कल कुछ अख़बारों में खबर छपी थी कि इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलेंस प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार बन्द करने जा रही है। यह आशंका भी व्यक्त की गयी थी कि अब उन रोगों पर निगरानी कैसे रखी जा सकेगी जो इस कार्यक्रम के दायरे में थे। मगर आज इस कार्यक्रम के आखिरी दिन,केंद्र सरकार ने इसकी अवधि तीन माह के लिए बढा दी। बताते चलें कि राज्य-आधारित इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसी संभावित संचारी रोग और गैर-संचारी रोग के फैलने का पता लगाना और समय रहते, उसके निदान के उपाय करना था। यह कार्यक्रम स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े विकेंद्रित रूप से जुटाने तथा उनके विश्लेषण के लिहाज से महत्वपूर्ण माना गया है। कार्यक्रम के तहत मलेरिया,डायरिया(कॉलेरा), टायफायड, टीबी, खसरा, पोलियो, प्लेग, मेनिगोएनसिफलाइटिस, श्वास संबंधी डिस्ट्रेस हैमरेज फीवर,एड्स आदि रोगों पर नियमित रूप से नज़र रखी जाती है। एचसीवी,जल गुणवत्ता,बाहरी हवा की गुणवत्ता आदि पर नजर रखना भी इसका हिस्सा है। एंथ्रोपोमेट्री,शारीरिक क्रियाकलाप,रक्तचाप,तंबाकू,पोषाहार तथा दृष्टिहीनता की भी एक नियमित अंतराल पर पड़ताल की जाती है। 2004 में शुरू हुए इस कार्यक्रम के तहत 24 घंटे की हेल्पलाईन सेवा उपलब्ध है जिसका नम्बर है 1075. इस नम्बर पर बीएसएनएल या एमटीएनएल के फोन से किसी भी राज्य से निःशुल्क फोन किया जा सकता है। फिलहाल यह कार्यक्रम आंध्रप्रदेश,तमिलनाडु,केरल,महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश,उत्तराखंड और मिजोरम में चल रहा है लेकिन इसे चरणबद्ध रूप में देश के सभी राज्यों में लागू किया जाना है। कार्यक्रम के तहत शहरी निगरानी का काम कोलकाता में शुरू हुआ है और जल्द ही मुम्बई में भी शुरू होगा। संक्रामक रोगों के निदान के लिए देश भर में 7 अस्पतालों की स्थापना का प्रस्ताव भी है।
अच्छी जानकारी . सरकार की कई गतिविधियों की आम आदमी को जानकारी नहीं मिलती .
जवाब देंहटाएं