रविवार, 21 मार्च 2010

मिरगी,हिस्टीरिया,सर्दी-जुकाम,अनियमित मासिक,बुखार,खुजली और पथरी के घरेलू इलाज़

मिरगी 
 
इसके रोगी की बहुत अधिक सुरक्षा करनी होती है। मिरगी का दौरा कभी भी और अचानक आ सकता है। इस रोग को अपना कोई होश नहीं रहता है, और वह बेबस होता है। यद्यपि दौरे का अहसास रोगी को पहले से हो जाता है, किन्तु वह जब तक संभले, दौरे के  अधीन हो जाता है। मिरगी के रोगी को कभी अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए। अन्य रोग की भांति यह रोग भी खानपान की गलतियों और असंयमी जीवन का कुपरिणाम होता है। शरीर स्थित विजातीय द्रव्य या विषैले पदार्थ जब मस्तिष्क में पहुंचकर उसके सूक्ष्मातिसूक्ष्म तंतुओं के संपर्क में आते हैं और उनके कोषों पर दबाव डालते हैं, तभी मिरगी रोग का दौरा या आक्रमण होता है।
 प्रतिदिन आधा घंटा हल्की धूप में बैठकर पूरे शरीर में सरसों आदि के तेल की मालिश करनी चाहिए। इसके पश्चात खुरदुरे तौलिये से शरीर को रगड़-रगड़ कर पौंछना चाहिए। तत्पश्चात् साधारण स्नान करना उततम  रहता है। रीढ (मेरुदंड) पर दो मिनट भीगा गरम तौलिया तथा एक मिनट ठंडा तौलिया बारी-बारी से रखकर आधे घंटे रखे, क्योंकि अधिक सोच-विचार हानिकारक होता है।
दमा, ब्रांकाइटिस- दमा, श्वांस, ब्रांकाइटिस एवं प्लूरिसी व निमोनिया आदि रोगों  का कारण एक ही है। इसके लिए कुछ दिन प्रात:काल स्वच्छ हवा में टहलना चाहिए। कब्ज से बचना चाहिए और पेट साफ रखना चाहिए। धूल, धूएं और गंदी हवा से बचना चाहिए। धूप का सेवन करना चाहिए और उसी वक्त सरसों के तेल में नमक मिलाकर छाती पर मालिश करनी चाहिए। सप्ताह में एक दिन का उपवास रखना चाहिए और तीसरे पहर एक घंटे के लिए छाती की गीली लपेट लगानी चाहिए, इस प्रक्रिया से श्वांस व दमें का रोग अपने पांव नहीं जमाने पाता है। यदि छाती से कफ न निकल रहा हो और इस कारण रोगी बहुत बेचैन हो, तो हल्के गुनगुने पानी में सेंधा नमक डालकर पीने के बाद उसे उल्टी कर देनी चाहिए। छाती में इक्ट्ठा सब बलगम निकल जाएगा और रोगी को एकदम आराम हो जाएगा।

हिस्टीरिया

यह रोग मुख्यत: मासिक धर्म की गड़बड़ी के कारण होता है और मासिक धर्म के दिनों में ही इसके दौरे अधिक पड़ते हैं। कभी-कभी तो एक के बाद एक कई दौरे साथ-साथ पड़ जाते  हैं। इसकी अवस्था भी कुछ-कुछ मिरगी के दौरे जैसी ही होती है। हिस्टीरिया का आंरभिक और साधारण दौरा रोगी स्त्री के पैरों को ठंडे पानी से धोने से कुछ ही क्षणों में दूर हो जाता है। यदि किसी कुंआरी और अविवाहित लड़की को यह रोग होता है, तो उसकी शादी कर देने से ही यह रोग दूर हो जाता है। कई ऐसे केस देखने में आए हैं कि सहवास की इच्छा रखने वाली रोगिणी पति से सहवास का सुख प्राप्त करते ही रोगमुक्त हो गयी। संतान-सुख से भी यह रोग दूर होते देखा गया है।
हिस्टीरिया रोग से ग्रस्त रोगिणी की बेहोशी दूर करने के लिए चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारनी चाहिए अथवा मेरुदंड पर भीगा कपड़ा रखने से भी बेहोशी टूट जाती है। इस रोग से बचने के लिए अपने भोजन में सुधार लाना आवश्यक है। साथ ही पैरों का गरम स्नान, धूप-स्नान व कटि-स्नान से यह रोग चला जाता है और यही  इसकी प्राकृतिक चिकित्सा है।

