राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य देशभर में ग्रामीण परिवारों को बहुमूल्य स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना है। इसका ध्यान विशेषकर अरुणांचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, जम्मू व कश्मीर, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय, मध्य प्रदेश, नागालैण्ड, उड़ीसा, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखण्ड, और उत्तर प्रदेश- इन 18 राज्यों पर है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के मुख्य उद्देश्य हैं:
- शिशु मृत्युदर और मातृत्व मृत्युदर में कमी लाना
- प्रत्येक नागरिक को लोक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुलभ कराना
- संचारी और असंचारी रोगों की रोकथाम व नियंत्रण
- जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ लिंग व जन सांख्यिकीय संतुलन सुनिश्चित करना
- स्वस्थ जीवनचर्या और आयुष के माध्यम से वैकल्पिक औषधी पद्धतियों को प्रोत्साहित करना
इस मिशन का उद्देश्य पंचायती राज संस्थानों का सुदृढ़ीकरण करके और प्राधिकृत महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के माध्यम से उच्चीकृत स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को बढ़ावा देकर अपने उद्देश्य को प्राप्त करना है। इसके द्वारा वर्तमान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला स्वास्थ्य मिशनों को सुदृढ़ बनाने और गैर सरकारी संगठनों का अधिकतम उपयोग करने की योजना है। मगर आज दैनिक भास्कर,दिल्ली संस्करण में प्रकाशित प्रदीप सुरीन/संतोष की खबर कहती है कि आशा कार्यकर्ता ठीक से प्रशिक्षित हैं ही नहीं। पूरी खबर आप भी पढिएः
देश में गरीब और दूर-दराज में रहने वाले नागरिकों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत काम करने वाली आशा कार्यकर्ता (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्यकर्ता) अपने काम में दक्ष नहीं हैं। पंचवर्षीय योजना की मध्यावधि मूल्यांकन रिपोर्ट में खुलासा किया है कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं में प्रशिक्षण की भारी कमी है।
इन स्वास्थ्यकर्मियों के खराब काम करने की वजह से खुद ग्रामीण जनता भी अब इनपर भरोसा नहीं कर रही है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि गांव-देहात की ज्यादातर गर्भवती महिलाएं भी अपने प्रसव के लिए स्वास्थ्यकर्ताओं के पास जाने के बजाए पड़ोस की दाई के पास जाना ज्यादा महफूज मानती हैं।
योजना आयोग ने यह मूल्यांकन अपनी टीम की रिपोर्ट, स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय और केंद्रीय एवं राज्यों के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों से मिली जानकारी के आधार पर बनाई है। रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत लगभग 7.49 लाख आशा कार्यकर्ताओं का चयन किया गया है। पर इनमें से मात्र 1.99 लाख स्वास्थ्यकर्ताओं ने ही अपनी आवश्यक ट्रेनिंग पूरी की है, जबकि अभी भी लगभग 5.65 लाख आशा कार्यकर्ता अपनी मोडच्युल 5 की ट्रेनिंग पूरी नहीं कर पाई हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के एक अधिकारी ने भास्कर को बताया कि आशा कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग के लिए 5 तरह के मोडच्युल बनाए गए हैं, जिनमें लगभग २३ दिन का समय लगता है। स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जरूरी ट्रेनिंग पूरा कराने का जिम्मा राज्य सरकार पर होता है, पर अभी तक यह काम नहीं हो पाया है।
अधिकारी का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से सभी राज्यों को इसके लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा गया है। आसा कार्यकर्ताओं की दक्षता में कमी के अलावा एक और बड़ी समस्या की ओर भी योजना आयोग ने ध्यान दिलाया है। आयोग का कहना है कि आशा कार्यकर्ताओं के खराब काम करने की वजह से गांव-देहात की गर्भवती महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं।
सही इलाज नहीं मिलने और अभद्र व्यवहार की वजह से ज्यादातर गर्भवती महिलाएं अपनी प्रसूति संबंधी इलाज के लिए अस्पतालों के बजाए घर में ही नवजात को जन्म दे रही हैं। रिपोर्ट बताती है कि गर्भवती महिलाएं इन आशा कार्यकर्ताओं की जगह अपने पड़ोस में रहने वाली दाइयों पर ज्यादा भरोसा करती हैं।
सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि मिशन के तहत किसी भी राज्य में पूरी तरह प्रशिक्षित कार्यकर्ता नहीं है। सीएजी ने अनुसार, सिर्फ छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य है जहां 99 प्रतिशत कार्यकर्ता पूरा प्रशिक्षण ले चुकी हैं। बाकी सभी राज्यों में चौथे मोडच्युल तक की भी ट्रेनिंग अभी शेष है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंर्तगत आशा कार्यकर्ताओं को महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए अलग से सम्मिलित किया था। मिशन के अनुसार, हर गांव में 1000 की जनसंख्या के अनुपात में एक आशा कार्यकर्ता का होना चाहिए। एक आशा कार्यकर्ता गावों और दूर दराज के इलाकों में जाकर ग्रामीण महिलाओं एवं बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं देती हैं। इनमें गर्भवती महिलाओं की देखभाल के अलावा, नवजात को दिए जाने वाले आवश्यक टीके तक शामिल हैं।
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