आपाधापी भरी जिंदगी एवं अनियमित दिनचर्या के कारण मनुष्य कई तरह की बीमारियों का शिकार होता जा रहा है। स्थिति यह है कि आज ज्यादातर लोग किसी न किसी रोग से ग्रसित हैं। इस बार आइए जानते हैं बवासीर के बारे मे। क्या है इस रोग के लक्षण, कारण, बचाव के उपाय व निदान, बता रहे हैं होम्योपैथिक काउंसिल आफ इंडिया के चेयरमैन डा. राम जी सिंह-
बवासीर: बवासीर को अंग्रेजी में पाइल्स कहते हैं। यह मानव शरीर के गुदा से जुड़ी बीमारी है जो मुख्यत: तीन प्रकार की होती हैः 1. एक्सटरनल या ब्लाइण्ड पाइल्स या बाहरी मस्से। 2. इंटरनल या ब्लीडिंग पाइल्स, भीतरी मस्से। 3. मिक्स्ड पाइल्स, यानी भीतर बाहर दोनों ओर मस्से।
लक्षण: बाहरी मस्से का लक्षण : इस प्रकार के मस्से में मलद्वार खुजलाता है, मलद्वार के पास सुरसुरी होती है, कभी-कभी प्रदाह और दर्द होता है, मलद्वार के पास सूजन आ जाती है और जलन होती है। इस समय रोगी को चलने फिरने में भारी तकलीफ होती है, पैखाने के समय बड़ी तकलीफ होती है। इसमें खून नहीं गिरता, यह न तो पकता है और न ही घाव होता है। भीतरी मस्से का लक्षण : इस प्रकार के मस्से में खून गिरता है, खून की पिचकारी सी चलती है, नवीन अवस्था में इसमें बहुत ज्यादा दर्द रहता है। मस्से बाहर निकल आने से मलद्वार की स्फीइटर उन्हें दबा लेती है जिससे रक्त निकलने लगता है। लगातार ज्यादा दिन तक खून गिरते रहने से रोगी में एनीमिया के लक्षण आने लगते हैं। यदि रोग पुराना होता है तो प्राय: प्रदाह या दर्द वगैरह कुछ नहीं रहता, सिर्फ रक्तस्त्राव होता है और पैखाना होते समय के अलावा शेष समय भी खून गिरता है। भीतर-बाहर दोनों ओर के मस्से के लक्षण : इस प्रकार के मस्से में भीतरी तथा बाहरी दोनों प्रकार के मस्से के लक्षण प्रकट होते हैं।
कारण : यह रोग मूल रूप से लम्बे समय तक कब्ज तथा अपच के कारण होता है। मसालेदार, तले हुए खाद्य पदार्थ, कुरकुरे आदि का अत्यधिक सेवन इस व्याधि को जन्म देता है। किसी रोग की वजह से पखाना करते वक्त अत्यधिक कांखना या जोर देना, बहुत दिनों तक कब्ज की शिकायत होने से भी इस रोग की उत्पत्ति होती है।
बचाव : इस रोग में रोगी को मद्य पान, मांस, अंडा, केकड़ा, प्याज, लहसुन, मिर्चा, ज्यादा गर्म मसाले से बनी हुई सब्जी या कोई भी खाद्य पदार्थ खाना, अधिक खाना, रात्रि जागरण आदि से बचना चाहिए। सुपाच्य और कम मसालेदार चीज का सेवन करना चाहिए।
निदान : होम्योपैथ में पाइल्स का शत प्रतिशत निदान संभव है। हालांकि यह एक कष्ट साध्य बीमारी है तथा यदि इसका सही समय पर उचित इलाज नहीं किया गया तो बवासीर का इलाज थोड़ा जटिल हो जाता है परन्तु इससे घबराना नहीं चाहिए। बवासीर के लक्षणों को ध्यान में रखते हुए होम्योपैथिक मेडिसिन का सेवन किया जाए तो जल्द ही इस बीमारी के चंगुल से मुक्त हो सकते हैं। इस रोग की कुछ मुख्य होम्योपैथिक औषधियां निम्न हैं- रोग के लक्षण के अनुसार यदि इनका सेवन किया जाए तो बवासीर से छुटकारा पाया जा सकता है। एस्क्युलस : यह मुख्य तौर पर खुश्क या वादी बवासीर में दी जाती है। खुश्की के कारण रोगी को ऐसा महसूस होता है कि गुदा में छोटे-छोटे तिनके ठुसे पड़े हैं। इसमें गुदा में जलन के साथ दर्द होता है। प्राय: बादी बवासीर में जब अशुद्ध रक्त द्वारा शिरा शोध से मस्से बन जायें तब उपयोगी है। म्यूरेटिक ऐसिड : इसमें मस्से नीले रंग के होते हैं और इनमें इतनी स्पर्श-असहिष्णुता होती है कि विस्तर की चादर का स्पर्श भी सहन नहीं होता है। मस्से को गर्म पानी से धोने में आराम मिलता है। यह बच्चों की बवासीर में भी काम आती है। एलोज : इसमें गुदा प्रदेश में भारीपन का अनुभव होता है। इसमें बवासीर के मस्से आंव से सने होते हैं क्योंकि गुदा प्रदेश में एकत्रित आंव संकोचक-पेशियों की शिथिलता के कारण बाहर रिसता है और इन मस्सों को भिगोता रहता है। इस औषधि की बवासीर में खुजली बहुत होती है, इन मस्सों में स्पर्श-असहिष्णता होती है और ठंडे पानी से मस्सों को धोने से रोगी को चैन मिलता है। इस प्रकार अन्य बहुत-सी कारगर होम्योपैथिक औषधियां इस रोग के लिए हैं जिन्हें लक्षण के अनुसार इसका सेवन करने से नए अथवा पुराने बवासीर का सफलता पूर्वक निदान किया जा सकता है। (
दैनिक जागरण,9.2.10,पटना संस्करण मे शिवानंद पाण्डेय की प्रस्तुति)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।