प्रसव के दौरान असहनीय पीड़ा का डर अब उड़न-छू होने लगा है। हाइप्नो बर्थ, वॉटर बर्थ, अरोमा थेरपी, रिफ्लेक्सॉलजी और साइंटॉलजी प्रसव के दर्द में राहत दिलाने वाले तरीकों के बाद अब एपिड्युरल अनेस्थीसिया का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। इसकी वजह यह है कि बाकी तरीकों में जहां दर्द से कुछ राहत मिलती है, वहीं इसमें होश में रहते हुए भी मां दर्द से 100 पर्सेंट मुक्त रहती है।
इस तकनीक के फायदे और मांग को देखते हुए न सिर्फ सारे बड़े प्राइवेट अस्पतालों में इसका इस्तेमाल हो रहा है बल्कि हाल ही में एम्स में भी इसकी शुरुआत हुई है। डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादा जागरूकता नहीं होने के बावजूद आजकल करीब 25 पर्सेंट महिलाएं ऐसे तरीकों की मांग करती हैं। रॉकलैंड हॉस्पिटल की सीनियर गायनेकॉलजिस्ट डॉ. आशा शर्मा कहती हैं कि दर्द के सिग्नल का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता रीढ़ की हड्डी होती है। यहीं से होकर र्नव्स के जरिए सिग्नल ब्रेन तक पहुंचता है। अनेस्थेटिक इस सिग्नल को ब्रेन तक पहुंचने से पहले ही रीढ़ की हड्डियों में रोक देते हैं। रुटीन अनेस्थीसिया में सीधे रीढ़ की हड्डी में इंजेक्शन देते हैं, जिससे पेशंट बेहोश हो जाता है। लेकिन एपिड्युरल में रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से की ऐसी कनैल में इंजेक्शन लगाते हैं कि मरीज को दर्द से तो मुक्ति मिल जाती है, मगर वह और गर्भस्थ शिशु दोनों पूरी तरह से होश में रहते हैं और हाथ पैर भी हिला सकते हैं। डिलिवरी के दौरान अनेस्थेटिक महिला से बात करते रहते हैं। हालांकि डिलिवरी के दौरान महिला निचले हिस्से पर जोर नहीं लगा पाती है। डॉ. शर्मा कहती हैं कि सही टाइम पर और एक्सपर्ट अनेस्थेटिक की मदद से एपिड्युरल अनेस्थीसिया दिया जाए तो यह तरीका पूरी तरह से सुरक्षित होता है। अनेस्थीसिया देना तब शुरू करते हैं जब सर्विक्स (गर्भाशय)3 से 4 सेंटीमीटर खुल जाए।
जी. बी. पंत हॉस्पिटल के गायनेकॉलजी डिपार्टमेंट की पूर्व अध्यक्ष डॉ. नीरा अग्रवाल कहती हैं कि यहां के लिए यह तरीका नया है,मगर विदेशों में कई साल से इसका इस्तेमाल हो रहा है। यह सुविधा सारे सरकारी अस्पतालों में शुरू होनी चाहिए क्योंकि इसमें सिर्फ तीन हजार तक का अधिक खर्च आता है। मगर, अनेस्थीसिया और ऑपरेशन थिएटर से संबंधित संसाधनों की कमी के चलते यह नहीं शुरू हो पा रहा है। डॉ.अग्रवाल कहती हैं कि सही समय पर,सही तरीके से एपिड्युरल अनेस्थीसिया नहीं लग पाने की हालत में कुछ खतरा भी हो सकता है। मसलन, महिला का ब्लड प्रेशर अचानक कम हो जाना, इससे कुछ देर के लिए गर्भस्थ शिशु की हार्टबीट स्लो हो सकती है। कुछ लोगों में तेज सिर दर्द, सांस लेने में तकलीफ, उठने पर चक्कर आने जैसे लक्षण भी आ सकते हैं। गलत कनैल में अनेस्थीसिया लगने की हालत में मरीज का पूरा निचला हिस्सा पैरलाइज्ड हो सकता है और ऐसी हालत में बच्चे को खतरा भी हो सकता है। डॉ.अग्रवाल के मुताबिक डिलिवरी के बाद दो से चार घंटों में शरीर पूरी तरह से कंट्रोल में आ जाता है और नॉर्मल डिलिवरी की तरह कुछ घंटों बाद मरीज घर भी जा सकती है।
(25 जनवरी,2010 के नभाटा,दिल्ली में नीतू सिंह की रिपोर्ट)
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