सर्दी-जुकाम और खांसी

पाचन-प्रणाली में गड़बड़ी व भोजन संबंधी गलतियों के कारण  सर्दी-जुकाम  के आरंभ होते ही भोजन तत्काल बंद कर देना चाहिए और गुनगुने पानी का एनीमा लेकर आंतों को साफ कर लेना चाहिए। इस र्इिद्भया से पेट एकदम साफ हो जाता है। रोग की अवस्था में गरम पानी पीना हितकर होता है। कागजी नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिए और जब तक सर्दी-जुकाम ठीक न हो जाय, उपवास जारी रखना चाहिए। खांसी अथवा काली खांसी की अवस्था में भी एनीमा लेकर पेट साफ करना आवश्यक होता है। रोगी को अपने पैरों की तरफ खास गरम पानी से स्नान करना चाहिए।

मासिक धर्म से होने वाला कष्ट 

इस रोग में जांघ एवं कमर में अत्यधिक पीड़ा होती है। रक्तस्त्राव  थोड़ा-थोड़ा और कठिनता से होता है। स्नायु-संस्थान की गड़बड़ी योनिद्वार का तंग होना अथवा डिम्बाश्य की खराबी के कारण यह रोग उत्पन्न होता है। रोग की अवस्था में चार-पांच दिनों तक उपवास करना आवश्यक है। गुनगुने पानी का एनीमा लेना भी लाभदायक है। उपवास के अंत में रसाहार के बाद पांच-छ: दिनों तक केवल फलाहार पर आश्रित रहना चाहिए। उसके पश्चात् ही भोजन लेना शुरू करना चाहिए। प्रात: काल खुली हवा में टहलना चाहिए और व्यायाम करना चाहिए। गरम और ठंडे बैठक स्नान से बहुत शीघ्र लाभ होता है। धूप-स्नान से कमर और जांच की पीड़ा जाती रहती है।
मासिक धर्म की रुकावट-इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे शरीर में खून की कमी, शरीर की कृमता, मानसिक उद्वेग, गर्भाशय का स्थानच्युत हो जाना आदि। इसकी रोगिणी को प्रतिदिन प्रात:काल टहलना और व्यायाम करना चाहिए। रात में सोने से पहले गरम पानी से भरे टब में स्नान लेना चाहिए। धूप-स्नान लेना भी अच्छा रहता है। हरी सब्जियां, फल, दूध अधिक मात्रा में लेना चाहिए।
श्वेत प्रदर- अन्य रोगों की भांति या रोग भी अप्राकृतिक जीवनयापन और गलत खान-पान का परिणाम होता है इसके अतिरिक्त अधिक पुरुष-सहवास, दवाओं का अधिक सेवन, योनि अथवा गर्भाशय में सूजन भी इस रोग के मुख्य कारण हैं। इसके अलावा स्त्री को प्रतिदिन गरम पानी के टब में दस पन्द्रह मिनट निर्वस्त्र होकर बैठना चाहिए। दो सप्ताह तक तो यह र्इिद्भया अवश्य करें। भोजन त्याग कर फल और दूध का सेवन सप्ताह भर करने में इस रोग से छूटकारा मिल जाता है।
स्वप्नदोष एवं नपुंसकता-स्वप्नदोष की अवस्था में फल और दूध का सेवन अधिक करना चाहिए। प्रात: काल फल और दूध तथा संध्या को चोकर सहित आटे की रोटी और उबली शाक-सब्जी तथा सलाद लेना चाहिए। प्रात: कटि स्नान लें और रात को सोते समय कमर को गीली पट्टी लगाकर सोयें। गुड़, तेल, खटाई, तम्बाकू एवं मदिरा से बचकर रहें।
नपुंसकता की अवस्था में सर्वप्रथम कब्ज न होने दें। सुपाच्य भोजन करें। ताजे फल सब्जी खायें। कच्चा दूध पियें। प्रात:काल खुली वायु में टहलें और हल्का व्यायाम करे। रोजाना तीसरे पहर आधा घंटे तक मेरुदंड पर गीली पट्टी रखें, तथा अंडकोष और जननेन्द्रिय पर रात भी गीली मिट्टी रखें। इस विचार को दिमाग से निकाल दें कि आप नपुंसक हैं। कुछ ही दिनों में रोग जाता रहेगा।

