शनिवार, 20 मार्च 2010

एड्स के 4000 मरीज़ लापता

राजधानी से चार हजार एचआईवी पोजिटिव मरीज गायब हैं! दिल्ली में १० हजार से अधिक एचआईवी के मरीज रिट्रोवायरल रोधी (एआरटी) उपचार के लिए पंजीकृत हैं, लेकिन इलाज के लिए करीब छह हजार लोग ही पहुंच रहे हैं। बिना इलाज कराने वाले एचआईवी पोजिटिव मरीजों की संख्या इससे भी कई गुना अधिक है। सबसे बड़ी बात यह कि तिहाड़ जेल में सिर्फ दो साल में दो सौ से अधिक कैदी एचआईवी पोजिटिव पाए गए हैं। यही नहीं, एचआईवी की वजह से पिछले दो साल में दिल्ली के १६ लोगों ने आत्महत्या की है, जिनमें १५ पुヒष व एक महिला शामिल है।

दिल्ली में वर्ष २००२ से २००९ के बीच विभिन्न इंटिग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी केंद्रों) में आए लोगों में ३३ हजार ८८६ लोगों को एचआईवी पोजिटिव पाया गया। इनमें से २३९४६ लोगों को दिल्ली के नौ एआरटी केंद्रों पर पंजीकृत किया गया है, जहां वे एचआईवी जागरूकता कार्यक्रम में भाग लेते हैं। जांच के आधार पर १० हजार ७७० लोगों को एआरटी इलाज के काबिल पाया गया। वर्तमान में इनमें से केवल ६७०७ मरीज ही नियमित उपचार ले रहे हैं।

बाकी के मरीज या तो मर चुके हैं या फिर उपचार के लिए केंद्र पर नहीं पहुंच रहे हैं। सरकार को इन मरीजों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। राजधानी के ही तिहाड़ जेल में एड्स पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जून २००८ से फरवरी २०१० तक २५४० कैदियों की जांच की गई, जिसमें से २०१ कैदियों को एचआईवी पोजिटिव पाया गया है। इनमें से ५५ कैदियों को एड्स हो चुका है, जिसमें से १४ कैदी रिट्रोवायरल रोधी चिकित्सा पर जी रहे हैं।

जेल अधिकारियों के मुताबिक जेल में पहली बार प्रवेश करने पर सभी कैदियों की इंट्राविनिस ड्रग एब्यूज, नशे की दवा लेने की लत, स्वच्छंद यौन संबंध और खून की जांच कराई जाती है। इसके अलावा एचआईवी संक्रमण और क्षय रोग संक्रमण आदि की विशेष जांच होती है ताकि अन्य कैदियों के साथ एहतियात बरती जा सके। जो लोग एचआईवी पोजिटिव हैं उनके लिए जागरूकता कार्यक्रम तो चलाए ही जाते हैं, जो नेगेटिव हैं उन्हें भी एचआईवी संक्रमण के बारे में बताया जाता है।
(नई दुनिया,दिल्ली,20.3.2010 मे संदीप देवजी की रिपोर्ट)

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