थैलसीमिया मेजर क्या है: थैलसीमिया मेजर बीमारी के पीड़ित बच्चों का शरीर प्राकृतिक रूप से रक्त निर्मित करने में असमर्थ होता है। फलत: इन्हें नियमित अंतराल पर खून चढ़वाना पड़ता है। साथ ही बढ़ती उम्र के साथ तरह-तरह की दवाइयां भी लेनी होती है। इन सबके बावजूद बच्चों का शारीरिक विकास असामान्य ही रहता है। सामान्यत: 12 माह का गर्भ होने पर उक्त परीक्षण के जरिए गर्भस्थ शिशु के थैलसीमिया स्टेटस (माइनर/मेजर) का पता लगाया जा सकता है। रेडक्रॉस थैलसीमिया ही नहीं अपितु डैंग्यू, एचआईवी व फ्लू सहित 150 परीक्षण करेगी ताकि गर्भस्थ शिशु के संक्रमण (यदि हैं तो) का पता लगा कर यथाशीघ्र उपचार सुनिश्चित किया जा सके।
"ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आप फलां तरीक़े से स्वस्थ हैं और वो अमुक तरीक़े से। आप या तो स्वस्थ हैं या बीमार । बीमारियां पचास तरह की होती हैं;स्वास्थ्य एक ही प्रकार का होता है"- ओशो
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010
गुजरात में गर्भवती की थैलसीमिया जांच 1 अप्रैल से अनिवार्य
दैनिक भास्कर के आज के राष्ट्रीय संस्कराण में प्रकाशित ख़बर के अनुसार,गुजरात सरकार 1 अप्रैल से,हर गर्भवती महिला के थैलसीमिया जांच अनिवार्य करने जा रही है। यह परीक्षण रेडक्रॉस की प्रयोगशालाओं में होंगे और पूरी तरह मुफ्त होगें। थैलसीमिया उन्मूलन के उद्देश्य से राज्य सरकार ने यह महत्वपूर्ण फैसला किया है। यह राज्य सरकार का मॉडल प्रोजेक्ट है। पहली अप्रैल से राज्य के मुख्य शहर अहमदाबाद के चिह्नित सात अस्पतालों में यह सेवा शुरू होगी। तत्पश्चात यह सुविधा सरकारी चिकित्सालयों में सुनिश्चित करने के बारे में फैसला किया जाएगा। शुरुआती चरण के लिए चिह्नित सात अस्पतालों में पहुंचने वाली हर गर्भवती महिला के थैलसीमिया स्टेटस की जांच की जाएगी। परीक्षण में किसी महिला के ‘थैलसीमिया माइनर’ पाए जाने पर उसके पति की भी जांच की जाएगी क्योंकि माता-पिता दोनों के थैलसीमिया माइनर होने पर बच्च ‘थैलसीमिया मेजर’ होने की आशंका बढ़ जाती है। परीक्षण के परिणामों के बाद गर्भस्थ शिशु के भविष्य के बारे में फैसला चिंहित दंपत्ति कर सकेगा।
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