नालेज डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) बनाई थी। एनडीए सरकार के समय इसमें आयुव्रेद, यूनानी और सिद्ध पैथियों से जुड़े करीब 35 हजार फार्मूलों को रजिस्टर्ड किया गया था। आयुर्वेद और हमारे पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान के लगभग दो हजार अनमोल फार्मूले हर साल बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों द्वारा चुरा ली जाती हैं।
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