दृष्टिदोष दो तरह के होते हैं। निकट दृष्टिदोष(मायोपिया) और दूरदृष्टि दोष(हायपरोपिया)। दोनों प्रकार के दृष्टिदोष में मरीज को दूर अथवा नजदीक का दिखने में परेशानी होती है। इसके अलावा एस्टीगमेटीस्म या सामान्य भाषा में जिसे सिलेंड्रीकल एरर कहते हैं उसमें मरीज को दिखाई सब देता है पर धुँधलेपन के कारण आँखों पर तनाव पड़ता है और हमेशा सिरदर्द की शिकायत रहती है।
दृष्टिदोषों को दूर करने के तीन तरीके हैं-
चश्मा
कांटेक्ट लैंस
लेजर सर्जरी (लैसिक)
चश्मे और कांटेक्ट लैंसेस की अपनी खूबियाँ और कमियाँ हैं लेकिन तीसरा उपाय अधिक कारगर और स्थायी माना जाता है।
अत्यंत सूक्ष्म रूप से काम करने वाली लेजर सर्जरी में आँख की कॉर्निया के आकार को इस तरह ढाला जाता है, जिससे देखने वाली वस्तु की शार्प इमेज आँख के रेटिना पर बनने लगती है और मरीज को सब स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
एक्साइमर लेजर जिसे सर्वसाधारण भाषा में लेसिक लेजर कहा जाता है। एक ऐसा तरीका है जिससे चश्मे का नंबर स्थायी रूप से हट जाता है। यह एक गलत धारणा है कि लेसिक लेजर एक्साइमर लेजर का पर्यायवाची है। दरअसल लेसिक लेजर एक्साइमर लेजर से चश्मा निकालने का एक तरीका है। एक्साइमर लेजर कई तरीके से किया जाता है। जैसे पीआरके लेसिक, कस्टमयूज्ड ट्रीटमेंट पीटीके इत्यादि। चश्मे के नंबर के अलावा कार्निया की कई बीमारियाँ जिसमें काली पुतली की ऊपरी सतह पर सफेदी आना, डिस्ट्रॉफी होना, सतह पर खुरदुरापन आना, इन सभी को भी एक्साइमर लेजर द्वारा ठीक किया जा सकता है।
स्टेण्डर्ड तरीका वेवफ्रण्ट
स्टेण्डर्ड तकनीक से हर मरीज का इलाज एक ही तरीके से किया जाता है, जिसे वन फिट ऑल अर्थात् जैसे आपने बाजार से कोई सिलासिलाया कपड़ा खरीदा हो, वह हर व्यक्ति के लिए एक सऱीखा रहेगा, जबकि आप अगर वही कपड़ा टेलर्स से सिलवाते हैं तो वह आपके नाप से विशेष तौर पर आपके लिए बनाया गया होगा। अतः वह ज्यादा फिट होगा। कस्टमाइज्ड तरीके से डिजाइन किए गए इलाज से कई मरीजों को तो इतना फायदा होता है कि उनकी नजर साधारण नजर से (६/६) से बढ़कर असाधारण रूप से बढ़ जाती है (६/५ या ६/४) इसे ही इगल वीजन कहा जाता है । आज हम लेजर की तकनीक में इतने आगे बढ़ चुके हैं कि स्टेण्डर्ड या कस्टमाइज्ड को अलग-अलग किया ही नहीं जा सकता। एक लेजर एक्सपर्ट डॉक्टर आपकी नजर के लिए जो बेहतरीन है वही प्लानिंग करता है।
Raamdharan ji,
जवाब देंहटाएंgyan ke prasaar ke liye dhanyvaad. Parntu har sikke ke do pahlu hote hai. Tatkaal to aaram mil jaata hain lekin laser surgery long term me bahut saari dusari samsayaao ko janm deti hai. Aanko ki kai koshikaaye jindgibhar nahi badalti hai. 10-15 saalo ke baad laser surgery ka vaastvik asar saamne aata hai jab aankho ki koshikaayen marne lagti hai.
Kripya nirpeksh rup sesawasthya jaankariya prastut kare.
Nilesh