बुखार (ज्वर)

बुखार चाहे किसी प्रकार का हो, उसमें कागजी नींबू का रस मिलाकर गरम या ताजा पानी थोड़ा-थोड़ा करके प्रचुर मात्रा में पीना चाहिए। दिन में एक दो बार उदर अथवा मेहन स्नान करने से बुखार उतर जाता है । तेज बुखार में भीगे कपड़े की पट्टी माथे पर रखनी चाहिए। बुखार उतर जाने पर फलों का रस लेना चाहिए।
बड़ा एवं घटा हुआ रक्तचाप-नमक तेल मसाले, चीनी, चाय, कॉफी मादक पदार्थ और उत्तेजक  पदार्थों का सेवन छोड़ देना चाहिए और केवल फल तरकारियों पर रहते हुए एक सप्ताह तक पेडू पर गली मिट्टी आधा घंटा तक रखने से बढा हुआ रक्तचाप सामान्य हो जाता है। घटे हुए रक्तचाप के लिए प्राय: उदर एवं संध्या को मेहन स्नान लें। दोनों  वक्त शरीर की मालिश करें। (यह मालिश सूखी हो) फिर समूचे शरीर को ठंडे पानी में भीगे और निचोड़े कपड़े से रगडें। यदि संभव हो तो लहसुन का उपयोग करें, क्योंकि लहसुन दोनों प्रकार के रक्तचापों के लिए बड़ा ही गुणकारी है।

खुजली 

खानपान की गड़बड़ी के कारण रक्त विषाक्त हो जाता है, तब वह विष त्वचा के छिद्रों के द्वारा बाहर निकलने लगता हैं। और उस वक्त त्वचा पर उऊयेजना और खुजलाहट की अनुभूति होती है। यह खुजली रोग है। खुजली रोग है। खुजली दो किस्म की होती है। तर और खुश्क । दोनों प्रकार की खुजली को दूर करने के लिए ऐसा उपाय करना ठीक रहता है, जिससे कि शरीर से पसीना खूब अच्छी तरह निकले। इसके लिए ज्यादा पानी पीना और व्यायाम करना अच्छा है। सप्ताह में तीन बार सारे बदन में गीली पट्टी का प्रयोग करें। इस क्रिया से त्वचा के छिद्र पूरी तरह खुल जायेंगे, जिनके द्वारा रक्त का विष शरीर से बाहर निकल जाएगा और खुजली का रोग ठीक हो जाएगा।
मुहांसे-इसके उपचार हेतु दिन में दो बार सादा एवं मिर्च मसाला रहित चोकर सहित आटे की रोटी, उबली सब्जी, सलाद, दही और मट्ठा लेना चाहिस। चेहरे पर गरम पानी के और सके बाद ठंडे पानी के छींटे मारने चाहिए। दिन में तीन-चार बार ऐसा करें। फिर चेहरे को हल्का वाष्प-स्नान देकर उसे ठंडे पानी से भीगे तौलिए से पौछ देना चाहिए।

पथरी रोग 

गुर्दे में पथरी होने पर मूत्र मे अवरोध उत्पन्न होता है, जिस कारण रोगी को बहुत ज्यादा तकलीफ सहन करनी पड़ती है। इस रोग की अवस्था में यदि नमक सेवन बंद करके और केवल सादा भोजन पर रहकर यानि फल और तरकारियों का सेवन किया जाय, तीसरे पहर कच्चा दूध और लस्सी, प्रात: दस मिनट का मेहन स्नान व शाम को दस मिनट का उदर स्नान लिया जाए तो गुर्दे में मौजूद पथरी कभी बढने न पाएगी, बल्कि धीरे-धीरे घुलकर मूत्र के साथ आराम से निकल जाएगी और रोगी का आराम हो जाएगा।
(दैनिक देशबन्धु के 4 मार्च,2010 अंक से साभार)

1 टिप्पणी:

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।